मूड अच्छा रखना चाहते हैं तो इस बात का रखें ध्यान रखें
Nov 1, 2015, 18:30 IST
हम अक्सर अपने और दूसरों के मूड के कारण प्रभावित होते रहते हैं। साथ ही 'अच्छे' या 'खराब' मूड को लेकर तमाम तरह की शिकायतें भी करते रहते हैं। लेकिन हमारा मूड किन बातों से प्रभावित होता है? यह हर व्यक्ति पर अलग-अलग निर्भर है। लेकिन जो बात सभी पर लागू होती है, वो है- नींद। नींद में कुल मिलाकर कटौती होना उतना ज्यादा मूड को प्रभावित नहीं करता, जितना कि नींद में खलन पड़ना। अमेरिका में की गई एक नई स्टडी में इस बात का निष्कर्ष निकाला गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, इस स्टडी में प्रतिभागियों को 8 तरह से जबरन सोते से उठने के लिए मजबूर किया गया। इन प्रतिभागियों और देर से सोने वाले प्रतिभागियों में पहली रात के बाद कम सकारात्मक मूड और उच्च नकारात्मक मूड देखा गया। इसमें प्रतिभागियों से उनकी तत्कालीन भावों को कई तरह के सकारात्मक और नकारात्मक भावों के आधार पर रेटिंग करवाई गई। जैसा वे उस समय महसूस कर रहे थे उसके आधार पर अपने भावों की रेटिंग करते थे। उदाहरण के लिए, जैसे वे कितनी खुशी या कितना गुस्सा महसूस कर रहे हैं।
शोधकर्ताओं ने गौर किया, कि अहम बदलाव दूसरी रात के बाद देखा गया। जबरन उठाए गए समूह के लोगों में 31 फीसदी कमतर सकारात्मक मूड देखा गया। जबकि, देर से सोने वाले समूह के लोगों में पहली रात के बाद के आंकड़ों की तुलना में 12 प्रतिशत कमी देखी गई। उन्होंने नकारात्मक मूड के आधार पर दोनो समूहों में तीनों दिनों में कोई अहम अंतर नहीं देखा। जिससे निष्कर्ष निकाला गया कि नींद में खलन पड़ना सकारात्मक मूड के लिए हानिकारक है।
इस स्टडी के लेखक पैट्रिक फाइनन हैं। जो जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिसिन में कार्यरत हैं। यह स्टडी जरनल स्लीप में प्रकाशित हो चुकी है।
रिपोर्ट के मुताबिक, इस स्टडी में प्रतिभागियों को 8 तरह से जबरन सोते से उठने के लिए मजबूर किया गया। इन प्रतिभागियों और देर से सोने वाले प्रतिभागियों में पहली रात के बाद कम सकारात्मक मूड और उच्च नकारात्मक मूड देखा गया। इसमें प्रतिभागियों से उनकी तत्कालीन भावों को कई तरह के सकारात्मक और नकारात्मक भावों के आधार पर रेटिंग करवाई गई। जैसा वे उस समय महसूस कर रहे थे उसके आधार पर अपने भावों की रेटिंग करते थे। उदाहरण के लिए, जैसे वे कितनी खुशी या कितना गुस्सा महसूस कर रहे हैं।
शोधकर्ताओं ने गौर किया, कि अहम बदलाव दूसरी रात के बाद देखा गया। जबरन उठाए गए समूह के लोगों में 31 फीसदी कमतर सकारात्मक मूड देखा गया। जबकि, देर से सोने वाले समूह के लोगों में पहली रात के बाद के आंकड़ों की तुलना में 12 प्रतिशत कमी देखी गई। उन्होंने नकारात्मक मूड के आधार पर दोनो समूहों में तीनों दिनों में कोई अहम अंतर नहीं देखा। जिससे निष्कर्ष निकाला गया कि नींद में खलन पड़ना सकारात्मक मूड के लिए हानिकारक है।
इस स्टडी के लेखक पैट्रिक फाइनन हैं। जो जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिसिन में कार्यरत हैं। यह स्टडी जरनल स्लीप में प्रकाशित हो चुकी है।