आइये जाने की क्या होते और क्यों बिगड़ते भाई से भाई के सम्बन्ध --

आइये जाने की क्या होते और क्यों बिगड़ते भाई से भाई के सम्बन्ध --

डेस्क (पंडित दयानंद शास्त्री )-सम्बन्ध को जोड़ना एक कला है, लेकिन सम्बन्ध को निभाना" एक साधना जिंदगी मे हम कितने सही और कितने गलत है, ये सिर्फ दो ही शक्स जानते है.. ईश्वर "और अपनी "अंतरआत्मा" और हैरानी की बात है कि दोनों नजर नहीं आते एक बात और जब हम खुद को समझ लेते है तो इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई और हमारे बारे में क्या सोचता है..लेकिन जब हमारी अंतर आत्मा का अहसास, प्यार, अपनापन खत्म हो जाता है, तब रिश्ता जो सबसे ख़ास होता है, टूटने लगता है वो रिश्ता भाई भाई का होता है ।

क्या कारण है जब भाई भाई के पवित्र रिश्ते मै दरार आ जाती है ---
---जायदाद का बटवारा---पिता का एक पर अधिक स्नेह दूसरे का तिरस्कार---एक भाई का अधिक पढ़ लिख सम्पन्न होना, दूसरे की हीनता----मिथ्या गर्व और अपने बड़प्पन की मिथ्या भावना----अशिष्ट व्यवहार,----एक भाई की कुसंगति, सिगरेट या व्यभिचार इत्यादि दुर्गुण----उनकी पत्नियों का मन परस्पर न मिलना।------------------------------------------------------------------------------------------जानिए क्या सम्मान होता है भाई का ---
प्रिय पाठकों/मित्रों, आपका भाई आपका सबसे बड़ा मित्र और हितैषी है। बड़ा भाई पिता तुल्य गिना जाता है। छोटा भाई आड़े समय अवश्य काम आता है। सेवा करता है। एक और एक मिलकर ग्यारह बनते हैं। यदि दो भाई मिल जुलकर अग्रसर हों तो संसार में निर्विघ्न चल सकते हैं। एक दूसरे के आड़े समय पर काम आ सकते हैं, आर्थिक सहायता कर सकते हैं, और एक के मरने पर दूसरे के कुटुम्ब का पालन पोषण कर सकते हैं। वे भाई धन्य हैं जो मिलजुल कर चलते हैं।
छोटा भाई आप में पथप्रदर्शक, हितैषी एवं संरक्षक की प्रतिच्छाया देखता है। उसके लिए आपको वही त्याग और बलिदान करने चाहिए जो एक पिता अपने पुत्र के लिए करता है। पिता की मृत्यु के पश्चात ज्येष्ठ पुत्र के ऊपर संपूर्ण उत्तरदायित्व आ जाता है।
मित्रों, हम में से अक्सर कई लोग आज भी भाई की कीमत नही जानते,हम सिर्फ और सिर्फ यही समझते हैं की हमे विरासत मे क्या मिल रहा है, भाई को ज्यादा तो नही मिल रहा । वो तरक्की कर रहा तो जले नही वरन् गर्व करे की वो हमसे आगे है, आखिर हमारा भाई है ।
जंजीर जोड़ने से बनती है,तोड़ने से नही, सम्बन्धो को तोड़ने से कुछ हासिल नही होना ,जोड़ने से हासिल होता है। यदि अब भी मन मे कोई बैर है, आत्मग्लानि है, तकलीफ है, तो आगे बढ़ो, लग जाओ गले, थाम लो हाथ बढ़कर, पर निस्वार्थ, बिना छल कपट के फिर देखिये की आपकी शक्ति कई गुना बढ़ जायगी ।