जानिए भूत प्रेत क्या, क्यों और कैसे दिखाते हैं अपना प्रभाव या असर

जानिए भूत प्रेत क्या, क्यों और कैसे दिखाते हैं अपना प्रभाव या असर
( कृपया पाठकगण ध्यान /सावधानी रखें-बिना गुरु या अनुभवी/सक्षम व्यक्ति के मार्गदर्शन में ही इस लेख में दिए गए प्रयोग करें |))
भूत-प्रेत के नाम से एक अनजाना भय लोगो की मन को सताता है। इसके किस्से भी सुनने को मिल जाते है और लोग बहुत रुचि व विस्मय के साथ इन्हें सुनते है और इन पर बनें सीरियल, फिल्मे देखते है व कहानियाँ पढ़ते हैं। भूत-प्रेत का काल्पनिक मनः चित्रण भी लोगों को भयभीत करता है-रात्रि के बारह बजे के बाद, अँधेरे में, रात्रि के सुनसान में भूत-प्रेत के होने के भय से लोग़ डरते हैं। क्या सचमुच भूत-प्रेत होते है ? यह प्रशन लोगों के मन में आता है ? क्योंकि इनके दर्शन दुर्लभ होते है, लेकिन ये होते है। जिस तरह से हम वायु को नहीं देख सकते, उसे महसूस कर सकते हैं, उसी तरह हम भूत को नहीं देख सकते पर कभी-कभी ये अचानक देखे भी जाते है। भूतों का अस्तित्व आज भी रह्स्य बना हुआ है। इसलिए इनके बारे में कोई भी जानकारी हमें रोमांच से भर देती है।कहते हैं की जीवित रहते हुए छोड़े गए अधुरे कार्यं, सांसारिकता से बेहद जुड़ाव तथा भौतिक चीजों के प्रति तीव्र लगाव भी मृत व्यक्ती की आत्मा को धरती की तरफ खीच लाते है। यह भी कहा जाता है ऐसी आत्माएं अपनी अदृश्य मौजूदगी से लेकर पारभासी छाया, धुंधली आकर्ति या फिर जीवितावस्था में जीवित लोगों के सामने प्रकट होती हैं।
आखिर भूत है क्या ? यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है। परंपरागत तौर पर यही माना जाता है कि भूत उन मृतको की आत्माएँ हैं, जिनकी किसी दुर्घटना, हिंसा, आत्महत्या या किसी अन्य तरह के आघात आकस्मिक मृत्यु हुई है। मृत्यु हो जाने के कारण इनका अपने स्थुल शरीर से कोई संबंध नहीं होता। इस कारण ये भूत-प्रेत देखे नहीं जा सकते। चूँकि हमारी पहचान हमारे शरीर से होती हैं और जब शरीर ही नहिं है तो मृतक आत्मा को देख पाना और पहचान पाना मुश्किल होता हैं। भूत-प्रेतों को ऐसी नकारात्मक सत्ताएं माना गया है, जो कुछ कारणों से पृथ्वी और दूसरे लोक बीच फँसी रहती हैं। इन्हे बेचैन व चंचल माना गाया है, जो अपनी अप्रत्याशित मौत के कारण अतृप्त हैं। ये मृतक आत्माएँ कई बार छाया, भूतादि के रूप में स्थानों के पीछे लॉग जाती हैं, जिनसे जीवितावस्था में इनका संबन्ध या मोह था।
एक सहज प्रश्न मन में उठता है की मरने के बाद जीवात्मा की गति क्या होती है ? वह कहाँ जाती है ? क्या सभी जीवात्माएं मरने के बाद भूत बनती है ? इस प्रश्न उत्तर है – नहीं। हिन्दू व सांख्य दर्शन के अनुसार, जीवन काल में किए गए हमारे कर्म व व्यवहारों के अनुसार यह निर्धारित होता है की शरीर कि मृत्यु होनें की बाद हमें क़्या बनना है। भूत-प्रेत बनकर निम्नलोकों में भटकना हैं या आगे कि यात्रा ज़ारी रखते हुए इससे लोको में जाना है।
हमारी मृत्यु के बाद जीवन को निर्धारित करने वाले कुछ अन्य कारक है, जैसे – जीवात्मा की मृत्यु का प्रकार कैसा हैं, यह स्वाभाविक है, शांतिपूर्ण है, उग्र है या दुर्घटना युक्त हैं। इसके अलावा मृत व्यक्ति की वंशजों द्वारा गया अंतिम संस्कार भी जीवात्मा की गति को प्रभावित करता है। जहाँ तक मृत व्यक्ति के क़ि बात है तो इस बारे में विभिन्न धर्म ग्रंथों में अनेक कारण बताए गए है, जैसे की अपूर्ण इच्छाएँ, लिप्साएँ, लोलुपताएँ, कई तरह के व्यक्तित्व विकार जैसे – क्रोध, लालच, भय, मन में ज्यादातर समय तक नकारात्मक विचार, उच्च स्तर का अहंकार, दूसरों को दुःख पहुंचाने का व्यवहार, परपीड़ा में सुख महसूस करने का भाव, आध्यात्मिक जीवन का अभाव आदि।
