जानिए क्यों होता है जन्म कुंडली में देव गुरु बृहस्पति का विशेष महत्व ?

जानिए क्यों होता है जन्म कुंडली में देव गुरु बृहस्पति का विशेष महत्व ?
डे स्क -भारतीय वैदिक ज्योतिष में कुण्डली के बारह भावों में से केंद्र (पहला, चौथा, सत्व, दसवां भाव) स्थान तथा नवग्रहों में से बृहस्पति दोनों का ही बड़ा विशेष महत्व है | ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की देव गुरु बृहस्पति को ज्ञान, विवेक, शिक्षा, सात्विकता, सामाजिक प्रतिष्ठा, परिपक्वता, अपने गुरु, सच्चरित्रता, प्रबंधन क्षमता, समाधान शक्ति, धर्म, अध्यापन, सकारात्मक ऊर्जा आदि का कारक माना गया तो वहीँ कुंडली में श्रेष्ठ और शुभ बताये गए केंद्र भावों में भी लग्न अर्थात कुंडली में प्रथम भाव को सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विशेष माना गया है लग्न भाव को शरीर बल, रूप, आकृति प्रकृति, स्वभाव, प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा, यश, तेज, आत्मा, आत्मविश्वाश आदि का कारक माना गया है।ब्रह्मांड में गुरु को बड़ा ग्रह माना गया है, जिसका रंग पीला है । यह ग्रह ज्ञान, शिक्षा, विस्तार व विद्वता का प्रतीक है । वृहस्पति एक शुभ और सतोगुणी ग्रह है। क्यूँ कि यह आकर में सबसे बड़ा है , अन्य ग्रहों से , इसलिए इसे गुरु की संज्ञा भी दी गयी है और वृहस्पति देवताओं के गुरु भी है। वृहस्पति बुद्धि ,विद्वता ,ज्ञान ,सदगुणों ,सत्यता ,सच्चरित्रता ,नैतिकता ,श्रद्धा ,समृद्धि ,सम्मान .दया एवं न्याय का नैसर्गिक कारक होता है। किसी भी स्त्री के लिए यह पति ,दाम्पत्य ,पुत्र और घर -गृहस्थी का कारक होता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की किसी भी जन्मकुंडली में वैसे तो बृहस्पति का केंद्र में होना ही बहुत शुभ माना गया है पर इसमें भी लग्न में स्थित बृहसपति को श्रेष्ठ और सर्वाधिक शुभ परिणाम देने वाला माना गया है ज्योतिषीय नियमों के अनुसार यह बृहस्पति के सबसे अच्छी स्थिति होती है, सर्वप्रथम तो लग्न में बृहस्पति को पूर्ण दिक्बल प्राप्त होने से यहाँ बृहस्पति बहुत बली स्थिति में होता है केवल अपनी नीच राशि “मकर” के अतिरिक्त सभी स्थितियों में बृहस्पति का लग्न में होना व्यक्ति को बहुत शुभ परिणाम देता है।ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार यदि कुण्डली में बृहस्पति लग्न में स्थित हो तो ऐसा व्यक्ति बहुत ज्ञानवान, विवेकशील और परिपक्व स्वाभाव का होता है ऐसे व्यक्ति में ज्ञान की प्रधानता तो होती ही है साथ ही ऐसे व्यक्ति में आंतरिक सकारात्मक ऊर्जाओं की भी अधिकता होती है जिससे उसके व्यक्तित्व में एक सकारात्मक आभा और आकर्षण बना रहता है, लग्न में बृहस्पति होने पर व्यक्ति में एक शिक्षक के अच्छे गुण विद्यमान होते हैं और ऐसा व्यक्ति अपने ज्ञान और विवेक के द्वारा सामाजिक सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त करता है तथा ऐसे व्यक्ति में प्रत्येक परिस्थिति को मैनेज करने की अच्छी क्षमता होती है।