मिलिए यूपी पुलिस के अफसर की मेमसाहब से

मिलिए यूपी पुलिस के अफसर की मेमसाहब से

स्पेशल डेस्क लखनऊ - सौरभ शुक्ल - पुलिस की छवि आम तौर पर न तो मीडिया में न तो साहित्य में अच्छी दिखाई देती है जैसे ही पुलिस वालों की बात आती है लापरवाही व भ्रष्टाचार की चर्चा होने लगती है. लेकिन कहते है की सरस्वती मी की कृपा कब किसके ऊपर हो जाए ये कुछ नहीं कहा जा सकता है, भारी भरकम चेहरा और बदन पर पुलिस की वर्दी देख कर यही लगता है अरे ये पुलिस #UPPolice है बाप रे बाप.... लेकिन आज हम मिलाने जा रहे है एक ऐसे पुलिस अफसर से जो की अपनी नौकरी को बखूबी अंजाम देते है और उसके बाद लिखने का भी शौक रखता है, चर्चा में नया नाम ATS में तैनात पुलिस अफसर "संतोष कुमार तिवारी" का है जो की अपनी किताब "मेमसाब" के कारण चर्चा में है जिसका विमोचन उत्तर प्रदेश के राज्यपाल "राम नाइक" ने किया है

चर्चा में कुछ ख़ास इस लिए की यह किताब एक पुलिस अफसर ने लिखी है इसलिए पुलिस का दर्द संवेदनाएं और दमन भी इस किताब में साफ़ साफ़ दीखता है "अर्दली का सिपाही" भी एक ऐसी ही कहानी है. इस किताब में कई ऐसी कहानियां है जो दरोगा और सिपाहियों को जन नायक के रूप में पेश करती है. "मैं थानेदार" इस किताब में एक ऐसी ही कहानी है जिसमें पीड़ितों के पक्षधर पुलिस वालों को सम्मान और जनता का प्यार व समर्थन भी मिलता है इस पुस्तक में कईसी भी कहानियां है जिसको पढने के बाद ये कहानियां आप के दिल में उतरआयेगी जिसमें "कप्तान का दर्द" "कर्फु" और "खामोश राखी" कुछ ऐसी ही कहानियां है.

इस किताब को लिखने में इस पुलिस अफसर को करीब चार साल का समय लगा लेकिन गौर करने वाली बात ये है की जिस विभाग में हर समय आपा धापी मची रहती हो उसी विभाग में इस अफसर की कला को पहचानने वाले अफसर भी मौजूद है जिन अफसरों ने समय समय पर इस अफसर को प्रोत्साहित करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रक्खी इन्ही अफ्सरो की बदौलत ये अफसर यह किताब "मेमसाब" लिखने में कामयाब हुआ

ये पुलिस अफसर #UPPolice ATS में तैनात होने के साथ साथ 1090 जैसी महिला सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर अपनी राय रखते है जिसके लिए कई महिला स्कूलों और कॉलेजों में सुल्तानपुर में समय समय पर विभाग की तरफ से दौरा भी करते रहे और स्कूल के बच्चों को जागरूक भी किया करते है.

ये पुलिस अफसर गाजीपुर जिले के उस इलाके से आता है जिसे क्रातिकारियों की भूमि कहा जाता है जिस कारण कहीं न कहीं इस पुलिस अफसर के ऊपर भी उनका असर साफ़ साफ़ झलकता है कुछ अलग और नया करने की ललक ही इन्हें किताबें कहानियां लिखने के लिए प्रेरित करती है साथ ही साथ हम आपको एक बात और बता दें की यह पुलिस अफसर मुंबई के कुछ डाइरेक्टरों के लिए कहानी भी लिख रहे है और कुछ कहानियां वहां तक पहुच भी चुकी है जिनपर फिल्म बनाने का काम भी शुरू हो चूका है.

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