=============================================================ईर्ष्या बहुत स्वाभाविक मनोभाव है, लेकिन जब ये भाई-बहनों के बीच शुरू हो जाता है तब स्थिति बड़ी विकट हो जाती है। मनोविज्ञान की भाषा में इसे ‘सिबलिंग राइवलरी’ कहा जाता है। मनोविश्लेषकों की मानें तो ऐसी स्थिति तब आती है जब व्यक्ति अपने को अकेला महसूस करे, किसी प्रिय चीज के खोने का डर सताता हो (मसलन कारोबार, पावर खत्म होने, किसी प्रिय से बिछड़ने का खौफ आदि), उसे लगता है कि लोगों के बीच वह हमेशा की तरह पॉपुलर रहे। ऐसे में जब उसका अपना भाई-बहन बाजी मारने लगे तो वह बर्दाश्त नहीं कर पाता और उसके मन में बचपन से दबी ईर्ष्या की भावना कई तरह रूप में सामने आती है। कभी एक-दूसरे पर आरोप लगाकर या कभी लड़ाई-झगड़ा करके अपनी भड़ास निकालते हैं।
रिश्तों की परिभाषा---भाई-बहनों में थोड़ी बहुत जलन होना तो स्वाभाविक ही है। यह कहना है वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डॉ. दिव्या प्रसाद का। आधुनिक समय में रिश्तों की परिभाषा बदल चुकी है। जबकि हमारे धार्मिक ग्रंथों (रामायण) में बड़े भाई को सवरेपरि रखा जाता था। परिवार में बड़े भाई की बात कानून की तरह मानी जाती थी। लक्ष्मण और भरत इसका साक्षात प्रमाण हैं, जबकि महाभारत में लालच की वजह से भाइयों (कौरव और पांडवों) में हिंसा का रूप सामने आई। आज के समय में महाभारत की तरह अपने स्वार्थो को लेकर भाइयों-बहनों में ईर्ष्या, लड़ाई-झगड़ा देखने को मिल रहा है। हालांकि पुराने समय से जमीन-जायदाद को लेकर भाइयों में झगड़ा होता था। इस थीम को लेकर कई फिल्में भी बनी हैं जैसे दीवार, वक्त, राम-लखन, कमीने आदि।
कारण और निवारण---दो बच्चों के बीच तुलना करके माता-पिता ही बच्चे में जलन पैदा करते हैं। दूसरे बच्चे के आने की खुशी सबसे ज्यादा पहले बच्चे को ही होती है क्योंकि उसके लिए यह निराला अनुभव होता है। वह नए बच्चे से प्यार भी करता है, पर जब सबका ध्यान दूसरे बच्चे की तरफ ज्यादा होता है तो उसे असुरक्षा का भाव सताने लगता है। तब पहला बच्चा खुद को अकेला महसूस करने लगता है। उसे लगता है कि उसका हक उससे छिन गया है, जैसे उसका कमरा, खिलौने, मम्मी की गोद आदि। जलन की वजह से वह दूसरे बच्चे के साथ अजीब-अजीब हरकतें करने लगता है। मसलन उसे अकेले में मारना, डराना, उसका काम बिगाड़ना, अपने से आगे निकलने न देना आदि।
यदि माता-पिता बचपन की इस ईर्ष्या को सही ढंग से संभालने में नाकाम रहते हैं, तो आगे चलकर इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं। आप बच्चे में ईर्ष्या और दूसरों से श्रेष्ठ होने का भाव जैसी सोच को अलग नहीं कर सकते। कई बार ऐसा समय भी आता है जब आपको अपना प्रिय भी बुरा लगने लगता है।
ज्यादातर मामलों में यह देखा गया है कि दो भाइयों या दो बहनों की तुलना में भाई-बहन के रिश्ते में सिबलिंग राइवलरी की भावना कम होती है। प्राकृतिक तौर पर भी भाई और बहन का व्यक्तित्व अलग होता है, उनके शौक, इच्छाएं काम करने के तरीके अलग होते हैं।