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की किसी जातक की कुंडली में लग्न में बृहस्पति होने पर जातक को दीर्घायु या पूर्णायु प्राप्त होती है, लग्न में स्थित बृहस्पति को कुंडली में अनेको दोषो को नष्ट करने वाला माना गया है, जिन लोगो की कुण्डली में लग्न में बलवान बृहस्पति हो तो ऐसे व्यक्तियों में एक विशेष प्रकार की समाधान शाक्ति होती है ऐसे व्यक्ति दूसरे लोगों की समस्याओं का समाधान करने का विशेष गुण रखने से समाज में एक विशेष स्थान और स्नेह प्राप्त करते हैं, लग्न में बृहस्पति यदि स्व, उच्च राशि (धनु, मीन, कर्क) में हो तो इसे राजयोग तुल्य ऐश्वर्य प्रदान करने वाला होता है ऐसे में व्यक्ति के ज्ञान और सद्गुणों की कीर्ति लोकप्रसिद्ध होती है, ऐसा व्यक्ति समाजसेवा और धार्मिक कार्यों में भी अग्रणी होता है | ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की किसी जन्म कुंडली में बृहस्पति लग्न में होने पर कुंडली में पँचम भाव (बुद्धिस्थान) साप्तमभाव (विवाह स्थान) और भाग्य स्थान को अपनी शुभ दृष्टि से बहुत बली कर देता है जिससे व्यक्ति के जीवन में बहुत सी सकारात्मक वृद्धि होती है। लग्न में बृहस्पति होना विशेष रूप से बौद्धिक, ज्ञानवर्धक, प्रबंध और उपचार कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिए बहुत शुभ होता है।
वृहस्पति एक शुभ और सतोगुणी ग्रह है। क्यूँ कि यह आकर में सबसे बड़ा है , अन्य ग्रहों से , इसलिए इसे गुरु की संज्ञा भी दी गयी है और वृहस्पति देवताओं के गुरु भी है। वृहस्पति बुद्धि ,विद्वता ,ज्ञान ,सदगुणों ,सत्यता ,सच्चरित्रता ,नैतिकता ,श्रद्धा ,समृद्धि ,सम्मान .दया एवं न्याय का नैसर्गिक कारक होता है। किसी भी स्त्री के लिए यह पति ,दाम्पत्य ,पुत्र और घर -गृहस्थी का कारक होता है।
जन्म- कुंडली में शुभ वृहस्पति किसी भी स्त्री को धार्मिक ,न्याय प्रिय और ज्ञान वान पति -प्रिय और उत्तम संतान वती बनाता है। स्त्री विद्वान होने के साथ -साथ बेहद विनम्र भी होती है।
कमजोर वृहस्पति हो तो पुखराज रत्न धारण किया जा सकता है पर किसी ज्योतिषी की राय ले कर ही। गुरुवार का व्रत रखा जा सकता है। सोने का धारण,पीले रंग का धारण और पीले भोजन सेवन किया जा सकता है। एक चपाती पर एक चुटकी हल्दी लगाकर खाने से भी वृहस्पति अनुकूल हो सकता है।
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जानिए बृहस्पति देव की पूजा गुरुवार को कैसे करें---
भगवान बृहस्पति सभी देवताओं के गुरू हैं, कैसी भी समस्या हो ये सभी का समाधान करते हैं । अगर आपकी कुंडली में गुरु ग्रह का दोष है जिसके कारण आपकी शादी और भाग्य जैसी समस्याओं का सामना करना पड रहा है और यदि आपके अनूकुल स्थितियां होते हुए भी आपके विवाह में समस्या उत्पन्न हो रही है तो गुरुवार का दिन आपके लिए शुभ हो सकता है। गुरु दोष के शान्ति के लिए गुरुवार को कुछ उपाय करें जिससे आपको अपने काम में सफलता जरुर मिलेगी, क्योंकि गुरुवार का दिन देवताओं के गुरु ब्रहस्पति देव का होता है। गुरु आपके वैवाहिक और भाग्य का कारक ग्रह है। साथ ही यह दिन साई बाबा का भी होता है अगर आप उन्हे मानते हो तो उनकी भी पूजा कर सकते है। जानिए ऐसे उपाय के बारें में जिसे गुरुवार के दिन करनें से गुरु ग्रह के दोष दूर हो जाएगे साथ ही आपको धन-धान की प्राप्ति होगी।
