बहुत महत्वपूर्ण सम्बन्ध है जल का मनुष्य के जीवन में

बहुत महत्वपूर्ण सम्बन्ध है जल का मनुष्य के जीवन में
जानिए वैदिक ज्योतिष अनुसार चंद्रमा का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध(युति) और चन्द्रमा का जल (पानी) से सम्बन्ध--- प्रिय मित्रों/पाठकों, वैदिक फलित ज्‍योतिष में अनुसार चन्‍द्रमा को मूलत: जल का प्रतिनिधि‍ ग्रह माना गया है और हमारे फलित ज्‍योतिष शास्‍त्र का निर्माण करने वाले मनीषियों ने चन्‍द्रमा को इसीलिए जल का कारक ग्रह माना होगा, क्‍योंकि चन्‍द्रमा रात्रि में बहुत ही शीतल प्रकाश बिखेरता है और हमारे पुराने मनीषियों ने सोंचा होगा कि चन्‍द्रमा पर बहुत सारा जल होने की वजह से ही वहां से आने वाला प्रकाश इतना शीतल होता है। लेकिन Modern Science ने अपने अपोलो मिशन में इस बात को साबित किया है कि चन्‍द्रमा एक सूखा व वीरान प्रदेश है, जहां जल नाम की कोई चीज नहीं है। इसलिए Astronomers के अनुसार चन्‍द्रमा का जल से कोई सम्‍बंध नहीं है। सभी ग्रहों के अपने-अपने चन्‍द्रमा होते है, लेकिन पृथ्‍वी का इकलाैता चन्‍द्रमा, सूर्य के बाद पृथ्‍वी के लिए दूसरा सबसे प्रमुख ग्रह है, क्‍योंकि ये रात्रि के समय पृथ्‍वी पर अपना अमृतमय प्रकाश बिखेरता है। अलग-अलग ग्रहों के चन्‍द्रमा, अपने ग्रह का एक पूर्ण परिभ्रमण करने में अलग-अलग समय लेते हैं और इसी कड़ी में हमारा चन्‍द्रमा, पृथ्‍वी का एक पूर्ण परिभ्रमण करने में 27 दिन लगाता है। जो जल अन्तरिक्ष में उत्पन्न होता है , जो जल नदी में बहता है , जो जल नहर , कुए आदि के रूप में खोदने से उत्पन्न होता है , जो जल झरनों आदि के रूप में स्वयं उत्पन्न होता है और जो समुद्र में जाकर मिल जाने वाला है , दिव्य गुणों से संपन्न ये सभी प्रकार के जल इस लोक में हमारी रक्षा करे | तात्पर्य यह है की जल ही हमारा रक्षक है | जल से ही प्रारंभ भी है और प्रारब्ध भी | जल स्रष्टि का आदि तत्व है | वह न केवल जीवन को धारण करता है , बल्कि स्वयं जीवन है | जल मानव की मुलभुत आवश्यकता है | जल तत्व की उचित स्थिति , भण्डारण व् उपयोग से जीवन में सुख , सम्रद्धि व् सफलता मिलती है | व्रहतासन्हिता में भू गर्भ जल का पता लगाने व् वर्षा सम्बन्धी योगो के बारे में विस्तृत वर्णन मिलता है | इसमे वर्षा , आंधी , तूफान , अतिवृष्टि व् अकाल आदि की जानकारी व् वर्षा के पूर्वानुमान के लिए अनेक विधिया दी गयी है | उनमे से एक है - सप्त नाडी चक्र | दरअसल हमारे ऋषि मुनियों ने अभिजित सहित आकाश मंडल के २८ नक्षत्रो को सात नाड़ियो- चांडा , वायु , दाह , सौम्या , नीरा , जला व् अमृता में बाटा गया है | यह चक्र इस सिद्दांत पर आधारित है की जलदायक नक्षत्रो से यदि जल दायक गृह मेल खाते है तो वर्षा सुनिश्चित है | रोहिणी वस् , सप्त नाडी चक्र व् सूर्य के आद्रा नक्षत्र में प्रवेश के समय गृह नक्षत्र की स्थिति से वर्षा का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | इससे फसलो की पैदावार की स्थिति , अतिवृष्टि के कारन बाधा आदि का पूर्वानुमान लगाना भी संभव है | ज्योतिष में पुन्य व् परोपकार के लिए नवम भाव देखा जाता है चूँकि चद्रमा जल का कारक है ,अत:कुए तालाब आदि बनवाना ,प्याऊ लगवाना ,दूध व् सफ़ेद चीजो का दान चन्द्रमा व् नवम भाव को सुद्रढ़ करने के उपाय है | भारतीय ज्योतिष व् लोक परंपरा में जल को संकल्प व् साक्षी का दर्जा दिया जाता है | जल से अघर्य देना जल छिड़क कर स्वस्तिवाचन करना हमारी परंपरा के अंग है | भोजन से पूर्व प्रार्थना , पवित्रता के लिए जल का प्रयोग करना आदि भारतीय ज्योतिषी की विशेषता है | एसा कोई धार्मिक अनुष्ठान नहीं जिसमे जल कलश का पूजन न होता हो | इस कलश में सभी पवित्र नदियो तीन देवो , सात द्वीपों पृथ्वी व् सात समुन्द्रों का आव्हान किया जाता