इसी वजह से भाई-बहन के बीच तुलना कम होती है, जबकि दो बहनों के बीच तुलना अधिक होती है कि देखों बड़ी कितनी मुंहफट है और छोटी उतनी है सलीकेदार। इसी तरह दो भाइयों के बीच भी तुलना करते हुए कहा जाता है कि एक पढ़ाई-लिखाई में कितना तेज और दूसरे को खेलने से फुर्सत नहीं है। बचपन में की गई इस तरह की तुलना से भाइयों और बहनों के बीच एक-दूसरे के प्रति प्रतिद्वंद्वी बनने की भावना पनपने लगती है और कई बार दूरियां आ जाती हैं। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, वैसे-वैसे उनमें ईर्ष्या बढ़ती जाती है। जबकि भाई-बहन के शौक अलग-अलग होते हैं। उनमें कपड़े किताबें, खिलौनों को लेकर भी कम झगड़े होते हैं, इसलिए उनके बीच संबंध मधुर रहते हैं।
==============================================================जानिए ज्योतिष और भाई बहन का सम्बन्ध ---

ज्योतिष शास्त्र मे मंगल ग्रह को भाई से सम्बंधित माना गया है । यदि आपके जीवन मे जमीन,प्लॉट सुख नही मिल रहा, बार बार लो बी पी की शिकायत हो, ब्लड सम्बन्धी कोई समस्या आ रही हो ,तो अवश्य ही आपके भाई से आपके सम्बन्ध सुधारने की नितांत आवश्यकता है।छोटे भाई बहनों के जन्म के बारे में लग्न कुंडली में निम्न समीकरणों पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है - 1 लग्न व लग्नेश 2 तृतीय भाव व तृतीयेश 3 पंचम भाव (तृतीय से तृतीय) व पंचमेश 4 कारक मंगल 5 गोचर के ग्रह शनि, गुरु, मंगल व चंद्र ||
ज्योतिष में इसका विचार करने ले लिए द्रेष्काण् कुंडली का प्रयोग किया जाता है । द्रेष्काण लग्न का स्वामी यदि पुरुष ग्रह हो तो तो जातक को छोटे भाई का सुख होता है और यदि स्त्री ग्रह हो तो पहले बहन होती है ।इसके साथ इस बात का भी विचार कर लेना चाहिये की यदि जन्म लग्नेश पुरुष ग्रह हो और मित्र ग्रह से युक्त और शुभ भाव में शुभ सिथति में हो तो जातक को भाई का सुख एवम् सहयोग मिलता है ।
जन्म लग्नेश स्त्री ग्रह हो मित्र ग्रह से युक्त और शुभ प्रभाव में हो तो बहनो से सुख अवम सहयोग प्राप्त होता है ।द्रेष्काण् लग्न शुभ ग्रहों से युक्त हो य इसका लग्नेश केंद्र य त्रिकोण में शुभ ग्रहों से युक्त या दिरस्ट हो तो भाई दीर्घायु सुखी अवम संम्पन् होता है ।यदि इस लग्न का स्वामी लग्नेश का मित्र हो तो भाई से मधुर सम्बन्ध और शत्रु हो तो भाई से कटु सम्बन्ध होते है ।यदि द्रेषकाण् लग्न मे पापी ग्रह हो य शत्रु ग्रह हो य इस लग्न का स्वामी 6/8/12भाव में हो अवु पापो ग्रहों से युक्त य दिरसट हो तो भाई दुखी रोगी कस्टि होता है ।द्रेष्काण् लग्न में जितने पुरुष ग्रह हो उतने भाई और जितने स्त्री ग्रह हो उतनी बहन होती है । लेकिन आज के आधुनिक परिवार नियोजन के युग मे ये बात पूर्ण रूप से लागू हो जरूरी नही ।लग्नेश और द्रेष्काण् लग्नेश का जैसा सम्बन्ध हो जातक का वैसा ही अपने भाई बहनो के साथ होता है । इन सबके साथ जन्म लग्न कुंडली के तीसरे भाव से छोटे भाई बहन और ग्यारवें भाव से बड़े भाई बहन का विचार किया जाता है । मंगल भाई का कारक तो बुद्ध बहन का कारक होता है। कुंडली ले अध्ययन के समय इनकी प्लेसमेंट भी अपना महत्व रखती है ।
