जानिए शादी विवाह में इसलिए जरूरी है फेरे लेना पाणिग्रहण संस्कार---

डेस्क -हिन्दू धर्म में पाणिग्रहण संस्कार को सामान्य रूप से ‘विवाह’ के नाम से जाना जाता है. अगर विवाह को शादी या मैरिज कहे तो बिल्कुल गलत है. विवाह का कोई समानार्थी शब्द नहीं है. विवाह= वि+वाह, अत: इसका शाब्दिक अर्थ है- विशेष रूप से (उत्तरदायित्व का) वहन करना. विवाह यानी पाणिग्रहण एक संस्कार है जिसका मतलब है कि वर द्वारा नियम और वचन स्वीकारोक्ति के बाद कन्या अपना हाथ वर के हाथ में सौंपे और वर अपना हाथ कन्या के हाथ में सौंप दे. इस संस्कार के अंतर्गत दोनों एक-दूसरे का पाणिग्रहण करते हैं. फिर कालांतर में इस रस्म को ‘कन्यादान’ कहा जाने लगा, जो कि अनुचित है. यहाँ नीचे लिखे मंत्र के साथ कन्या अपना हाथ वर की ओर बढ़ाए और वर उसे अंगूठा सहित (समग्र रूप से) पकड़ ले. फिर भावना करें कि दिव्य वातावरण में परस्पर मित्रता के भाव सहित वे एक-दूसरे के उत्तरदायित्व को स्वीकार कर रहे हैं. ॐ यदैषि मनसा दूरं, दिशो नुपवमानो वा. हिरण्यपणोर् वै कर्ण, स त्वा मन्मनसां करोतु असौ.. 16 संस्कारों को हिन्दू धर्म में जीवन का सबसे महत्वपूर्ण अंग माना जाता है. जब तक विवाह में 7 फेरे नहीं हो जाते, तब तक विवाह संस्कार पूर्ण नहीं माना जाता. इसमें न एक फेरा कम, न एक ज्यादा. और इसी प्रक्रिया में दोनों 7 फेरे लेते हैं जिसे ‘सप्तपदी’ भी कहा जाता है. सभी सातों फेरे या सप्तपदी 7 वचन के साथ लिए जाते हैं. इसमें हर फेरे का एक वचन होता है जिसे पति-पत्नी जीवनभर साथ निभाने का वादा करते हैं. सभी 7 फेरे ही हिन्दू विवाह की स्थिरता का मुख्य स्तंभ होते हैं. और अग्नि के 7 फेरे लेकर और ध्रुव तारे को साक्षी मानकर दो तन, मन तथा आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं. हिन्दू धर्म के आलावा अन्य सभी धर्मों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का करार होता है जिसे कि विशेष परिस्थितियों में तोड़ा भी जा सकता हैl मगर हिन्दू धर्म में विवाह बहुत ही भली-भांति सोच- समझकर किए जाने वाला संस्कार है. विवाह के इस संस्कार में वर और वधू सहित सभी पक्षों की सहमति लिए जाने की प्रथा है. बल्कि इतना नहीं इस विवाह संस्कार में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संबंध से अधिक आत्मिक संबंध होता है और इस संबंध को अत्यंत पवित्र माना गया है. पंडित दयानंद शास्त्री


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