भूत-प्रेत दो तरह के होते है। पहले वे, जिनकी अकाल मृत्यु हो गई है और अपनी निर्धारित आयु पूरी होने तक वे भूत-प्रेत बनकर भटकते रहते है और दूसरी तरह के भूत वे होते है, जिनके बुरे कर्मों के कारण उन्हें भूत-प्रेत बनने की सजा मिलती है। सजा भुगतने वाले भूत-प्रेतो की आयु कम से कम 1000 साल होती है। भूत-प्रेतों के अंतर्गत भी कई योनियाँ हैं, जैसे-प्रेत, पिशाच, डाकिनी, शाकिनी, ब्रह्मराक्षस आदि।
भूत-प्रेतों के बारे में तरह-तरह के किस्से-कहानियाँ सुनने जाती हैं, लेकिन उनकी वास्तविक प्रकर्ति की बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध हुई है; क्योकि जिस तरह से भूत-प्रेत खुद को अभिव्यक्त करते है , वे तरीके अप्रत्याशित औऱ दूर्लभ है। ये सामन्यतः शोर,आवाज़े, सनसनाहट, गंध, वस्तुओं की उठा-पटक आदि के रूप में सामने आते है, जो कभी- अतिश्योक्तिपूर्ण, आलंकारिक और झूठ की गुंजाइश भी लिए होते है। इस बारे में हुए सर्वेक्षण ऐवं अध्ययन बताते है लगभग हर 10 में से एक व्यक्ति के पास भूतों को महसूस करने की क्षमता है। जो लोग सप्रयास तथा सक्रीय रूप से इन्हे देखने की कोशिश करते है, उन्हें इनमे सफलता मिलने कि कम से कम सँभावना होती है। बच्चों को इसका अनुभव व्यस्कों की तूलना में ज्यादा होता है। उम्र बढ़ने के साथ व्यस्कों मे इनके विरूद्ध अवरोध की यांत्रिकता विकसित हों जाती है। इसी तरह पुरुषों की तुलना में महिलाओं को इनकि मौजूदगी क्या अनुभव ज्यादा होता है।
भूत का एक अर्थ होता है-जो बीत गया। इसी तरह से भूत का संबंध भी अतीत कि गहराई से होता हैं। वही मृतात्मा भूत-प्रेत बनती है, जिसमें आसक्ति बहुत अधिक होती है ओर इसी काऱण वह अपने अतीत से जुडी होती है। भूत-प्रेत होते जरूर है, लेकिन इनसे डरने की जरूरत नहीं। ये हमारा कुछ बिगाड़ नहीं सकते; क्योंकि हम स्थूलशरीर में है और ये सूक्ष्मशरीर में। स्थूल व सूक्ष्मशरीर की सीमाएँ व मर्यादाएँ है, जिन्हें ये तोड़ नहीं सकते। फिर भी कुछ घटनाएँ ऐसी घटती है, जो इनके अस्तित्व की पहचान करातीं हैं। ऐसे में आवश्यकता मात्र जीवन के मूलभूत सिद्धान्तों को समझकर निरंतर शुभ कर्म करने की है, ताकि शरीर छूटने के उपरान्त अच्छे कर्मों का परिणाम अच्छा ही मिल सके।
लोगों का मानना है की भूत होते ही है .पर वो कैसे दिखाई देते है, कहां निवास करते है , क्या खाते - पीते है , दुनिया के लोगों को देख क्या अनुभव करते है ? इन सभी बातों को आज तक कोई नहीं जानता। पर लोगों का कहना है की भूत होते है, हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक बताया जा रहा है की प्रत्येक मानव जीव अपने जीवन की कर्म गति के फलस्वरूप अगली योनी को प्राप्त करता है । इन धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों के अनुसार लोगों का मानना है की व्यक्ति के अगले जन्म का निर्धारण उसके बीते जन्म के क्रिया -कलापों , किये गए कर्मों के अनुसार ही होता है .कर्मों के चलते ही व्यक्ति को इस संसार में 84 लाख योनियाँ भोगनी पड़ती है. पर यह प्रेत योनि इन सभी से बिलकुल भिन्न है. अब जानें कौन बनता है भूत -प्रेत - कहा जाता है की मानव जीव का जन्म होने से पहले ही उसके जीवन की तीन क्रियाओं का निर्धारण हो जाता है. जो है ,जन्म , विवाह , मृत्यु ,अब यदि व्यक्ति की मृत्यु किसी दुर्घटना से या आत्महत्या के कारण हो जाती तो हैं और किन्हीं अन्य कारणों बस निर्धारित समय से पहले हो जाती है तो वो भूत बनते हैं। और वे अपने जीवन की बची हुई शेष आयु को इस प्रेत योनी में भोगते है .इसके पश्चात ही वे अपने कर्मों के अनुसार स्वर्ग और नर्क तक पहुंचते हैं। इसके अतिरिक्त यदि व्यक्ति के मन में कोई सांसारिक कामना लोभ , मोह , ईर्षा ,द्वेष ,धन दौलत का लोभ, वासनाएं आदि मन में रह जाती है और उसकी मृत्यु हो जाती है तो वो भी प्रेत योनी को धारण करता है . हिन्दू धर्म के अनुसार कहा जाता है की किये गए कर्म - कांडों के अनुसार ही इन भूतों में भी बहुत सी प्रजातियां पाई जाती है जैसे अनुसार मरने भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वेताल और भी इसी तरह होते है.