कुंडली का तीसरा और ग्यारहवाँ घर भाई और बहन के रिश्ते का होता है।तीसरा घर छोटे भाई-बहन का तो ग्यारहवा घर बड़े भाई-बहन का घर होता है।बड़े भाई का कारक बृहस्पति तो छोटे भाई का कारक मंगल होता है।बहन का कारक बुध ग्रह है।जिन व्यक्तियो की कुंडली का तीसरा भाव, इस भाव का स्वामी और कारक मंगल शुभ और बली अवस्था में होता है उन व्यक्तियो को अपने छोटे भाईयो का स्नेह, प्रेम और सहयोग अधिक प्राप्त होता।इसी तरह यदि तीसरा भाव, इस भाव का स्वामी और कारक बुध शुभ और बलवान स्थिति में हो तब छोटी बहन का प्रेम स्नेह, सहयोग अधिक प्राप्त होता है।इस भाव भावेश और छोटे भाई के कारक मंगल जितने शुभ या शुभग्रहों के प्रभाव व बली स्थिति में होंगे उतने ही अच्छे सम्बन्ध अपने छोटे भाइयो से रहते है।यह स्थिति बड़े भाई या बहन की कुंडली में होने पर बड़े-भाई इस सम्बन्ध में अनुकूल परिणाम मिलते है।
इसी तरह आपके छोटे-भाई की कुंडली में भी ग्यारहवाँ भाव, ग्यारहवे भाव का स्वामी और बड़े भाई के कारक बृहस्पति और बहन के कारक बुध बली और शुभ स्थिति में होंगे तब दोनों भाई बहनो का रिश्ता अत्यंत मधुर और श्रेष्ठ होगा।ऐसे योग में भाई-बहनो को एक दूसरे का सहयोग अधिक मिलता है।भाई-बहन दोनों की कुंडली में से किसी एक की कुंडली में यदि बड़े भाई या कुंडली में तीसरे स्थान, इस स्थान के स्वामी और कारक भाई के लिए मंगल और बहन के लिए बुध यदि सब अशुभ, पाप ग्रहो से पीड़ित या दूषित अवस्था में होंगे तब या तो छोटे-भाई बहन का सुख, सहयोग, स्नेह अधिक प्राप्त नही होता या छोटे भाई या बहन होते ही नही है।इसी प्रकार कारक ग्रहो को देखते हुए बड़े-भाई बहन के सम्बन्ध में ग्यारहवे स्थान से उनके सुख, प्रेम, स्नेह या बड़े-भाई बहन का न होना का विचार किया जाता है।
भाई-बहन के रिश्ते के सम्बन्ध में यह कुछ जानकारी देने का प्रयास किया गया है। जन्मकुंडली के अतिरिक्त द्रेष्काण कुंडली भाई-बहन के लिए मुख्य रूप से देखी जाती है।कई व्यक्तियो की जन्मकुंडली में भाई-बहन के सुख का योग ही नही होता फिर भी उन व्यक्तियो को अपने भाई बहन का सुख व स्नेह प्राप्त होता है इसके लिए उनकी द्रेष्काण कुंडली में भाई-बहनो के सुख के योग व स्थितियां बनी हुई होती है।
वर्तमान समय का एक खतरनाक सच---