है | इस प्रकार यह ब्रम्हाण्ड का प्रतिक बन जाता है | जल तत्व का सम्बन्ध कर्क , वृश्चिक व् मीन राशियों से है | अत : ये राशिया जल तत्व राशिया मानी जाती है | जल तत्व का सम्बन्ध जन्म कुंडली के चतुर्थ , अष्टम व् द्वादश भाव से माना जाता है | जल तत्व वाले जातक अति भावुक , संवेदनशील व् ऐसी राशियों के जातको से अधिक भाव प्रवण होते है | ज्योतिष के अनुसार चन्द्रमा जल व् मन का कारक है | यह हमारी मानसिक स्थिति पर गहरा प्रभाव डालता है | यह जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव पर अधिपत्य रखता है , जो हमारी सुख सम्रद्धि का कारक है | हमारी मानसिक शांति , आर्थिक स्थिति व् सुख के कारक चन्द्रमा का घर में जल के प्रवाह व् उपयोग के साथ सहज सम्बन्ध है | चन्द्रमा हमारे नकद धन का कारक भी है | ऐसा देखा गया है की यदि किसी घर में पानी की कमी हो तो वहा धन स्त्रोतों में भी दिक्कत आती है | वराहमिहिर व् वृहत्संहिता में जमीं के नीचे पानी होने की जो प्रम्मानिक पहचाने बताई है वे आज भी प्रासगिक है |आज जल संकट के समय में इसकी खोज में ज्योतिष के जल सम्बन्धी सूत्रों की गहरी प्रसिंगिता है |पवित्र नदिया ,सरोवरों में स्नान करना ,उनकी आरती उतारना आदि केवल कर्म कांड भर नही है |यही कर्म कांड यह सकेत भी देते है की जल पावित है |और उसे पर्वित्र रखने में ही भलाई हैं || वैदिक ज्योतिष (फलित ज्‍योतिष) में चन्‍द्रमा को कल्‍पनाओं का कारण माना गया है क्‍योंकि कल्‍पनाओं की गति, प्रकाश की गति से भी अधिक तेज होती है और इसीलिए चन्‍द्रमा को वेदों में चन्‍द्रमा मनसो जात: (चन्‍द्रमा मानव मन की तरह) कहा गया है यानी चन्‍द्रमा को मन का स्‍वामी कहा गया है और फलित ज्‍योतिष के अनुसार माना जाता है कि चन्‍द्रमा ही मानव मन को सर्वाधिक प्रभावित करता है।चन्‍द्रमा का जल व जल से सम्‍बंधित चीजों जैसे कि समुद्र, जलाशय, वर्षा ऋतु आदि पर अधिक होता है। साथ ही वास्‍तु-शास्‍त्र में चन्‍द्रमा को व्‍याव्‍य दिशा का स्‍वामी माना जाता है क्‍योंकि वायु भी चन्‍द्रमा की तरह ही बहुत तेज गति से गमन करता है और बहुत ही चंचल होता है। पौराणिक आख्यानों में जल के जन्म के बारे में पहला ही जवाब मिला कि ‘ब्रह्मा की तरलता से जल बना।’ निश्चित रूप से पौराणिक आख्यान अथवा पुराण कथाएँ आदिम कथाओं से बहुत आगे की चीज हैं। पौराणिक मानव ने कार्य-कारण विधि से विचार कर जल और अन्य मिथकों को बहुत अधिक व्यवस्थित रूप दिया। इस काल में सारे निकष तर्कपूर्ण तरीके से खोजे गये। आदिम मिथकों के संकेत मात्र इन कथाओं में और अधिक विस्तारित हुए। यही कारण है कि इन मिथकों पर लोगों का अधिक विश्वास देखा जाता है। लोग इन्हें सच की तरह लेते हैं और उस सच की पूजा करते हैं। प्रलय की कथा मूल रूप से जल की ही कथा है। अन्त में जल ही बचता है और फिर शुरु होती है सृष्टि बनने की नई कहानी। सृजन की नई संभावनाओं के बीज प्रलय के बाद जल में बचे होते हैं। ब्रह्मा की इच्छा से जल (नर) में विष्णु का जन्म हुआ। जल यानी नार ही जलायन हो गया, जो ‘नारायण’ कहलाया। नार यानी जल ही जिनका घर हो, वह ‘नारायण’ है। ‘क्षीरसागर के आदि जल में भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर आनन्दपूर्वक सोये थे। एक दिन उनके मन में यह भावना उत्पन्न हुई कि मैं ‘एक हूँ – अनेक हो जाऊँ।’ तभी उनकी नाभि से एक कमलनाल उत्पन्न हुआ, जिसके फूल में से ब्रह्मा का जन्म हुआ, जिसे प्रजापति कहा गया। इन प्रजापति ने समूची सृष्टि का निर्माण किया। ब्रह्मा ने देवताओं की सृष्टि करने के बाद जल के जीव उत्पन्न किये परन्तु उनके पास खाने के लिए कुछ न था, अतः वे ब्रह्मा के पास गये औऱ उन्होंने उनसे भोजन जुटाने की प्रार्थना की। आवश्यक प्रबन्ध करने के बाद ब्रह्मा ने अपनी संतान से कहा कि उन्हें जल की रक्षा करनी चाहिए। यह सुनकर जल के जीवों में से कुछ ने कहा कि वे जल की उपासना करेंगे औऱ दूसरों ने प्रजापति को जल की रक्षा का वचन दिया। इस पर प्रजापति ब्रह्मा ने जल के जीवों को दो जातियों में विभाजित कर दिया। जल की उपासना करने वालों को उन्होंने यक्ष कहा और जल की रक्षा करने वालों को राक्षस। (विश्व प्रसिद्ध मिथक एवं पुराण कथाएँ से) भारतीय मिथकों में त्रिदेव-ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों की सर्वाधिक महत्ता है। शिव सबसे अधिक लोकप्रिय और प्रमुख मिथक पात्र हैं। ऋग्वेद में शिव को रूद्र कहा गया है। प्रलय की कथा का लय अन्ततः जलराशि में होता है। हिमालय की सबसे ऊँची चोटी का केवल शिखर बचता है। जहाँ सृष्टि बीजों से भरी मात्र एक नाव मनु के साथ बचती है। धीरे-धीरे जल की बाढ़ उतरती जाती है। और पृथ्वी का भाग खुलता जाता है। अन्त में समुद्र और झीलों में पृथ्वी का तीन-चौथाई पानी रह जाता है। यही औसत जीवन के लिए सार्थक होता है और प्रलय के बाद दुनिया की फिर शुरुआत होती है। मनु-शतरुपा सर्वत्र बीज डालते हैं औऱ मनु से मनुष्य की उत्पत्ति होती है। यही कथा आदम और हव्वा के साथ दोहराई जाती है। आदम से आदमी बना। बाइबिल में सात दिन में सृष्टि बनने की कथा कही गई है। प्रथम दिन स्वर्ग और पृथ्वी का निर्माण हुआ। आश्चर्यजनक यह है कि बाइबिल में पृथ्वी से पहले स्वर्ग के निर्माण का नाम गिनाया गया है अथवा दोनों एक साथ बने होंगे। पहले स्वर्ग की कल्पना अद्भुत है। अंधकार को विदा करके प्रकाश की स्थापना हुई। प्रकाश को दिन औऱ अंधकार को रात कहा गया। दूसरे दिन जमीन के नीचे और आकाश के ऊपर का जल बना। यहाँ भी बाइबिल की यह बहुत सुन्दर कथा बुनी गई है कि जमीन का पानी और पृथ्वी का पानी अलग-अलग हैं। हालाकि सच यह है कि पृथ्वी का ही पानी आसमान में पहुँचता है, लेकिन इससे बारिश की जबर्दस्त कल्पना बनती है। तीसरे दिन अंतरिक्ष, सूर्य, चन्द्र, तारे आदि बनाये। इस प्रकार पेड़-पौधे, जीव और मनुष्य से सात दिन में पृथ्वी भर गई। बेबीलोनिया कथा में लगातार सात दिन और सात रात प्रलय मचने की बात कही गई है। उत्तानपिश्तिम (मनु) की विशाल नौका उमड़ते हुए बाढ़ के जल पर तूफानी हवाओं से भटकती और हिचकोले खाती रही। जल में ‘नारायण’ का पहली बार जब प्रवेश हुआ तब नारायण की शक्ति से एक विराट स्वर्ण अण्ड का प्रादुर्भाव हुआ। नारायण जल में शेषनाग की शैय्या पर एक वर्ष रहे। उस समय के वर्ष में कितने दिन हो सकते हैं, इस बात से ही पता लग सकता है कि उस समय ब्रह्मा का एक दिन एक हजार वर्ष के बराबर होता था, इसे अधिक विस्तारित करने के लिए ब्रह्मा के एक पल तक में एक हजार वर्ष की मिथकों में कल्पना की गई है। भारतीय माइथालॉजी में समय को लेकर बहुत गंभीरता से हजारों वर्षों तक विचार-मंथन किया गया है। यहाँ तक कि भारतीय समय के यथार्थ को वैज्ञानिकता के दर्जे तक पहुँचा दिया गया है। ज्योतिष समय का सबसे विश्वसनीय वैज्ञानिकता के दर्जे तक पहुँचा दिया गया है। ज्योतिष समय का सबसे विश्वसनीय वैज्ञानिक सच है। जल, समय और ज्योतिष का बहुत गहरा सम्बन्ध है। जल के ज्वार भाटे का सम्बंध चन्द्रमा से है। सूर्य-चन्द्र ब्रह्मा की आँखें हैं। विराट स्वर्ण अण्ड को स्वयं ब्रह्मा ने दो टुकड़े कर दिये थे. ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मा का जन्म भी इसी स्वर्ण अण्ड से हुआ है। इसलिए उन्हें हिरण्यगर्भ भी कहा जाता है। स्वर्ण अण्ड के उन दो टुकड़ों में से एक से आकाश बनाया और दूसरे टुकड़े से पृथ्वी का निर्माण किया। पृथ्वी को जल पर स्थापित किया गया। हालांकि Modern Science भी इस बात को पूरी तरह से स्‍वीकार करता है कि पूर्णिमा व अमावस्‍या के समय जब चन्‍द्रमा, पृथ्‍वी के सर्वाधिक नजदीक होता है, तब पृथ्‍वी के समुद्रों में सबसे बड़े ज्‍वार-भाटा होते हैं और इतने बड़े ज्‍यार-भाटा का मूल कारण चन्‍द्रमा की गुरूत्‍वाकर्षण शक्ति ही है, जो कि मूल रूप से पृथ्‍वी के समुद्री जल काे ही सर्वाधिक आकर्षित करता है। यदि आपके घर में जल का संकट है या पानी की तंगी रहती है या माता से संबंध अच्छे नहीं हैं अथवा आपका वाहन प्रतिदिन खराब रहने लगता है, या आप अपनी पारिवारिक संपत्ति के लिए परेशान हैं तो आप समझ लीजिए कि चतुर्थ भाव दूषित है। इस दोष से मुक्ति पाने के लिए आप चावल की रवी सोमवार के दिन प्रात: अवश्य बनाएं और अपने परिवार सहित इसका सेवन करें यदि इसी समय कोई अतिथि आ जाए तो बहुत अच्छा शगुन है उसे भी यह खीर खिलाएंगे तो अति शुभ फल शीघ्र आपको प्राप्त होगा। Modern Science कहता है कि मानव का दिमाग मूल रूप से 80% पानी से बना होता है और हमारे भोजन द्वारा जीवन जीने के लिए जितनी भी उर्जा ये शरीर Generate करता है, उसकी 80% उर्जा का उपयोग केवल दिमाग द्वारा किया जाता है क्‍योंकि शरीर के काम करना बन्‍द कर देने (सो जाने, बेहोश हो जाने अथवा शिथिल हो जाने) पर भी दिमाग यानी मन अपना काम करता रहता है। यानी मन, मनुष्‍य के शरीर का सबसे महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा है, जिसकी वजह से ये तय होता है कि व्‍यक्ति जीवित है या नहीं। यदि व्‍यक्ति का मन मर जाए, तो शरीर जीवित होने पर भी उसे मृत समान ही माना जाता है, जिसे सामान्‍य बोलचाल की भाषा में कोमा की स्थिति कहते हैं और भारतीय फलित ज्‍योतिष के अनुसार मन का कारक ग्रह चन्‍द्रमा है। भारतीय फलित ज्‍योतिष में चन्‍द्रमा को ही मन का स्‍वामी इसलिए माना गया है क्‍योंकि चन्‍द्रमा, जल का स्‍वामी है, इसलिए जहां कहीं भी जल की अधिकता होगी, उसे चन्‍द्रमा प्रभावित करेगा ही क्‍योंकि Modern Scientists द्वारा Proved ज्‍यार-भाटा की घटना से ये साबित है कि चन्‍द्रमा जल को आकर्षित यानी प्रभावित करता है और Modern वैज्ञानिकों ने ही ये भी साबित किया है कि हमारे दिमाग का 80% हिस्‍सा मूलत: जल है। तो यदि चन्‍द्रमा का प्रभाव समुद्र के जल पर पड़ता है, तो निश्चित रूप से मनुष्‍य के मन पर भी पड़ना ही चाहिए और यदि चन्‍द्रमा का प्रभाव समुद्र में होने वाले बड़े ज्‍वार-भाटा का कारण है, तो मनुष्‍य के मन में होने वाले विचारों के ज्‍यार-भाटा का कारण भी चन्‍द्रमा ही है। भारतीय फलित ज्‍योतिष के अनुसार चन्‍द्रमा वैश्‍य (वणिज या बनिया) जाति का है, इसलिए जिन लोगों पर चन्‍द्रमा का प्रभाव अधिक होता है, वे अच्‍छे व्‍यापारी हो सकते हैं। साथ ही चन्‍द्रमा को चर (Movable) प्रकृति का माना गया है, इसलिए चंद्र प्रभावित व्‍यक्ति काफी चंचल स्‍वभाव के व बहुत ही तेज गति से Decision Change करने वाले होते हैं। ये किसी एक जगह पर बैठकर लम्‍बे समय तक कोई काम नहीं कर सकते। यानी चंद्रमा से प्रभावित व्‍यक्ति लम्‍बे समय तक एक ही Profession में नहीं रह सकते । उदाहरण के लिए ये कोई दुकान लगाकर नहीं बैठ सकते जहां लगातार एक ही जगह पर बैठकर Customers के आने का Wait करना होता है। इनकी वाणी काफी मीठी यानी अच्‍छी होती है और ऐसे लोगोंं की सफलता/असफलता का एक मुख्‍य कारण इनकी वाणी भी होता है। चंद्रमा प्रभावित व्‍यक्ति सुन्‍दर व गौरे रंग के होते हैं और अक्‍सर औरतों की तरह काफी शर्मीले भी होते हैं क्‍योंकि चंद्रमा को फलित ज्‍योतिष में एक स्‍त्री ग्रह माना जाता है। चन्‍द्रमा को सोम वार का स्‍वामी माना जाता है और अंक शास्‍त्र के अनुसार अंक 2 और 7 पर चंद्रमा का अत्‍यधिक प्रभाव होता है।