भूत प्रेत बाधा निवारण की दृष्टि से पंचमुखी हनुमान की उपासना चमत्कारिक और शीघ्रफलदायक मानी गई है। पंचमुखी हनुमान जी के स्वरूप में वानर सिंह गरूड वराह तथा अश्व मुख सम्मिलित हैं और इनसे ये पांचों मुख तंत्रशास्त्र की समस्त क्रियाओं यथा मारण मोहन उच्चाटन वशीकरण आदि के साथ साथ सभी प्रकार की ऊपरी बाधा होने की शंका होने पर पंचमुखी हनुमान यन्त्र तथा पंचमुखी हनुमान लॉकेट को प्राणप्रतिष्ठित कर धारण करने से समस्या से शीघ्र ही मुक्ति मिल जाती है।
नौ ग्रहों में किसी की भी राहु से युति अथवा चंद्र व सूर्य की केतु से युति या सूर्य-शुक्र, मंगल-शनि शुक्र बृहस्पति अथवा गुरु-बुध या चंद्र-बुध आदि की युति होने पर उन श्रापों का अनुभव तथा निर्णय किया जा सकता है। इन ग्रहों की युतियों के भिन्न भिन्न भाव में होने के अलग अलग परिणाम हैं। जो भी हो उसका दंड उस व्यक्ति को ही भोगना पड़ता है जिसकी कुडली में ये दोष होता है। पर ये सारा जीवन ऋण शोधन जैसा ही है। हमें अपने पूर्व जन्म में अथवा हमारे पूर्वजों द्वारा किए गए कार्यों का परिणाम पितृऋण के रूप में भोगना पड़ता है।पृथ्वी के आसपास प्रेत शक्तियां और उनसे कैसे हो बचाव चोट लगने पर डॉक्टर के आने से पहले प्राथमिक उपचार की तरह ही प्रेत बाधा ग्रस्त व्यक्ति का मनोबल बढ़ाने का उपाय किया जाता है और कुछ सावधानियां बरती जाती हैं। ऐसा करने से प्रेत बाधा की उग्रता कम हो जाती है। कोई चाकू छुरी या कैंची उसके समीप रख दें और उसे बताएं नहीं। देवताओं के चित्र (हनुमान, दुर्गा या काली मां) टांग दें। गंगाजल छिड़ककर लोहबान, अगरबत्ती या धूप जला दें। इससे उसका मनोबल ऊंचा होगा।
पितृऋण का निर्णय होने पर उसके समाधान पर विचार करना चाहिए। उसमें गंगा स्नान गया श्राद्ध तीर्थ यात्रा तीर्थों में जाकर पितृ तर्पण श्राद्ध कर्म तथा तीर्थों पर दान आदि शामिल है।
युग तीर्थों (पुष्कर, प्रयागराज, कुरुक्षेत्र अथवा हरिद्वार) तथा ब्रहम कपाल, बदरीनाथ जेसे पुण्य स्थानों में जाकर पितृ गायत्री ब्रहम गायत्री आदि के मंत्रों के जप अनुष्ठान से पितृ दोषों का निवारण किया जा सकता है।
वैसे तो भारत के भिन्न भिन्न क्षेत्रों में भिन्न भिन्न लोक देवताओं की पूजा के माध्यम से इन दोषों को दूर करने के और अन्य भी मार्ग हैं। परन्तु उपर्युक्त स्थानों की शास्त्रियता सर्वमान्य है। पितरों को श्राद्ध में भोजन वस्त्र तर्पण गौ ग्रास काक बली स्वान बली आदि के परंपरागत प्रयोगों के द्वारा भी शांत किया जाता है। परन्तु दोष के अति विशेष होने पर सभी प्रकार के शास्त्रीय लौकिक और कृत परंपरा के अनुसार उपायों को करना चाहिए।
इस संदर्भ में लाल किताब में उल्लिखित नौ ऋणों की चर्चा भी जरूरी है। ऐसे प्रत्येक ऋण के प्रत्यक्ष लक्षण कारण और निवारण इस प्रकार हैं:- पितृ ऋण:- बिना कारण सरकार से परेशानी हृदय रोग नेत्र रोग शरीर में कमजोरी का बना रहना पितृ ऋण का लक्षण है। जब कुंडली में बृहस्पति 2, 5, 9, 12 भावों से बाहर हो जो कि गुरू के पक्के घर हैं तथा बृहस्पति स्वयं 3, 6, 7, 8, 10 भाव में और बृहस्पति के पक्के घरों (2, 5, 9, 12) में बुध या शुक्र या शनि या राहु या केतु बैठा हो तो व्यक्ति पितृ ऋण से पीड़ित होता है। समाधान के लिए विशेष रूप से परिवार के सभी लोग मिलकर के यज्ञ करें।
प्राणप्रतिष्ठा:- पंचमुखी हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र यंत्र तथा लॉकेट का पंचोपचार पूजन करें तथा इसके बाद समुचित विधि द्वारा उपरोक्त सामग्री को प्राणप्रतिष्ठित कर लें।