प्रिय पाठकों/मित्रों, आज के समय में किसी को अच्छे बुरे की परवाह नहीं है और सभी लोग अंधों की तरह अपने स्वार्थों की पूर्ती करने में लगे हुए हैं. हम रोज़ ही अखबारों में पढ़ते रहते हैं की फलां स्त्री का अनैतिक यौन समबन्धों के कारण क़त्ल हो गया, फलां के साथ वैसा हो गया |पंचम भाव और पंचम का उपनक्ष्त्र स्वामी विवाह पूर्व प्रेम सम्बन्ध, शारीरिक सम्बन्ध आदि के होते है अन्य बातों के अलावा, शुक्र काम का मुख्य करक गृह है और रोमांस प्रेम आदि पर इसका अधिपत्य है. मंगल व्यक्ति में पाशविकता और तीव्र कामना भर देता है और शनि गुप्त रास्तों से कामाग्नि की पूर्ती करने को प्रेरित करता है ||
“Astrology and Human Sex life” पुस्तक में Robson ने लिखा है : यदि शुक्र पर मंगल की द्रष्टि हो , दोनों गृह एक दुसरे की राशियों में हो तो व्यक्ति का अपनी बहिन या भाई या रक्त सम्बन्धियों से यौन सम्बन्ध स्थापित होता है. और साथ ही यदि शुक्र के साथ चन्द्रमा हो – पुरुष की कुंडली में , तो वह अपनी बहिन या अन्य निकट सम्बन्धियों से यौन सम्बन्ध स्थापित करता है. यदि वही शुक्र गुरु के साथ हो स्त्री की कुंडली में तो वह अपने भाई या अन्य निकट सम्बन्धियों से सम्बन्ध स्थापित करती है |
शुक्र पर शनि की द्रष्टि अथवा शनि शुक्र के मध्य नक्षत्र परिवर्तन हो तो वह सम्बन्धियों से यौन सम्बन्ध दर्शाता है.स्त्री की कुंडली में यह पुत्र अथवा दामाद से सम्बन्ध दर्शाता है और यदि सूर्य की जगह चन्द्र हो और शुक्र मंगल सूर्य के पहले हों तो यह पुरुष की कुंडली में पुत्री अथवा बहु और स्त्री की कुंडली में पिता, चाचा अथवा अन्य सम्बन्धियों से यौन सम्बन्ध प्रदर्शित करता है |
एक सुशील स्त्री के बारे में गुरूजी श्री कृष्णामूर्ति जी ने कहा है की यदि सप्तम भाव का उपनक्ष्त्र स्वामी शुक्र , शनि अथवा मंगल न हो और वह शनि शुक्र मंगल के नक्षत्र में न विराजमान हो तो वह स्त्री पूर्ण चरित्रवान होगी.यदि उसका लग्न लाभेश के नक्षत्र मैं हो और उसपर गुरु की द्रष्टि हो तो वह निश्चित ही पूर्ण रूप से संयमित होगी|
कुंडली का अष्टम भाव अन्य बातों के अलावा यौन संबंधों और क्रिया से सम्बन्ध रखता है |यदि किसी व्यक्ति का १,५,११ भाव का सम्बन्ध मंगल शुक्र शनि से हो , वह स्वामित्व भी हो सकता है और राशी नक्षत्र और उपनक्ष्त्र के रूप में भी हो सकता है और मंगल शुक्र १ और ११ के कार्येष गृह हो सकते हैं जिन पर शनि की द्रष्टि पड़ रही हो तब निश्चित ही व्यक्ति के अन्दर , चाहे स्त्री हो या पुरुष , उन्मुक्तता की भावना रहेगी और दशा अंतर आने पर वह इन कृत्यों में लिप्त होकर ही रहेगा |
===================================================दोस्तों, अंत मै हम अपनी छवि,अपने दोस्तों मै अपनी इमेज बनाने आदि मे लाखो रूपये बर्बाद कर देते है, लेकिन एक तरफ यदि हमारा भाई कमजोर है, किसी कारोबार मे उसे सफलता नही मिल रही, कुछ परेशानी मे हो तो आगे बढ़े और उसका हाथ थामे और सिर्फ इतना ही कह दें की मै तेरे साथ खड़ा हूँ,देखिये कितना मजबूत समझेगा ।
हजारो रिश्ते बनाने की अपेक्षा चन्द ऐसे रिश्ते ही बनाये जो निभा सके ।

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