दिल्ली में बच्चे चलाते हैं बैंक

दिल्ली में बच्चे चलाते हैं बैंक

दिल्ली-किस्से तो बनते रहते हैं, दुनिया में एक से एक नए लेकिन हर एक का अपना महत्व होता है। कोर्इ अच्छा होता है तो कोर्इ बुरा होता है। इन्हीं सु दुनिया में खबरें बनती हैं और इन्हीं से एक कर्तब दूसरों को अनुसरण करने का मौका मिलता है। बात तो राजधानी से उठी है ये लेकिन जैसा कि टीवी पर एक विज्ञापन आता है, जिसमें एक मासूम बच्ची अपनी छोटी आंखों से देखे बड़े सपने को पूरा करने के लिए जेब खर्च के लिए मिले और घर में इधर-उधर से जुटाए पैसों से बैंक में अपना खाता खुलवाती है। भारत में बच्चों को बचत के लिए प्रेरित करने में कुछ एक बैंकों ने ही दिलचस्पी दिखाई है। लेकिन दिल्ली में एक बैंक ऐसा भी है जो न सिर्फ बच्चों का ही खाता खोलता है, बल्कि यह केवल बच्चों द्वारा चलाया भी जाता है

14 शाखाएं हैं दिल्ली में

हालांकि, उनके शब्दों में यह बैंक नहीं उनका ‘खजाना’ है। ‘चाइल्ड डेवलपमेंट खजाना’ नाम से चल रहे इस बैंक की दिल्ली में कुल 14 शाखाएं हैं। जरूरत पड़ने पर उन्हें कर्ज भी दिया जाता है। बैंक से मिले कुछ हजार रुपयों के कर्ज ने कुछ बच्चों के ख्वाब को पूरा करने में बड़ी भूमिका निभाई है। बैंक में खाता महज एक रुपए में ही खुल जाता है। बैंक की शुरुआत वर्ष 2004 में हुई। यह आज देश के नौ राज्यों और आठ देशों तक में पहुंच गया है। खास बात कि बैंक के मैनेजर से लेकर खजांची तक सभी बच्चे हैं। बकायदा बड़े बैंकों की तरह पासबुक मिलता है। हर खाता धारक का अपना एकाउंट नंबर है। कैशबुक, लेजर बुक तक संभाल कर रखा जाता है। किसने, कितना पैसा जमा किए, कितने निकाले, सबका हिसाब किताब है।

14 वर्ष से ऊपर के हैं सदस्य
अकेले दिल्ली में ही इस बैंक के पांच सौ से अधिक खाताधारक हैं, जो नियमित तौर पर इसमें पैसा जमा करते हैं। बैंक का बैलेंस भी कुछ कम नहीं, चार लाख रुपए के करीब है। यह बैंक बाल अधिकार पर काम करने वाली संस्था बटरफ्लाई की उपज है, लेकिन बैंक के हिसाब-किताब का सिस्टम अलग है। बैंक का कामकाज एडवांस कमेटी देखती है, जिसमें चार सदस्य 14 वर्ष से ऊपर के हैं, जबकि तीन इससे थोड़े अधिक उम्र के बच्चे हैं। व्यावसायिक बैंक में इस बाल बैंक का पैसा जमा होता है। समय-समय पर बड़े बैंकों के अधिकारी इस बैंक को संभालने वाले वालंटियरों को बैंक चलाने की बारीकियां बताते हैं।

1 रूपए में खुल जाता है बैंक
बटरफ्लाई की निदेशक रीता पाणिकर ने बताया कि बैंक के खाताधारक अधिकतर गरीब परिवार या झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चे हैं। उन्होंने बताया कि बैंक से जुड़ने के बाद बच्चों में बचत को लेकर जिम्मेदारी देखी गई है। पैसा यूं ही खर्च करने की बजाए बच्चे पैसा बचाने पर जोर देने लगे हैं। जो उनके जरूरत के समय काम आता है। रीता ने बताया कि इस बैंक ने बच्चों को बड़े सपने देखने और उनमें नेतृत्व क्षमता का विकास किया है। वे कही अधिक समाज व परिवार के साथ अपने प्रति जिम्मेदार हुए हैं।

बच्चों को कर्ज भी देता है बैंक
रीता बताती हैं कि जरूरत पड़ने पर बच्चे पैसे निकालते हैं। अधिकतर बच्चे स्कूल की फीस जमा करने, किताब-कॉपी व जूते खरीदने जैसे मामलों में जमा पूंजी निकालते हैं। उन्होंने बताया कि कुछ बच्चे जमा पैसों का इस्तेमाल अपने परिजनों के इलाज में भी करते हैं। जब जरूरत ज्यादा बड़ी हो तो बैंक उन्हें कर्ज देता है। ऐसा ही कर्ज उड़ीसा की एक बच्ची को बाक्सिंग के जुनून को पूरा करने में काम आया। रीता कहती हैं कि बैंक व्यावसायिक नहीं है, बस बच्चों को उन्हें सपना देखने और उसे पूरा करने का मौका देता है

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