जानिए भूत प्रेत कैसे बनते हैं:-
इस सृष्टि में जो उत्पन्न हुआ है उसका नाश भी होना है व दोबारा उत्पन्न होकर फिर से नाश होना है यह क्रम नियमित रूप से चलता रहता है। सृष्टि के इस चक्र से मनुष्य भी बंधा है। इस चक्र की प्रक्रिया से अलग कुछ भी होने से भूत-प्रेत की योनी उत्पन्न होती है। जैसे अकाल मृत्यु का होना एक ऐसा कारण है जिसे तर्क के दृष्टिकोण पर परखा जा सकता है। सृष्टि के चक्र से हटकर आत्मा भटकाव की स्थिति में आ जाती है। इसी प्रकार की आत्माओं की उपस्थिति का अहसास हम भूत के रूप में या फिर प्रेत के रूप में करते हैं। यही आत्मा जब सृष्टि के चक्र में फिर से प्रवेश करती है तो उसके भूत होने का अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है। अधिकांशतः आत्माएं अपने जीवन काल में संपर्क में आने वाले व्यक्तियों को ही अपनी ओर आकर्षित करती है, इसलिए उन्हें इसका बोध होता है। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है वे सैवे जल में डूबकर बिजली द्वारा अग्नि में जलकर लड़ाई झगड़े में प्राकृतिक आपदा से मृत्यु व दुर्घटनाएं भी बढ़ रही हैं और भूत प्रेतों की संख्या भी उसी रफ्तार से बढ़ रही है।
जानिए भूत प्रेत कौन हैं:-
अस्वाभाविक व अकस्मात होने वाली मृत्यु से मरने वाले प्राणियों की आत्मा भअकती रहती है, जब तक कि वह सृष्टि के चक्र में प्रवेश न कर जाए, तब तक ये भटकती आत्माएं ही भूत व प्रेत होते हैं। इनका सृष्टि चक्र में प्रवेश तभी संभव होता है जब वे मनुष्य रूप में अपनी स्वाभाविक आयु को प्राप्त करती है।
जानिए क्यों ना जाएँ सुनसान जगहों पर -----
यदि आपको किसी जगह पर जाने से डर लगता है तो उन जगहों पर मत जाइए खास कर जो जगह सुन सान हो| अक्सर वैसी जगह पर क्रिमिनल्स लोग होने की संभावना पूरी हो सकती है| क्योंकि ऐसी जगह पर ही क्रिमिनल लोग छिपते हैं| और आम तौर पर वही लोग अफवाह उड़ा देते हैं ताकि कोई वहां ना आ पाएं|
साथ ही सुनसान जगह आपके दिमागी कमजोर उर डरपोक बना देती है और आपको ज्यादा डर लगता है. इतना ही नही कई लोग इतने डर जाते हैं की उन्हे सच में किसी के होने जैसा आभास होने लगता है| कुल मिलकर आपको सुनसान जगहों पर नही जाना है औरर इसी में आपकी भलाई भी होगी|
डरावनी बातों से रहें दूर---
यदि आपको पता है की डरावनी बातें सुन कर बाद मे आप डरेंगे तो ऐसी बातें कभी नही सुननि चाहिए| लेकिन फिर भी कुछ लोग ज़रूर सुनते हैं कारण है उनकी जिगयसा| यदि आपको अपने अंदर के भूत नुमा डर को निकलना है तो कभी भी भूत प्रेत आत्मा आदि बातों मे अपना समय व्यर्थ ना करें| और भी बहुत सी चीज़ें है दुनिया मे उन्हें जानिए ताकि आपका कुछ भला हो सके|
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जानिए भूत प्रेत से रक्षा/बचने के लिए क्या करें, क्या न करें:-
यादि आप फिर भी मानते है की भूत होते हैं तो हम आपकी सोच नही बदल सकते इसलिए आपको कुछ मंत्र और उपाय हम बता रहे हैं जो की बाबा या ज्ञानी लोग आपसे करने को कहते हैं| ये मंत्र कुल मिलकर आप में कॉन्फिडेन्स बढ़ांगे और आपके डर को कम करेंगे|
01. किसी निर्जन एकांत या जंगल आदि में मलमूत्र त्याग करने से पूर्व उस स्थान को भलीभांति देख लेना चाहिए कि वहां कोई ऐसा वृक्ष तो नहीं है जिस पर प्रेत आदि निवास करते हैं अथवा उस स्थान पर कोई मजार या कब्रिस्तान तो नहीं है।