गुरूवार को भगवान बृहस्पति देव की पूजा का विधान माना गया है। इस दिन पूजा करने से धन, विद्या, पुत्र तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। परिवार मे सुख और शांति का समावेश होता है। ज्योतिषों का मानना है कि जिन जातकों के विवाह में बाधाएं उत्पन्न हो रही हो उन्हें गुरूवार का व्रत करना चाहिए।
इस दिन बृहस्पतेश्वर महादेव जी की पूजा होती है। दिन में एक समय ही भोजन करें। पीले वस्त्र धारण करें, पीले पुष्पों को धारण करें। भोजन भी चने की दाल का होना चाहिए। नमक नहीं खाना चाहिए। पीले रंग का फूल, चने की दाल, पीले कपड़े और पीले चन्दन से पूजा करनी चाहिए। पूजन के बाद कथा सुननी चाहिए। इस व्रत से बृहस्पति जी खुश होते है तथा धन और विद्या का लाभ होता है। यह व्रत महिलाएं आवश्य करें। व्रत मे केले का पूजन होता है।
गुरुवार का दिन भगवान बृहस्पति की पूजा के लिए शुभ माना गया है। शास्त्रों के अनुसार भगवान बृहस्पति साधु और संतों के देव माने गए हैं और इसी तरह पीला रंग संपन्नता का प्रतीक भी है। यही वजह है कि पीला रंग इस दिन को समर्पित किया गया है। गुरुवार का व्रत बड़ा ही फलदायी माना जाता है। गुरुवार के दिन जगतपालक श्री हरि विष्णुजी की पूजा का विधान है। कई लोग बृहस्पतिदेव और केले के पेड़ की भी पूजा करते हैं। बृहस्पतिदेव को बुद्धि का कारक माना जाता है। केले के पेड़ को हिन्दू धर्मानुसार बेहद पवित्र माना जाता है।
बृहस्पतिवार के दिन विष्णु जी की पूजा होती है। यह व्रत करने से बृहस्पति देवता प्रसन्न होते हैं। स्त्रियों के लिए यह व्रत फलदायी माना गया है। इस व्रत को करने से मन की इच्छाएं पूरी होती हैं और बृहस्पति महाराज प्रसन्न होते हैं तथा धन, पुत्र विद्या तथा मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है। परिवार को सुख शान्ति मिलती है, इसलिए यह व्रत सर्वश्रेष्ठ और अति फलदायक, सब स्त्री व पुरुषों के लिए है। इस व्रत में केले का पूजन करना चाहिए। कथा और पूजन के समय तन, मन, क्रम, वचन से शुद्ध होकर जो इच्छा हो बृहस्पतिदेव की प्रार्थना करनी चाहिए। उनकी इच्छाओं को बृहस्पतिदेव अवश्य पूर्ण करते हैं ऐसा मन में दृढ़ विश्वास रखना चाहिए।
शास्त्रों के मुताबिक बृहस्पति की उपासना ज्ञान, सौभाग्य व सुख देने वाली मानी गई है। दरअसल, गुरु ज्ञान व विद्या के रास्ते तन, मन व भौतिक दु:खों से मुक्त जीवन जीने की राह बताते हैं। जिस पर चल कोई भी इंसान मनचाहे सुखों को पा सकता है। हिन्दू धर्म शास्त्रों में कामना विशेष को पूरा करने के लिए खास दिनों पर की जाने वाली गुरु पूजा की परंपरा में गुरुवार को भी देवगुरु बृहस्पति की पूजा का महत्व बताया गया है। ऐसी पूजा के शुभ, सौभाग्य व मनचाहे फल के लिए गुरुवार व्रत व पूजा के कुछ नियमों को पालन जरूरी बताया गया है।
