पहले भगवान को सलामी फिर निकलता है ताजिया

पहले भगवान को सलामी फिर निकलता है ताजिया
नई दिल्ली- यह देश ऐसे ही नहीं गंगा जमुनी तहजीब का कहा जाता है इसके पीछे कई ऐसे इतिहास के पन्ने हैं जिसे पढने पर पता चलता है कि पूर्व में दो बड़े संप्रदाय एक दुसरे की भावनाओं का सम्मान करते हुए समाज में एक सामंजस्य स्थापित किये हुए थे | ऐसा ही एक किस्सा मध्यप्रदेश के भादर का है जहाँ मंदिर कि स्थापना एक मुश्लिम ने कराई थी और आज भी ताजिया का जुलूस कुछ समय के लिए ही सही, पर कृष्ण मंदिर के सामने रुकता जरूर है।
200 साल पुरानी है परंपरा 200 सालों से, जब से यह मंदिर बना है, ताजिया चतुर्भुज महाराज (कृष्ण भगवान) मंदिर के सामने रुकता है और सलामी देकर आगे बढ़ता है। ऐसा इस बुधवार को मुहर्रम के दिन भी हुआ। यही प्रथा तब भी निभाई जाती है जब कृष्ण की 'सवारी' निकलती है। यह जरूरी होता है कि हर परिवार का कम से कम एक सदस्य चतुर्भुज महाराज की सवारी को कंधे पर उठाए।
यह सालों से चला आ रहा रिवाज है। इस शहर में लगभग 40 ताजिए बनते हैं और सभी पहले कृष्ण मंदिर के सामने कुछ सेकंड रुककर सलामी देते हैं और फिर आगे बढ़ते हैं।
सपने में देखा था चतुर्भुज भगवान को
मंदिर के पुजारी रमेश पांडा ने बताया कि यह मंदिर हजारी नाम के एक स्थानीय मुस्लिम ने बनवाया था। ऐसा कहा जाता है कि हजारी ने सपने में चतुर्भुज भगवान को देखा था। भगवान ने उनसे कहा कि मैं एक तालाब के आस-पास हूं। सुबह जब वह पास के तालाब में गया तो कृष्ण की मूर्ति को देखकर हैरान रह गया। इस मूर्ति का वजन 4 टन था। वह किसी भी तरह से मूर्ति को अपने घर तक लेकर आया। इस घटना के कुछ दिन बाद फिर से हजारी को सपने में चतुर्भुज महाराज के दर्शन हुए उन्होंने कहा कि उन्हें घर में न रखा जाए। हजारी ने तुरंत मंदिर का निर्माण कार्य शुरू करवा दिया |
सोर्स वेब टाइम्स ग्रुप

Share this story