02. किसी नदी तालाब कुआं या जलीय स्थान में थूकना या मल-मूत्र त्याग करना किसी अपराध से कम नहीं है क्योंकि जल ही जीवन है। जल को प्रदूषित करने स जल के देवता वरुण रूष्ट हो सकते हैं।
03. घर के आसपास पीपल का वृक्ष नहीं होना चाहिए क्योंकि पीपल पर प्रेतों का वास होता है।
04. सूर्य की ओर मुख करके मल-मूत्र का त्याग नहीं करना चाहिए।
05 .--अपने घर के बाहर काले घोड़े की नाल लगवायें| कहते हैं की इससे भूत प्रेत आपके घर के आस पास भटक भी नही पायेंगे|
06 .--ॐ का लोकेट या रुद्राक्ष गले मे धारण करने से भी फ़ायदा होता है| कहते हैं की घर के बाहर के मुख्य द्वार पर त्रिशूल लगाने से भी लाभ होता है|
07 .-सर पर चंदन या विभूति का तिलक लगाने से और हाथ पर मौलि बाँधने से भी भूत प्रेत और बुरी आत्मा से बचने मे मदद मिलती है|
08 .-भूतों से बचने का एक टोटका ये भी है की रात को किसी पवित्र स्थान पर लौंग और कपूर को जलाने से भी बुरी आत्मा की समसया से मुक्ति मिलती है|
09 .-भूतों को दूर रखने का एक उपाय या तरीके या टोटका ये भी है की धतूरे के पौधे को घर के मिट्टी वाले भाग मे इस प्रकार से दबा दें की जड़ बाहर दिखाई दें और पौधा भूमि के अंदर रहे|
10. गूलर मौलसरी, शीशम, मेहंदी आदि के वृक्षों पर भी प्रेतों का वास होता है। रात के अंधेरे में इन वृक्षों के नीचे नहीं जाना चाहिए और न ही खुशबुदार पौधों के पास जाना चाहिए।
11. सेब एकमात्र ऐसा फल है जिस पर प्रेतक्रिया आसानी से की जा सकती है। इसलिए किसी अनजाने का दिया सेब नहीं खाना चाहिए।
12. कहीं भी झरना, तालाब, नदी अथवा तीर्थों में पूर्णतया निर्वस्त्र होकर या नग्न होकर नहीं नहाना चाहिए।
13. अगर प्रेतबाधा की आशंका हो तो.घर में प्राणप्रतिष्ठा की बजरंगबलि हनुमान की सुसज्जित प्रतिमा और हनुमान चालीसा रखनी चाहिए।
14. प्रतिदिन प्रातःकाल घर में गंगाजल का छिड़काव करना चाहिए।
15. प्रत्येक पूर्णमासी को घर में सत्यनारायण की कथा करवाएं।
16 .-बुरी आत्मा और भूत प्रेत से बचने का एक टोटका ये भी है की आप हनुमान चालीसा रोजाना पढ़ें साथ ही हनुमान मंत्रो का जाप भी करें| साथ ही हर मंगलवार और शनिवार को बजरंग बान का पाठ करें|
17 .-ऐसा कहा जाता है की दीपावली के दिन दिये से बनाया गया काजल लगाने से आपको नजर और भूत प्रेत की समस्याओं से मुक्ति मिलती है|
18 .-माँ काली की पूजा करके उनसे अपने घर और शरीर को भूत बढ़ा से दूर रखने की प्रार्थना करें|
19 .-गणेश जी के मंदिर मे एक सुपारी रोज अर्पण करें साथ ही रोजाना एक कटोरी चावल ग़रीबो को दान करें| ऐसा रोजाना एक साल तक करने से भूत बढ़ा का निवारण होगा|
20 .-घर को भूत प्रेत से मुक्त रखने के लिए अशोका पेड़ के 7 पत्ते मंदिर मे पूजा करने के बाद अपने घर के किसी पवित्र स्थान पर रखिए| जब पत्ते दुख जायें तो उन्हे पीपल के पेड़ के नीचे रख दीजिए| कहते हैं ऐसा करने से नज़र दोष और प्रेत बाधा का निवारण होता है|
21 .-माता, पिता और बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लेने से भी लाभ मिलता है|
22. सूर्यदेव को प्रतिदिन जल का अघ्र्य देना प्रेतवाधा से मुक्ति देता है।
23. घर में ऊंट की सूखी लीद की धूनी देकर भी प्रेत बाधा दूर हो जाती है।
24. घर में गुग्गल धूप की धूनी देने से प्रेतबाधा नहीं होती है।
25. नीम के सूखे पत्तों का धुआं संध्या के समय घर में देना उत्तम होता है।