चन्द्रमा जिस भाव में बैठा होता है वहाँ से शिर्फ़ सातवें भाव को देखता है। चन्द्रमा वृष राशि में उच्च होता है तथा वृश्चिक राशि में नीच होता है। किसी के जन्म-कुंडली में यदि चन्द्रमा उच्च का होता है यानि वृष राशि में होता है तो वह व्यक्ति अलंकार-प्रिय, मिष्ठान भोजी, विलासी, माननीय, कोमल ह्रदय वाला, विदेश-यात्रा करनेवाला, यात्रा-प्रिय, सुखी और चपल होता है। ऐसे व्यक्ति को माता, सास, दादी या किसी औरत के साथ अन्याय या अपमान नहीं करना चाहिये नहीं तो उसके उच्च ग्रह अपना शुभ प्रभाव देना छोड़ देते हैं। यदि चन्द्रमा अपनी नीच राशि अर्थात वृश्चिक राशि में होता है तो इसके विपरीत फल प्राप्त होते है। फलित ज्‍योतिष के अनुसार सूर्य और बुध, चन्‍द्रमा के अच्‍छे मित्र हैं, जबकि मंगल, गुरू, शुक्र एवं शनि सम है व चंद्रमा के लिए बुध शुभ है। जबकि चन्‍द्रमा स्‍वयं किसी भी अन्‍य ग्रह को अपना शत्रु नहीं मानता, हालांकि शनि व शुक्र, चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं और इसीलिए जब व्‍यक्ति की जन्‍म-कुण्‍डली के चन्‍द्रमा को शनि प्रभावित करता है, तो उसे शनी की ढैय्या व शनी की साढ़ेसाती के नाम से जाना जाता है। जिस तरह से फलित-ज्‍योतिष में चंद्रमा किसी को अपना शत्रु नहींं मानता, उसी तरह से चन्‍द्रमा से प्रभावित व्‍यक्ति भी अपने जीवन में किसी को अपना शत्रु नहीं मानता, लेकिन फिर भी कई लोग उसे अपना शत्रु मानते हैं व उसे समय-समय पर तरह-तरह से नुकसान पहुंचाने की कोशिश भी करते हैं। फलित ज्‍योतिष में चन्‍द्रमा को माता का कारक भी माना जाता है, इसलिए जिन लोगों का चन्‍द्रमा शुभ स्थिति में होता है, उन्‍हें उनकी माता का विशेष प्रेम प्राप्‍त होता है, जबकि दु:खद स्थिति वाले चन्‍दमा प्रभावित लोगों को अपनी माता के सुख की कमी का अनुभव करना पड़ता है। इसके अलावा मन व जल से सम्‍बंधित विभिन्‍न प्रकार की बीमारियों जैसे कि मूत्र संबंधी रोग, दिमागी खराबी, पागलपन, हाईपर टेंशन आदि का सम्‍बंध भी चन्द्रमा से ही माना जाता है। ============================================================== चन्द्र की अन्य गृहों से युति/सम्बन्ध का प्रभाव(दो ग्रहों युति का फल)—- चंद्र+मंगल– शत्रुओं पर एवं ईर्ष्या करने वालों पर, सफलता प्राप्त करने के लिए एवं उच्च वर्ग (सरकारी अधिकारी) विशेषकर सैनिक व शासकीय अधिकारी से मुलाकात करने के लिए उत्तम रहता है।यह योग व्यक्ति को जिद्‍दी व अति महत्वाकांक्षी बनाता है। यश तो मिलता है, मगर स्वास्थ्‍य हेतु यह योग हानिकारक है। रक्त संबंधी रोग होते हैं। चंद्र+बुध– धनवान व्यक्ति, उद्योगपति एवं लेखक, सम्पादक व पत्रकार से मिलने या सम्बन्ध बनाने के लिए। चंद्र+शुक्र– प्रेम-प्रसंगों में सफलता प्राप्त करने एवं प्रेमिका को प्राप्त करने तथा शादी- ब्याह के समस्त कार्यों के लिए, विपरीत लिंगी से कार्य कराने के लिए। अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में चन्द्र व शुक्र की युति होने पर व्यक्ति का जीवनसाथी बुद्धिमान हो सकता है. उसके पास धन, वैभव होने कि भी संभावना बनती है. व्यक्ति के जीवनसाथी के सुविधा संपन्न होने की भी संभावना बनती है. चंद्र+गुरु– अध्ययन कार्य, किसी नई विद्या को सीखने एवं धन और व्यापार उन्नति के लिए। चंद्र+शनि– शत्रुओं का नाश करने एवं उन्हें हानि पहुंचाने या उन्हें कष्ट पहुंचाने के लिए।जब चन्द्र-शनि की सप्तम भाव में युति हो तो (कुण्डली के विवाह भाव में चन्द्र व शनि दोनों एक साथ स्थित हों तो) व्यक्ति का जीवनसाथी प्रतिष्ठित परिवार से होता है. चंद्र+सूर्य– राजपुरूष और उच्च अधिकारी वर्ग के लोगों को हानि या उसे उच्चाटन करने के लिए। चन्द्र सूर्य की युति का फल– इन दोनों की युति होने पर व्यक्ति के अंदर अहम की भावना आ जाती है. कुटनीति से व्यक्ति अपना काम निकालने की कोशिश करता है. व्यक्ति क्रोधी हो सकता है एवं व्यवहार में कोमलता की कमी रहती है. मन में अस्थिर एवं बेचैन रहता है. मन की शांति एवं व्यवहार कुशलता बढ़ाने