नेता समझ ले वे जनप्रतिनिधि हैं राजा नहीं

नेता समझ ले वे जनप्रतिनिधि हैं राजा नहीं

(राजीव )उत्तर प्रदेश के चुनाव में जुबानी जंग जारी है विकास का मुद्दा पूरी तरह से गायब किसी भी पार्टी के पास न तो कोई विजन है और न ही अपने वायदों को पूरा करने के लिए फंड कहाँ से आएगा इसके लिए कोई ठोस रणनीति ।
अब राजनितिक पार्टियां अपने पार्टी के मैनेजमेंट को सँभालने के बजाये दूसरे पार्टी के मैनेजमेंट से परेशान हैं ।
अब ऐसे में केवल दो विचारधारा प्रदेश में काम कर रही है एक जो बीजेपी को जिता सके और एक जो बीजेपी को हरा सके ।
इस विचारधारा से प्रदेश का भला कैसे होगा लोगो को जागरूक किया जा रहा है मतदान के लिए लेकिन सही बात यह है कि चुनाव मुद्दों पर आधारित न होकर केवल जातिगत समीकरण पर आधारित हो गया है ।
मतदाता केवल भावनाओं में फंस कर ठगा जा रहा है ।
आज जरुरत है कि ऐसी सरकार चुने जो जनता के प्रति पूरी तरह से जवाबदेह हो और उसके पास ठोस एजेंडा हो । मतदान करना बेहद जरुरी है और यह भी जरुरी है कि मतदाताओं को यह भी जागरूक करें कि वह जनप्रतिनिधि चुने न की राजा जैसा की अभी हो रहा है ।
जैसे ही जनप्रतिनिधि चुने जाते हैं वह ऐसा व्यवहार करने लगते है जैसे वे लोकतंत्र से न चुनकर राजशाही से आये हो और यही खामियाजा उन्हें चुनाव के समय भुगतना पड़ता है जब जनता उन्हें अपने दरवाजे से भगा देती है ।
वर्तमान सत्कार के मंत्रियों और विधायकों कि यही स्थिति है जिस जनता ने उन्हें विकास के लिए चुना व्वाही जनता अब दुत्कार रही है कहीं पथराव हो रहे हैं तो कहीं गाली गलौज ।
अब नेताओं को भी समझ लेना चाहिए कि वे जनता के प्रतिनिधि है न की राजा ।

लेखक आपकी खबर के संपादक हैं


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