===इसके अलावा ये भी कहा जाता है की भूत प्रेत से बचने के लिए आपको कभी भी सुनसान जगह पर नही जाना चाहिए| नदी, नाले और पुल पार करते समय हनुमान जी को याद करना चाहिए| ऐसे बहुत से नियम हैं जो की एक छोटे से लेख मे बताना हमारे लिए असंभव है| यदि आप इन सब पर विश्वास करते हैं तो किसी अनुभवी और ज्ञानी या विद्वान् पंडित/जानकार से मिलकर सही टोटका, उपाय या बचाव के तरीके जाने|
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जानिए क्या करें कि भूत प्रेतों का असर न हो पाए:-
1. अपनी आत्मशुद्धि व घर की शुद्धि हेतु प्रतिदिन घर में गायत्री मंत्र से हवन करें।
2. अपने इष्ट देवी देवता के समक्ष घी का दीपक प्रज्वलित करें।
3. हनुमान चालीसा या बजरंग बाण का प्रतिदिन पाठ करें।
4. जिस घर में प्रतिदिन सुन्दरकांड का पाठ होता है वहां ऊपरी हवाओं का असर नहीं होता।
5. घर में पूजा करते समय कुशा का आसन प्रयोग में लाएं।
6. मां महाकाली की उपासना करें।
7. सूर्य को तांबे के लोटे से जल का अघ्र्य दें।
8. संध्या के समय घर में धूनी अवश्य दें।
9. रात्रिकालीन पूजा से पूर्व गुरू से अनुमति अवश्य लें।
10. रात्रिकाल में 12 से 4 बजे के मध्य ठहरे पानी को न छुएं।
11. यथासंभव अनजान व्यक्ति के द्वारा दी गई चीज ग्रहण न करें।
12. प्रातःकाल स्नान व पूजा के प्श्चात ही कुछ ग्रहण करें।
13. ऐसी कोई भी साधना न करें जिसकी पूर्ण जानकारी न हो या गुरु की अनुमति न हो।
14. कभी किसी प्रकार के अंधविश्वास अथवा वहम में नहीं पड़ना चाहिए। इससे बचने का एक ही तरीका है कि आप बुद्धि से तार्किक बनें व किसी चमत्कार अथवा घटना आदि या क्रिया आदि को विज्ञान की कसौटी पर कसें, उसके पश्चात ही किसी निर्णय पर पहुंचे।
15. किसी आध्यात्मिक गुरु, साधु, संत, फकीर, पंडित आदि का अपमान न करें।
16. अग्नि व जल का अपमान न करें। अग्नि को लांघें नहीं व जल को दूषित न करें।
17. हाथ से छूटा हुआ या जमीन पर गिरा हुआ भोजन या खाने की कोई भी वस्तु स्वयं ग्रहण न करें।
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जानिए बहुत-प्रेत आदि से देह रक्षा का मंत्र:---
(कृपया सावधानी रखें-बिना गुरु या अनुभवी/सक्षम व्यक्ति के मार्गदर्शन में ही इसे प्रयोग करें |)
ऊं नमः वज्र का कोठा,
जिसमें पिंड हमारा बैठा।
ईश्वर कुंजी ब्रहमा का ताला,
मेरे आठों धाम का यती हनुमन्त रख वाला।
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जानिए कैसे करें भूत- प्रेत बाधा निवारण----
(कृपया सावधानी रखें-बिना गुरु या अनुभवी/सक्षम व्यक्ति के मार्गदर्शन में ही इसे प्रयोग करें |)
भूत प्रेत डाकिनी शाकिनी तथा पिशाच मशान आदि तामसी शक्तियों से रक्षा के लिए यह साधना सर्वोत्तम तथा सरल उपाय वाली है। इसके लिए साधक को चाहिए कि किसी शुभ घड़ी में रविपुष्य योग अथवा शनिवार को उल्लू लेकर, उसके दाएं डैने के कुछ पंख निकाल लें तथा उल्लू को उड़ा दें। इसके बाद उस पंख को गंगाजल से धोकर स्नानादि करके पूर्वाभिमुख होकर लाल कंबल के आसन पर बैठकर 2100 बार मंत्र पढ़कर प्रत्येक पंख पर फूंक मारे। इस प्रकार से अभिमंत्रित करके, जलाकर उन पंखों की राख बना लें।
मंत्र:--
ऊं नमः रुद्राय, नमः कालिकायै, नमः चंचलायै नमः कामाक्ष्यै नमः पक्षिराजाय, नमः लक्ष्मीवाहनाय, भूत-प्रेतादीनां निवारणं कुरू-कुरू ठं ठं ठं स्वाहा।
इस मंत्र से सिद्ध भभूति को कांच के चैड़े पात्र में सुरक्षित रख लें। जब भी किसी स्त्री या पुरूष को ऊपरी बाधा हो, इसे निकालकर चुटकी भर विभूति से 108 बार मंत्र पढ़कर झाड़ देने से जो अला बला हो वह भाग जाती है। अधिक शक्तिशाली आत्मा हो तो इसे ताबीज में रखकर पुरुष की दाहिनी भुजा पर स्त्री की बाई भुजा पर बांधने से दुबारा किसी आत्म या दुरात्मा का प्रकोप नहीं होता।