के लिए चन्द्र के उपाय स्वरूप सोमवार के दिन भगवान शिव का जलाभिषेक करना चाहिए. मोती धारण करने से भी लाभ मिलता है. चन्द्र मंगल की युति का फल– मंगल भी सूर्य के समान अग्नि प्रधान ग्रह है. चन्द्र एवं मंगल की युति होने पर व्यक्ति के स्वभाव में उग्रता आ जाती है. मंगल को ग्रहों में सेनापति कहा जाता है जो युद्ध एवं शक्ति प्रदर्शन का प्रतीक होता है. जैसे युद्ध के समय बुद्धि से अधिक योद्धा बल का प्रयोग करते हैं, ठीक उसी प्रकार इस युति वाले व्यक्ति परिणाम की चिंता किये किसी भी कार्य में आगे कदम बढ़ा देते हैं जिससे इन्हें नुकसान भी होता है. वाणी में कोमलता एवं नम्रता की कमी के कारण यह अपनी बातों से कभी-कभी मित्रों को भी शत्रु बना लेते हैं. हनुमान जी की पूजा करने से इन्हें लाभ मिलता है. चन्द्र बुध की युति का फल– चन्द्रमा शांत एवं शीतल ग्रह है और बुध बुद्धि का कारक ग्रह. जिस व्यक्ति की कुण्डली में चन्द्र बुध की युति होती है वे काफी समझदार होते हैं, परिस्थितयों के अनुसार खुद को तैयार कर लेने की इनमें अच्छी क्षमता पायी जाती है. अपनी बातों को ये बड़ी ही चतुराई से कह देते हैं. वाक्पटुता से काम निकालने में भी यह माहिर होते हैं. चन्द्र गुरू की युति का फल– नवग्रहों में गुरू को मंत्री एवं गुरू का पद दिया गया है. मंत्री का कार्य होता है सलाह देना. सलाह वही दे सकता है जो ज्ञानी होगा. यानी इस युति से प्रभावित व्यक्ति ज्ञानी होता है और अधिक बोलने वाला भी होता है. ये सलाहकार, शिक्षक एवं ऐसे क्षेत्र में अच्छी सफलता प्राप्त कर सकते हैं जिनमें बोलने की योग्यता के साथ ही साथ अच्छे ज्ञान की भी जरूरत होती है.गुरु का साथ चन्द्रमा के साथ होने से जातक मे माता के भाव जाग्रत रहते है,जातक के माता पिता का साथ रहता है जातक अपने ग्यान को जनता मे बांटना चाहता है। चन्द्र शुक्र की युति का फल– चन्द्रमा के साथ शुक्र की युति होने पर व्यक्ति सुन्दर एवं आकर्षक होता है. इनमें सुन्दर दिखने की चाहत भी अधिक होती है. वाणी में कोमलता एवं विचारों में कल्पनाशीलता भी इनमें पायी जाती है. इस युति से प्रभावित व्यक्ति कलाओं में रूचि लेता है. चन्द्र शनि की युति का फल– जन्म कुण्डली में चन्द्रमा शनि के साथ युति सम्बन्ध बनाता है तो व्यक्ति न्यायप्रिय होता है. इस युति से प्रभावित व्यकति मेहनती होता है तथा अपनी मेहनत एवं ईमानदारी से जीवन में आगे बढ़ता है. इनके स्वभाव में अस्थिरता पायी जाती है, छोटी-छोटी असफलताएं भी इनके मन में निराशा उत्पन्न करने लगती है. चन्द्र राहु की युति का फल– कुण्डली में चन्द्र के साथ राहु की युति होने पर व्यक्ति रहस्यों एवं कल्पना की दुनियां खोया रहता है. इनमें किसी भी विषय को गहराई से जानने की उत्सुकता रहती है जिससे अपने विषय के अच्छे जानकार होते हैं. इनके स्वभाव में एक कमी यह होती है कि अफवाहों एवं कही सुनी बातों से जल्दी विचलित हो जाते हैं. चन्द्र केतु की युति का फल– चन्द्र केतु की युति कुण्डली में होने पर व्यक्ति जोश में कार्य करने वाला होता है.जल्दबाजी में कार्य करने के कारण इन्हें अपने किये कार्य के कारण बाद में पछताना भी पड़ता है लेकिन अपनी ग़लतियों से सीख लेना इनकी अच्छी आदत होती है.ज्योतिषी के रूप में कैरियर बनाने का विचार करें तो यह अच्छे ज्योतिषशास्त्री बन सकते हैं.