संघ .संगठन और अति पिछड़ा कनेक्शन से बना भाजपा का कार्ड

संघ .संगठन और अति पिछड़ा कनेक्शन से बना भाजपा का कार्ड
लखनऊ -दरअसल केशव उत्तर प्रदेश में भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए एक ऐसा चेहरा हैं जिसकी उम्मीद शायद ही उन्होंने कभी ख्वाब में भी की हो। जानकारी के मुताबिक यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आरएसएस भाजपा की खातिर सियासी जमीन तैयार कर रही है। केशव के पास सोशल इंजीनियरिंग के तमाम गुर मौजूद जिसमें जिम्मेवारी निश्चित तौर पर संघ के करीबी को ही दी जानी थी। जिसका वो चुनाव के लिहाज से भरपूर फायदा उठाएंगे।

ध्रुवीकरण के सहारे भाजपा
दिल्ली का हो या फिर बिहार का। सियासी पार्टियों ने ध्रुवीकरण को चुनाव का अहम् मुद्दा बनाया। हालांकि जातिवाद भी मुद्दे के तौर पर बाद में शरीक हो गया। लेकिन भाजपा को 2014 के लोकसभा चुनाव में कहीं न कहीं इन्हीं मुद्दों का जबरदस्त फायदा भी मिला।
दिल्ली-बिहार जैसा परिणाम नहीं चाहती है भाजपा पर, हर जगह परिणाम एक से नहीं होते। फलस्वरूप दिल्ली और बिहार में पार्टी को मुंह की भी खानी पड़ी। बहरहाल केशव मौर्या के ज़रिए पार्टी किस तरह से किस मुद्दे को प्रमुखता से बैठाती है और उसका क्या नतीजा निकलता है, देखना काफी दिलचस्प होगा।

नजर 20 प्रतिशत अति पिछड़ा वर्ग के वोटरों पर

केशव प्रसाद मौर्य का नाम पार्टी नेतृत्व के लिए बीच का रास्ता है. लेकिन यह केवल मजबूरी भर नहीं है. पार्टी को इसमें सूबे की जातीय अंकगणित के लिए एक बेहतर आकलन भी नज़र आ रहा है. मौर्य के सहारे पार्टी की नज़र राज्य के 20 प्रतिशत अति पिछड़ा वर्ग के वोटरों पर भी है.पार्टी को पता है कि मुसलमान का वोट उन्हें मिलने से रहा. यहां तक कि अन्य पिछड़ा वर्ग से यादवों का वोट भी टूटकर पार्टी के खाते में जाएगा, इसकी गुंजाइश कम ही है. दलितों का वोट भी पार्टी के लिए दूर का स्वप्न है. खासकर दलितों में बड़ी तादाद जाटव और चमारों की है और ऐसा लगता है कि इसबार वे मायावती के पक्ष में कमर कस चुके हैं.
सौर्स वेब

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