ग्रहों के आधार पर देखें तो राहु के साथ किसी भी ग्रह की संगति युति तथा दृष्टि संबंध बनने पर दोष को लक्षणों के माध्यम से चिन्हित किया जा सकता है। आजकल कालसर्पयोग को भी पितृ ऋण के रूप में ही मानना चाहिए क्योंकि शास्त्रों में सर्प योनी को पितृ योनी संज्ञा दी गई है। परन्तु ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सोलह प्रकार के पाप और श्रापों का वर्णन है।
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दुनियाभर के लोगो के अनुभवो मुताबिक 2 प्रकार के भूत होते हैं :
दूत---
इस तरह के भूत बहुत ही आम हैं। ज्यादातर ऐसे भूत उन के परिवारजनों या करीबियों को मर जाने के बाद दीखते हैं। उनको उनकी मौत के बारे में पता होता हैं और वे बातचीत कर सकते हैं। ऐसे भूत अपने प्रियजनों के लिए सन्देश लाते हैं की वे जहाँ कही भी हैं आराम से हैं और खुश हैं,उनको उसकी मौत पर शोक नहीं करना चाहिए। यह ज्यादातर केवल एक ही बार दिखाई देते हैं अपने इरादे से ऐसा करते हैं
परेशान करनेवाले भूत----
इस तरह के भूतों से लोग सबसे ज्यादा डरते हैं क्योंकि ऐसे भूत हमारे भोतिक जीवन पर सबसे ज्यादा असर डालते हैं। इन भूतों को अस्पष्टिकृत और डरावने आवाज,दीवाल की पिटाई,पैरों की आवाज जैसी अनेक चीजों का कारण माना जाता हैं। वह हमारी चीज़े रख लेते हैं और छुपा देते हैं केवल उन्हें वापस देने के लिए। वे घर के नल चालू कर देते हैं,दरवाजो को जोर से टक्कर माँरते हैं या खोल के बंद करते हैं,घर की लाइट्स को चालू – बंद करते हैं और यहाँ तक की Toilets को फ्लश करते हैं। चीजों को घर में इधर उधर फैंक देते हैं। लोगो के कपड़े खींचने के किस्से सबसे ज्यादा प्रचलित हैं।
कुछ भूत ऐसे होते हैं जो उनके मनुष्य शरीर के अनुरूप शरीर को ढूंढकर उसके प्रवेश कर लेते हैं और उसके शरीर पर कब्ज़ा कर लेते हैं। लोगो का मानना हैं की ऐसे भूत उसके जीवन काल के दौरान अधूरी रही इच्छाओं को दूसरे शरीर में घुस कर पूरी करता हैं। इनमें से प्रचलित किस्से हैं उसके विरोधियों को परेशान करना और डराना । कई बार जिस के शरीर में घुसा हो उसको भी उसको भी नुकसान पहुंचाता हैं।
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भूतों के बारे मे कुछ अनकहे तथ्य
आत्मा जो भटक रही हैं और हमे डराना चाहती हैं वह हमारा ध्यान चाहती हैं।
भूतों और आत्माओं को समय की कुछ भी समज नहीं होती।
आत्माएं हमेशां यह नहीं समज पाती की उसका शरीर मर चूका हैं। उनके लिए यह एक डरावना सपना हैं जिसमे वे फ़स चुके हैं।
आत्माएं कई तरीको से हमारे साथ संपर्क कर सकती हैं। सपने,विचार,लिखावट,etc।
आत्माएं कभी कभी शरारती और हमेशा उत्सुक होती हैं।
आत्माएं रात में अधिक सक्रीय होती हैं।
आत्माएं कई बार प्रकट होती हैं। हवा में लहराती हुई सफ़ेद छाया के रूप में,काले साये के रूप में,ठंडी हवा के रूप में आत्मा की उपस्थिति स्पष्ट की जा सकती हैं।
भूतिया गतिविधियाँ बच्चों और वयस्कों के आसपास ज्यादा होती हैं। आपकी ज्यादा व्यक्तिगत उर्जा भूतों को ज्यादा आकर्षित करती हैं।
आत्माओं के अन्दर उनका व्यक्तित्व बरक़रार रहता हैं।
बच्चों और प्राणियों को भूत सबसे ज्यादा दिखते हैं।
आत्मा अक्सर सहायक हो सकता है।
भूत confusion में पड जाते हैं की वे वे यहाँ पर क्यों हैं? उन्हें क्या हुआ हैं? इन्सान उन्हें सुन क्यों नहीं पा रहे हैं?