सच्चाई एवं अच्छाई के लिए आवज़ उठाने के लिए चन्द्र केतु की युति वाले व्यक्ति सदैव तैयार रहते हैं. ============================================================ वास्तु और चन्द्रमा---- आप सभी जानते हैं की वास्तु चक्र में ठीक ऊपर उत्तर दिशा होती है। वास्तु पुरुष के अनुसार पूर्व एवं उत्तर दिशा अगम सदृश्य और दक्षिण और पश्चिम दिशा अंत सदृश्य है। ज्योतिष के अनुसार पूर्व दिशा में सूर्य एवं उत्तर दिशा में बृहस्पति कारक है। पश्चिम में शनि और दक्षिण में मंगल की प्रबलता है। वास्तुशास्त्र में भवन का निर्माणकरते समय जल का भंडारण किस दिशा में हो यह एक महत्वपूर्ण विषय है शास्त्रों के अनुसार भवन में जल का स्थान ईशान कोण (नॉर्थ ईस्ट) में होना चाहिए परन्तु उतर दिशा,पूर्व दिशा और पश्चिम दिशा में भी जल का स्थान होसकता है परन्तु आग्नेय कोण में यदि जल का स्थान होगा तो पुत्र नाश,शत्रु भय और बाधा का सामना होता है दक्षिण पश्चिम दिशा में जल का स्थान पुत्र की हानि,दक्षिण दिशा में पत्नी की हानि,वायव्य दिशा में शत्रु पीड़ा और घर का मध्य में धन का नाश होता है | चन्द्र ग्रह का प्रभाव भवन की वायव्य दिशा में होता हैं. वायव्य दिशा का सम्बन्ध वायु तत्व से होता हैं इसलिए यह माना जाता हैं कि जिस घर का मुख इस दिशा की ओर होगा उस घर में रह रहे लोगों का मन भी वायु की तरह कभी स्थिर नहीं रहेगा. ऐसे घर के सदस्यों का मन हमेशा चंचल, अथिर तथा भावनाओं में जल्द बहने वाला होता हैं, इन्हें घूमना – फिरना, मौज - मस्ती करना अच्छा लगता हैं. ये भोजन में अधिक हरी सब्जियों को खाना और नमकीन पदार्थों का सेवन करना अधिक पसंद करते हैं | वास्तु शास्त्र में भूखंड के या भवन के दक्षिण और पश्चिम दिशा की और कोई नदी या नाला या कोई नहर भवन या भूखंड के समानंतर नहीं होनी चाहिए परन्तु यदि जल का बहाव पश्चिम से पूर्व की और हो या फिर दक्षिण से उतर की और तो उतम होता है भवन में जल का भंडारण आग्नेय, दक्षिण पश्चिम, वायव्य कोण, दक्षिण दिशा में ना हो, जल भंडारण की सबसे उतम दिशा ईशान कोण है ====================================================== पानी के इस प्रयोग से कुछ ही दिन में जग जाता है भाग्य............................ 1. किस्मत कहते हैं किस्मत हर किसी पर मेहरबान नहीं होती, लेकिन जिस पर होती है उसे फिर पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं होती। 2. भाग्य बहुत से लोगों को लगता है कि उनकी किस्मत उनका साथ नहीं देती, यकीन मानिए अगर आप भी इसी श्रेणी में आते हैं तो आप अकेले नहीं हैं। अकसर लोगों को यही लगता है कि उनका भाग्य उनके साथ नहीं है। 3. मेहनत और ईमानदारी सफलता पाने के लिए मेहनत और ईमानदारी का साथ बहुत जरूरी है लेकिन अगर पूरी मेहनत और लगन के बावजूद सफलता प्राप्त नहीं हो पा रही है तो इसके लिए कुछ शास्त्रीय उपाय हैं जो आपकी इस समस्या का समाधान कर सकते हैं। 4. ज्योतिष शास्त्र ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर व्यक्ति की कुंडली में बैठे ग्रह उसका साथ नहीं दे रहे हैं तो निश्चित तौर पर व्यक्ति की परेशानी लाजमी है। 5. अशुभ प्रभाव अशुभ प्रभाव वाले ग्रहों को नियंत्रित कर या उन्हें प्रसन्न करना बहुत जरूरी है, ताकि बुरे परिणामों से बचा सके। 6. कुंडली कुंडली में बैठे ग्रहों के दुष्प्रभाव को टालने के लिए ज्योतिष शास्त्र में उपाय मौजूद हैं जो वाकई कारगर हैं। 7. बर्तन में पानी रात को सोते समय एक बर्तन में पानी भरकर उसे अपने बिस्तर के पास रख दें। ब्रह्म मुहूर्त में उठकर वह पानी बाहर फेंक दें। 8. शिवलिंग इसके अलावा प्रतिदिन शिवलिंग पर दूध और जल से अभिषेक करें। 9. ईर्ष्या अपने मन में किसी के लिए भी ईर्ष्या का भाव ना रखें और ना ही किसी को दुखी करें। ============================================================ सेहत के लिए अमृत है घड़े का पानी---- गरीबों का फ्रिज घड़े का पानी स्‍वास्‍थ्‍य के लिहाज से अमृत होता है, लेकिन इसे ऐसे ही अमृत नहीं बोलते, बल्कि वास्‍तव में घड़े का पानी सेहत के लिहाज से बहुत फायदेमंद है, इसके फायदों को जानकर घड़े का पानी पीना शुरू कर देंगे आप। 