आखिर संडे को ही क्यों होती है छुट्टी

आखिर संडे को ही क्यों होती है छुट्टी
डेस्क -सन्डे के दिन अधिकतर लोग छुट्टी मना रहे होते हैं और यह वो दिन होता है जब लोग हफ्ते भर के काम को और परिवार के साथ घूमने का कार्यक्रम बना कर निकलते हैं | छोटे बच्चों को दोगुनी ख़ुशी होती है क्योंकि उन्हें एक तो स्कूल भी नहीं जाना पड़ता है और घूमने का मौका मिलता है अलग | लेकिन शुरू में ऐसा नहीं था लोगों को सातों दिन काम करना पड़ता था और छुट्टी भी नहीं मिलती थी | इस छुट्टी के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा और सात साल के बाद फिर वह दिन आया जब छुट्टी मिलने लगी |खैर हर किसी के पास छुट्टी मनाने के दो दिन नहीं होते, भारत जैसे देश में तकरीबन आधे ऑफिस शनिवार को भी खुले होते हैं। लेकिन संडे को सब बंद होता है। तो फिर संडे का दिन ही छुट्टी का होगा, यह किसने और कब घोषित किया?
संडे ही क्यों?दरअसल इसके पीछे एक बड़ा इतिहास छिपा है। यह एक कड़े संघर्ष की कहानी है, जिसके बाद ही हमें रविवार का दिन छुट्टी मनाने के लिए मिला था।
जब भारत पर अंग्रेजों का राज हुआ करता था। अंग्रेज अपनी हुकूमत के दौरान बड़ी मात्रा में भारतीयों से मजदूरी कराया करते हैं। स्वयं के फायदे के लिए लंबे समय और कम या नाममात्र की कीमत पर भारतीयों से काम कराया जाता था।

मजदूरों के नेता ने दिलाई छुट्टी लेकिन फिर वह समय आया जब भारतीयों के लिए छुट्टी की आवाज गूंजी और इस आवाज को उठाने वाले थे श्री नारायण मेघाजी लोखंडे। ये उस समय के मजदूरों के नेता हुआ करते थे।इन्होंने अंग्रेजों के सामने ये पेशकश की थी कि हमारे मजदूरों को सप्ताह के एक दिन छुट्टी मिलनी चाहिए जिससे वो अपने परिवार के साथ एक दिन आराम से बिता सकें और अपने ज़रूरी काम भी इसी दौरान निपटा सकें।करीब 7 वर्षों के संघर्ष के बाद अंग्रेज इस बात पर राजी हुए कि मजदूरों को रविवार की छुट्टी दे दी जाए। इसलिए तभी से भारत में रविवार की ही छुट्टी का चलन चला आ रहा है।
सोर्स वेब

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