भूत आपका दिमाग पढ़ सकते हैं।
भूत एक भौतिक शरीर नहीं है; वे शुद्ध ऊर्जा हैं।
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घर में भूत-प्रेत होने के क्या लक्षण हैं ?
१. परिचय---
अनेक शोधों से ज्ञात हुआ है कि पूरे विश्व में अधिकतर घरों के स्पंदन विविध कारणों से नकारात्मक होते हैं । संदर्भ हेतु पढें : भूतावेशित घर अथवा वास्तु की आध्यात्मिक शुद्धि हेतु कौनसे उपाय किए जा सकते हैं ? ये नकारात्मक स्पंदन अनिष्ट शक्तियों तथा मृत पूर्वजों को आकर्षित कर घर को भूतावेशित करते हैं । घर को आविष्ट करनेवाली अनिष्ट शक्तियां तथा मृत पूर्वज घर में रहनेवालों को निरंतर कष्ट देते रहते हैं । इसलिए यह आवश्यक है कि हम आविष्ट घर के लक्षणों को पहचान सके जिससे समस्या को समाप्त करने का हम उपाय कर सकें । केवल संत तथा अति विकसित छठवीं इंद्रिय की क्षमतायुक्त व्यक्ति ही वास्तव में समझ सकते हैं कि कोर्इ घर आविष्ट है अथवा नहीं । हमने घर के आविष्ट होने के कुछ लक्षणों को सूचीबद्ध किया है, जिससे उसमें भूत-प्रेतरहने के संदर्भ में ध्यान में आ सके ।
२. भूत-प्रेत होने के लक्षण----
घर में वस्तुओं का गायब होना और पुनः मिलना
घर में अपरिचित वस्तुओं का मिलना
घर के चारों ओर अनाकलनीय चिह उभरना, जैसे दीवार पर खरोंच के निशान, अलमारियों अथवा दीवारों पर भयानक चेहरे के निशान इत्यादि ।
बिना किसी कारण के विचित्र ध्वनि सुनाइर् देना अथवा द्वार के खुलने बंद होने की, पीटने की, हंसने की, चलने, बोलने इत्यादि की आवाज सुनार्इ देना
तापमान में अनायास ही परिवर्त्तन हो जाना – ७० प्रतिशत बार तापमान उष्ण तथा ३० प्रतिशत बार ठंडा हो जाना
बिना किसी कारण के बत्तियों अथवा विद्युत उपकरण का बार-बार जलना-बंद होना अथवा काम न करना
भ्रमणध्वनि (मोबार्इल) का काम न करना
सात्त्विक पौधों जैसे तुलसी का मुरझा जाना
कुत्ते अथवा बिल्ली का रोना अथवा अकारण भौंकना
अकारण पालतू जानवर जैसे बिल्ली का मर जाना
असामान्य घटनाएं उदाहरणार्थ कीडे-मकोडों जैसे खटमल, लाल चीटीयां, तिलचट्टे अथवा चूहों का अनायास आक्रमण
अचानक ही अस्पष्ट कारण के धार्मिक चिह्नों जैसे क्रॉस अथवा ॐ का घर में उभरना
घर में अकारण अशांति तथा शत्रुता उत्पन्न होना
घर में अकारण पुनः-पुनः रोग अथवा अन्य समस्याएं जैसे आर्थिक समस्या होना
अकारण घर में लगातार मृत्यु होना
किसी की उपस्थिति अनुभव हाेना
कपडों, वस्तुओं अथवा फर्श पर अकारणरक्त के धब्बे दिखना
कोर्इ निगरानी कर रहा है, ऐसा अनुभव होना
वास्तव में अनिष्ट शक्ति दिखना
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पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री,
(ज्योतिष-वास्तु सलाहकार)
राष्ट्रीय महासचिव-भगवान परशुराम राष्ट्रीय पंडित परिषद्,
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