अजूबा 550 वर्ष पुरानी ममी के आज भी बढ़ रहे है बाल व नाखून

अजूबा 550 वर्ष पुरानी ममी के आज भी बढ़ रहे है बाल व नाखून
डेस्क - हिमाचल प्रदेश के गीयू गाँव में एक ममी है जिसके नाख़ून आज भी बढ़ रहे हैं जो वैज्ञानिकों के लिए एक रिसर्च का विषय है ।ममी की शुरुआत सर्वप्रथम मिश्र से हुई, जहाँ मौत के बाद किसी भी इंसान के शव को रसायनों का लेप लगाकर कपड़े में लपेटकर संरक्षित कर दिया जाता था मरने के बाद इस तरह के शरीर को ममी कहा जाता है। पूर्व में धनाड्य और शासक लोग अपने प्रियजनों को ममी बनाकर पिरामिडों में रखते थे। ऐसा माना जाता है की इन पिरामिडों की बनावट ऐसी होती है की इन में रखे शव जल्दी ख़राब नही होते थे। इस तरह की ममी और मकबरों में मिश्र के एक पुराने राजा तूतेन ख़ामेन का नाम प्रमुख है। मिश्र के पिरामिड विश्व के 8 आश्चर्यों में भी शुमार हैं। ऐसी ही एक 550 वर्ष पुरानीएक ममी की कहानी हम आपको बताने जा रहे है, जिसके आगे विज्ञान भी नतमस्तक है। ऐसा माना जाता है की बाल और नाखून मृत कोशिकाएं होती है। जिनका मरने के कुछ समय बाद बढ़ना बंद हो जाता हैं। परंतु 550 वर्ष पुरानी इस ममी की खासियत है, इसके बाल और नाखून, जो आज भी बढ़ रहे हैं और ये ममी की बैठी मुद्रा मे है। जबकि विश्व में अभी तक मिली हुई सारी ममी लेती मुद्रा में हैं। हिमांचल की तलहटी के लाहुल स्पीति में बसा है गांव गीयू, जो साल में 6 - 8 महीने बर्फ से ढका रहता है और इस वजह से ये बाहरी दुनिया से कटा रहता है क्योंकि यह गांव काफी ऊंचाई पर बसा हुआ है। गांव वालो के अनुसार पहले यह ममी गांव के ही एक स्तूप में स्थापित थी पर जब 1974 में भूकंप आया तो ये कही मलबे में दब गयी। उसके बाद आईटीबीपी के जवानों को सड़क बनाते समय यह सन 1995 में मिली। कहा जता है की उस समय कुदाल इसके सर पर लगी और कुदाल लगने से इस ममी के सर से खून भी निकला, जिसके निशान आज भी मौजूद है। उसके बाद से सन 2009 तक ये आईटीबीपी कैम्पस में ही रही। बाद में गांव वालो ने इसे लेकर गांव में ही स्थापित कर दिया। इस ममी को लेकर भी लोगो में अलग अलग मान्यताये और लोक कथाएं है। कुछ लोगो का मानना है की 550 वर्ष पूर्व गीयू गांव में एक एक संत रहते थे और उस दौरान यहाँ बिच्छुओं का बड़ा आतंक था। संत ने एक उपाय बताया की मैं समाधी लूंगा और तुम मुझे जमीन में दफ़न कर देना। बिच्छुओं का आतंक समाप्त हो जायेगा। ऐसा कहा जाता है की जमीन में दफ़न करने बाद चारो तरफ सफ़ेद रौशनी हो गयी और फिर इंद्र धनुष निकला। उसके बाद बिच्छुओं का आतंक हमेशा के लिए समाप्त हो गया। ये उन्ही महात्मा जी की ममी है, जबकि कुछ लोग इससे अलग मान्यता रखते हैं उनका मानना है की ये ममी तिब्बत से आये एक बौद्ध भिक्षु सांगला तेनजिंग की है, जो तिब्बत से भारत धर्म यात्रा पर आये थे। वो एक बार ध्यान लगाने बैठे और फिर कभी नही उठे। लोगो का मानना है की ये सांगला तेनजिंग की ममी है। गांव वालो ने इस ममी को सुरक्षित रखने के लिए शीशे का एक केबिन बनाया है जिसमे इसे पर्यटको को देखने के लिए रखा गया है। गांव के लोग बारी बारी से इसकी देखभाल करते है और देश विदेश से आनेवाले पर्यटको को इसके बारे जानकारी देते हैं। प्रतिवर्ष यहाँ हज़ारो पर्यटक इस ममी को देखने आते हैं। जमीन से निकालने बाद इसकी जांच की गयी। वैज्ञनिकों ने इसकी उम्र लगभग 550 साल बताया है। लेकिन बिना किसी लेप और रसायन के जमीन में दबी रहने के बाद भी ये ममी सुरक्षित कैसे है, इसके सर से खून का निकलना और इसके बाल और नाखूनों का बढ़ना आज भी आश्चर्य और शोध का विषय है


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