मलाई काट कर आरक्षण लेने वालों को मोदी सरकार ने दिया झटका

मलाई काट कर आरक्षण लेने वालों को मोदी सरकार ने दिया झटका
नई दिल्ली -अच्छी फैमिली के होने के बाद भी आरक्षण का लाभ लेने वालों पर गाज गिर सकती है सिविल सर्विसेस की परीक्षा में पास होने के बाद भी कई परीक्षार्थी बहार भी हो चुके हैं और कारण बना मोदी सरकार द्वारा बनाई गई क्रीमी लेयर की नई परिभाष से हुआ यूँ की डीओपीटी यानि डिपार्टमेन्ट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग की वेबसाइट पर जब सर्विस अलॉमेन्ट हुआ तो बहुत से ओबीसी छात्रों का नाम लिस्ट से गायब हो गया। तो अब आपको लग रहा होगा कि जो ओबीसी कैटेगरी के छात्रों को यूपीएससी ने सफल घोषित किया उनका नाम कैसे गायब हो गया। 6 लाख रुपए से सालाना वेतन पाने वाले लोगों को क्रीमीलेयर में दरअसल मोदी सरकार ने इस बार नई शुरुआत करते हुए ओबीसी कैटगरी में क्रीमीलेयर की परिभाषा बदल दी। मोदी सरकार के नए नियम के मुताबिक अब 6 लाख रुपए से सालाना वेतन पाने वाले लोगों को क्रीमीलेयर में रख दिया और उनको आरक्षण का लाभ देने से मना कर दिया। इसकी वजह से बैंक, पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग, विश्वविद्यालय के शिक्षक या कर्मचारियों के बच्चे, अलग-अलग राज्यों और केंद्र सरकार के इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के कर्मचारियों के बच्चों को भी बाहर कर दिया गया। पहले था यह नियम: इससे पहले क्रीमीलेयर में सिर्फ संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों, सीधे क्लास वन की नौकरी, नियुक्त आधिकारी, क्लास 2 के पिता और मां के बच्चे, ऐसे लोग जिनकी आय वेतन और कृषि आय को छोड़कर 6 लाख रुपए से ज्यादा हो। मतलब ये कि अब तक सैलरी के आधार पर क्रीमीलेयर तय नहीं होता था। जिनके माता या पिता की सैलरी सालाना 6 लाख से अधिक है और मोदी सरकार ने उनको आरक्षण देने से मना कर दिया है। जिन लोगों को सैलरी के आधार पर आरक्षण देने से मना कर दिया गया, इनकी संख्या 33 से ज्यादा है। जब इन छात्रों पर मुसीबत का पहाड़ टूटा तो उन्होने पिछडा वर्ग आयोग में गुहार लगाई। बिना देर किए पिछड़ा वर्ग आयोग ने केंद्र सरकार के कार्मिक मंत्रालय और सामाजिक कल्याण मंत्रालय को चिट्ठी लिख दी। तो अब सवाल उठता है कि क्या मोदी सरकार ने पिछले वर्ग में क्रीमीलेयर नए सिरे से तय करने का फैसला कर लिया है। देखने वाली बात यह होगी कि मोदी सरकार के इस फैसले को किस तरह से लिया जाएगा हलाकि इस फैसले का विरोध होना तय माना जा रहा है ।

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