- गुरुवार व्रत किसी माह के शुक्ल पक्ष में गुरुवार व अनुराधा के योग से शुरू करना चाहिए।
- 1, 3, 5, 7, 9, 11 या 1 से 3 वर्ष या ताउम्र व्रत रखा जा सकता है।
- इस दिन हजामत यानी बाल न कटाएं व दाढ़ी न बनवाएं।
- व्रत नियमों में सूर्योदय से पहले जाग स्नान कर पीले वस्त्र पहनें।
- इस दिन केले के वृक्ष या इष्ट देव के समीप बैठ पूजा करें।
- गुरु और बृहस्पति प्रतिमा को पीली पूजा सामग्री जैसे पीले फूल, पीला चंदन, चने की दाल, गुड़, सोना, वस्त्र चढ़ाएं। पीली गाय के घी से दीप पूजा करें। पीली वस्तुओं का दान करें। कथा सुनें।
- भगवान को केले चढ़ाएं लेकिन खाएं नहीं।
- यथाशक्ति ब्राह्मणों को भोजन व दान दें।
- हर दरिद्रता व संकट टालने ही नहीं सपंन्नता को बनाए रखने के लिए भी यह व्रत करना चाहिए।
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जानिए क्या करें देव गुरु बृहस्पति की शुभता के उपाय-
01.-- ब्राह्मणों का सम्मान करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करे।
02.-- चने की दाल तथा केसर का मंदिर में दान करें, केसर का तिलक मस्तक पर लगाएं।
03.--- ज्ञानवर्द्धक पुस्तकों का योग्य व्यक्तियों को दान करें।
04. ----भगवान बह्मा का केले से पूजन करें।
05. ---कुल पुरोहित का सम्मान करके आशीर्वाद प्राप्त करें एवं यथा शक्ति स्वर्ण का दान करें।
06 .--बृहस्पति के उपाय हेतु जिन वस्तुओं का दान करना चाहिए उनमें चीनी, केला, पीला वस्त्र, केशर, नमक, मिठाईयां, हल्दी, पीला फूल और भोजन उत्तम कहा गया है। इस ग्रह की शांति के लए बृहस्पति से सम्बन्धित रत्न का दान करना भी श्रेष्ठ होता है। दान करते समय आपको ध्यान रखना चाहिए कि दिन बृहस्पतिवार हो और सुबह का समय हो।
07 .--दान किसी गरीब, ब्राह्मण, गुरू अथवा पुरोहित को देना विशेष फलदायक होता है। कमज़ोर बृहस्पति वाले व्यक्तियों को केला और पीले रंग की मिठाईयां गरीबों, पंक्षियों विशेषकर कौओं को देना चाहिए. ब्राह्मणों एवं गरीबों को दही चावल खिलाना चाहिए। रविवार और बृहस्पतिवार को छोड़कर अन्य सभी दिन पीपल के जड़ को जल से सिंचना चाहिए।
08 .--गुरू, पुरोहित और शिक्षकों में बृहस्पति का निवास होता है अत: इनकी सेवा से भी बृहस्पति के दुष्प्रभाव में कमी आती है। सोने वाले कमड़े में केला रखने से बृहस्पति से पीड़ित व्यक्तियों की कठिनाई बढ़ जाती है अत: इनसे बचना चाहिए।सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या टीका लगाना चाहिए।
09 .--ऐसे व्यक्ति को मन्दिर में या किसी धर्म स्थल पर निःशुल्क सेवा करनी चाहिए। किसी भी मन्दिर या इबादत घर के सम्मुख से निकलने पर अपना सिर श्रद्धा से झुकाना चाहिए।
10 .--गुरुवार के दिन मन्दिर में केले के पेड़ के सम्मुख गौघृत का दीपक जलाना चाहिए। गुरुवार के दिन आटे के लोयी में चने की दाल, गुड़ एवं पीसी हल्दी डालकर गाय को खिलानी चाहिए।
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||शुभम भवतु || कल्याण हो ||
पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री,

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