अल्ट्रासाउंड जांच कराकर ह्वदयाघात के खतरे का पता लगाया जा सकता है

अल्ट्रासाउंड जांच कराकर ह्वदयाघात के खतरे का पता लगाया जा सकता है
लंदन-- चिकित्सा के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के विकास से मरीजों को जबरदस्त फायदा हुआ है। इसी क़डी में एक साधारण अल्ट्रासाउंड जांच कराकर भविष्य में होने वाले ह्वदयाघात के खतरे का पता लगाया जा सकता है।

एक अध्ययन में यह बात सामने आई है। ह्वदयाघात रोकने के लिए ऑपरेशन केवल कुछ स्थितियों में ही फायदेमंद होता है, ऎसे में अल्ट्रासाउंड अनावश्यक ऑपरेशन को रोकने में उपयोगी साबित हो सकता है। स्वीडन की ऊमेआ युनिवर्सिटी के अध्ययनकर्ता फिसनिक जाशरी के अनुसार, "अल्ट्रासाउंड की मदद से हम उन मरीजों का पता लगा सकते हैं, जिन्हें ह्वदयाघात का खतरा सर्वाधिक है। ऎसे में जहां जरूरत नहीं होगी वहां ऑपरेशन नहीं किया जाएगा।" वैज्ञानिकों के अनुसार आधे से ज्यादा ह्वदयाघात एथेरोस्कलेरॉसिस के कारण होते हैं। एथेरोस्कलेरॉसिस में धमनियां क़डी हो जाती हैं। यह एक सूजन पैदा करने वाली बीमारी है जो मस्तिष्क, ह्वदय और शरीर के अन्य अंगों में ऑक्सीजन युक्त रक्त के संचालन को प्रभावित करती है। इस अवस्था में मस्तिष्क सहित अन्य अंगों में रक्त की आपूर्ति बाधित होती है। गर्दन की धमनियों में एथेरोस्कलेरॉसिस ह्वदयाघात का सबसे ब़डा कारण है।

इसकी सबसे खतरनाक अवस्था कैरोटिड स्टेनोसिस है, जो बुजुर्गो के साथ मोटापा, उच्चा रक्तचाप व मधुमेह ग्रस्त लोगों में काफी देखी जाती है। एथेरोस्कलेरॉसिस रोग पर नियंत्रण कॉलेस्ट्रॉल कम करने वाली दवाइयों के अलावा ऑपरेशन से किया जाता है। जाशरी ने बताया, ""हम जानते हैं कि कैरोटिड स्टेनोसिस में ऑपरेशन कुछ ही लोगों के लिए फायदेमंद होता है, बाकि साधारण रोगी मेडिकल थैरेपी से ही ठीक हो सकते हैं।

ऎसे मरीजों के इलाज में अल्ट्रासाउंड महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।" यह अल्ट्रासाउंड विधि एथेरोस्कलेरॉसिस रोग की प्रकृति, प्लेक की अधिकता का आकलन करने में मददगार होने के साथ ही रोगियों के लिए रेडिएशन फ्री, सस्ती और बेहतर है।


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