1:- अमृत है घड़े का पानी पीढ़ियों से, भारतीय घरों में पानी स्‍टोर करने के लिए मिट्टी के बर्तन यानी घड़े का इस्तेमाल किया जाता है। आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जो इन्हीं मिट्टी से बने बर्तनो में पानी पीते है। ऐसे लोगों का मानना है कि मिट्टी की भीनी-भीनी खुशबू के कारण घड़े का पानी पीने का आनंद और इसका लाभ अलग है। दरअसल, मिट्टी में कई प्रकार के रोगों से लड़ने की क्षमता पाई जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार मिट्टी के बर्तनों में पानी रखा जाए, तो उसमें मिट्टी के गुण आ जाते हैं। इसलिए घड़े में रखा पानी हमें स्वस्थ बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। 2:- चयापचय को बढ़ावा नियमित रूप से घड़े का पानी पीने से प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने में मदद मिलती है। प्‍लास्टिक की बोतलों में पानी स्‍टोर करने से, उसमें प्‍लास्टिक से अशुद्धियां इकट्ठी हो जाती है और वह पानी को अशुद्ध कर देता है। साथ ही यह भी पाया गया है कि घड़े में पानी स्‍टोर करने से शरीर में टेस्‍टोस्‍टेरोन का स्‍तर बढ़ जाता है। 3:- पानी में पीएच का संतुलन घड़े का पानी पीने का एक और लाभ यह भी है कि इसमें मिट्टी में क्षारीय गुण विद्यमान होते है। क्षारीय पानी की अम्लता के साथ प्रभावित होकर, उचित पीएच संतुलन प्रदान करता है। इस पानी को पीने से एसिडिटी पर अंकुश लगाने और पेट के दर्द से राहत प्रदान पाने में मदद मिलती हैं। 4:- गले को ठीक रखे आमतौर पर हमें गर्मियों में ठंडा पानी पीने की तलब होती है और हम फिज्र से ठंडा पानी ले कर पीते हैं। ठंडा पानी हम पी तो लेते हैं लेकिन बहुत ज्‍यादा ठंडा होने के कारण यह गले और शरीर के अंगों को एक दम से ठंडा कर शरीर पर बहुत बुरा प्रभावित करता है। गले की कोशिकाओं का ताप अचानक गिर जाता है जिस कारण व्याधियां उत्पन्न होती है। गले का पकने और ग्रंथियों में सूजन आने लगती है और शुरू होता है शरीर की क्रियाओं का बिगड़ना। जबकि घडें को पानी गले पर सूदिंग प्रभाव देता है। 5:- गर्भवती महिलाओं के लिए फायदेमंद गर्भवती को फ्रिज में रखे, बेहद ठंडे पानी को पीने की सलाह नहीं दी जाती। उनसे कहा जाता है कि वे घड़े या सुराही का पानी पिएं। इनमें रखा पानी न सिर्फ उनकी सेहत के लिए अच्‍छा होता है, बल्कि पानी में मिट्टी का सौंधापन बस जाने के कारण गर्भवती को बहुत अच्‍छा लगता है। 6:- वात को नियंत्रित करे गर्मियों में लोग फ्रिज का या बर्फ का पानी पीते है, इसकी तासीर गर्म होती है। यह वात भी बढाता है। बर्फीला पानी पीने से कब्ज हो जाती है तथा अक्सर गला खराब हो जाता है। मटके का पानी बहुत अधिक ठंडा ना होने से वात नहीं बढाता, इसका पानी संतुष्टि देता है। मटके को रंगने के लिए गेरू का इस्तेमाल होता है जो गर्मी में शीतलता प्रदान करता है। मटके के पानी से कब्ज ,गला ख़राब होना आदि रोग नहीं होते। 7:- विषैले पदार्थ सोखने की शक्ति मिटटी में शुद्धि करने का गुण होता है यह सभी विषैले पदार्थ सोख लेती है तथा पानी में सभी जरूरी सूक्ष्म पोषक तत्व मिलाती है। इसमें पानी सही तापमान पर रहता है, ना बहुत अधिक ठंडा ना गर्म। 8:- कैसे ठंडा रहता है पानी मिट्टी के बने मटके में सूक्ष्म छिद्र होते हैं। ये छिद्र इतने सूक्ष्म होते हैं कि इन्हें नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता। पानी का ठंडा होना वाष्पीकरण की क्रिया पर निर्भर करता है। जितना ज्यादा वाष्पीकरण होगा, उतना ही ज्यादा पानी भी ठंडा होगा। इन सूक्ष्म छिद्रों द्वारा मटके का पानी बाहर निकलता रहता है। गर्मी के कारण पानी वाष्प बन कर उड़ जाता है। वाष्प बनने के लिए गर्मी यह मटके के पानी से लेता है। इस पूरी प्रक्रिया में मटके का तापमान कम हो जाता है और पानी ठंडा रहता है।

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