यहाँ खून से खेलने का मनाया जाता है जश्न

यहाँ खून से खेलने का मनाया जाता है जश्न
डेस्क-मध्य प्रदेश का छिंदवाडा जिला जहा आज भी परम्परा के नाम पर अन्धविश्वास का खेल जारी है | यहा पिछले 300 सालो से पत्थर का युद्ध चल रहा है| यहाँ के लोग एक दूसरे का खून बहाने से जश्न मनाते है| कोई मर भी जाये तब भी यह पत्थर युद्ध नही रुकता,दरअसल आस्था को अंधविश्वास की भट्टी में झोंककर यहां पत्थरबाजी का खेल़ खेला जा रहा है और परंपरा के नाम पर एक दूसरे का खून बहाया जा रहा है, ना ही यहा के स्थानीय लोग और न ही प्रशासन इससे रोकने में सक्षम है|
कैसे शुरू हुआ यह पत्थरो का भयानक युद्ध
इस पत्थर युद्ध के बारे में कहा जाता है कि तीन सौ साल पहले 17वीं शताब्दी में सावरगांव की लड़की को पाढुरना गांव के लड़के से प्यार हुआ था दोनों ने बाद में शादी कर ली और फिर गांव से भागने के दौरान दोनों के गांववालों ने इस नदी के पास उन्हें घेर लिया. दोनों पर पत्थर बरसाए गए जिसमें जख्मी होकर उनकी मौत हो गई. बाद में गांव वालों को इसका अफसोस हुआ और तब से उनकी याद में दोनों गांव वाले इस तरह का खूनी खेल खेलते हैं. इस पत्थर युद्ध की प्रक्रिया में दो गांवों के लोग इस युद्ध में योद्धा बने हैं उनमें खून बहाने की सनक सवार है. दूसरे गांव के लोगों के शरीर से खून बहाने की जिद को लेकर दोनों तरफ के लोग एक झंडे के करीब पहुंचना चाहते हैं.
दो गावो के बीच होता है ये महायुद्ध
एक तरफ हैं पाढुरना गांव के लोग तो नदी के दूसरी तरफ सांवर गांव वाले लोग. जिस भी गांव के लोग झंडे को ले जाएंगे वही इस पत्थर युद्ध का विजेता बनेगा. अफ़सोस तो इस बात का है कि परंपरा के नाम पर तीन सौ साल से चले आ रहे गोटमार मेले के इस युद्ध को पुलिस वाले भी नहीं रोकते, बल्कि सैकड़ों पुलिस वाले और घायलों के इलाज के लिए प्रशासन की ओर से यहां एंबुलेंस की व्यवस्था की जाती है. अस्थायी अस्पताल बनाए जाते हैं जहां घायलों का इलाज होता है. इस साल इस युद्ध में 403 लोग जख्मी हुए हैं. जिसके बाद 61 लोगों को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में लाया गया. वहीं घुटने में चोट के बाद दो लोग नागपुर रेफर किये गए हैं.


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