इन ग्रहों के कारण ही होती है नशे की लत

इन ग्रहों के कारण ही होती है नशे की लत
धूम्रपान में राहु–केतु की भूमिका–
आजकल नशे की लत से पूरा समाज जकड़ा हुआ है,चाहे वह किसी भी प्रकार का हो । हर वर्ग के लोग नशे की गिरफ्त में हैं। बच्‍चों से लेकर वृद्ध तक नशेखोरी में अपने जीवन को बरबाद करने पर तुले हुए हैं। नशे की लत सबसे बुरी है, यह अनेक अपराधों और बुरे कृत्‍यों को जन्‍म देता है। समाज और पारिवारिक परिस्थितियां तो नशे की लत के लिए जिम्‍मेदार हैं हीं लेकिन ग्रहों के प्रभाव में भी किसी व्‍यक्‍ति को नशे की लत पड़ती है। राहु के प्रभाव स्वरूप विधर्मी और नीच लोगों से कष्ट पाना या उनका बॉस बन जाना, गलत संगती में उठना बैठना, धूम्रपान और मदिरापान में अधिकता होना, किसी का भी अपमान कर देना, अचानक बुरे समाचार मिलना, करंट लगना या बिजली के उपकरण धड़ाधड़ खराब होना, स्वभाव का बेहद कठोर हो जाना, नर्वस सिस्टम से संबंधित रोग होना, वायवीय समस्या उत्पन्न होना आदि लक्षण राहू के बुरे प्रभाव को प्रदर्शित करते हैं.
तंबाकू सेवन के कारण स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्परिणाम और उनसे होने वाली जानलेवा बीमारियों पर लोगों के करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार, धूम्रपान एवं तंबाकू के कारण दुनिया में प्रतिवर्ष लगभग 40 लाख से अधिक लोग मौत का शिकार हो जाते हैं।
भारत में भी यह संख्या लगभग 8 लाख से अधिक है। अनुमानत: 90 प्रतिशत फेफड़े के कैंसर, 30 प्रतिशत अन्य प्रकार के कैंसर, 80 प्रतिशत ब्रोंकाइटिस, इन्फिसिमा एवं 20 से 25 प्रतिशत घातक हृदय रोगों का कारण धूम्रपान है।
चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार, 5 से 10 सिगरेट रोज पीने वाले व्यक्ति को दिल का दौरा पड़ने की आशंका दोगुना ज्यादा बढ़ जाती है और सिगरेट का एक कश जिंदगी के 5 मिनट कम कर देता है।
अब तो आलम यह है कि महिलाएं भी मॉडर्न दिखने के लिए धूम्रपान करने लगी हैं। उन्हें यह नहीं मालूम कि वह स्वयं तो इससे अनेक रोगों से ग्रसित हो ही सकती हैं, साथ ही उनके गर्भ में पल रहे बच्चे पर भी इसका खतरनाक दुष्प्रभाव पड़ सकता है। इससे समय पूर्व स्वत: गर्भपात, मृत शिशु का प्रसव, गर्भावस्था में ही शिशु की मृत्यु तथा कम वजन के कमजोर बच्चे का जन्म हो सकता है। इस प्रकार के जन्मे बच्चों के जीवित रहने की सम्भावना बहुत कम रहती है।
चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि सिगरेट के धुएं से केवल धूम्रपान करने वालों को ही नुकसान नहीं होता, बल्कि उनके संपर्क में रहने वाले दोस्तों, बच्चों एवं परिवार वालों को भी होता है। इसलिए धूम्रपान करने वालों को खतरनाक मित्र समझना चाहिए। धूम्रपान करने वालों के संपर्क में रहने वालों को आंख, गले और नाक में जलन की तकलीफ तथा फेफड़े के कैंसर एवं गंभीर हृदय रोग हो सकते हैं।
धूम्रपान के क्रम में छोड़े गए धुएं के कारण वातावरण में पड़ने वाले प्रभाव के कारण अनेक प्रकार के दुष्परिणाम हो सकते हैं। इनमें बाल अवस्था में श्वसन संबंधी गंभीर रोग, खांसी, कफ, बलगम, छींक, घबराहट, कान बहना, फेफड़ों का कम विकास एवं उनकी कमजोरी, आंख, नाक और गले में जलन, फेफड़े के कैंसर, कम वजन तथा कम लंबाई के बच्चे का जन्म, जन्मजात अपंगता तथा हृदय रोग प्रमुख हैं।
धूम्रपान से स्वास्थ्य पर जानलेवा कुप्रभाव तो पड़ता ही है, वहीं पर इससे राष्ट्र की प्रगति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ऐसा देखा गया है कि धूम्रपान करने वाला व्यक्ति अपने कार्य के प्रति उदासीन होता है, जिससे उसकी कार्यक्षमता घटती है और इससे उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
धूम्रपान करने वाले कर्मचारी गंभीर रोगों ग्रस्त हो सकते हैं, और समय पूर्व मौत का शिकार हो सकते हैं जिससे नियोक्ता कंपनी तथा कारखाने पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है। तंबाकू से मुंह, मुखगुहा एवं जीभ का कैंसर हो सकता है। अनेक प्रकार के पेट रोग भी हो सकते हैं।
आधुनिक और प्राचीनकाल के रोगों को ध्यान में रखते हुए ज्योतिष की दृष्टि से प्रत्येक रोग के लिए संबंधित ग्रह और योगों का वर्णन करें। साथ ही उनके ज्योतिषीय, वास्तु, आध्यात्मिक तथा अन्य उपाय भी बताएं। ज्योतिष की दृष्टि से आधुनिक काल के रोग के लिए संबंधित ग्रह, योग व विभिन्न उपाय: प्राचीन काल में जीवन जीने के भौतिक सुख के साधन कम थे तब रोग व बीमारियां भी कम हुआ करती थीं। जैसे-जैसे मनुष्य ने उन्नति की, भौतिक सुख-सुविधाओं की वस्तुओं में भी वृद्धि हुई, जिससे व्यक्ति आरामदायक जीवन बिताने लगा। इसके परिणामस्वरूप मेहनत कम होने से कई बीमारियों जैसे- मोटापा, मधुमेह, हृदय रोग, नेत्र रोग, कैंसर, अस्थमा आदि ने जन्म लिया। फिल्मी भाषाओं व माॅडलिंग, फैशन एवं बढ़ती भौतिक चीजों के कारण व्यक्ति की मानसिकता उŸोजित होने लगी जिससे कामुकता बढ़ने लगी परिणामस्वरूप यौन-अपराध बढ़ने लगे, जिससे यौन-रोगों में वृद्धि हुई। ये सभी आधुनिक युग के रोग कहलाते हैं अर्थात् प्राचीनकाल में ये रोग नहीं थे। इन रोगों का विचार छठे भाव (रोग) तथा 3 एवं 11 भाव से किया जाता है तथा इसके साथ ही 6 भाव के कारक मंगल, शनि, लग्न-लग्नेश, चंद्र-राशीश तथा इन सभी पर पाप प्रभाव का विचार महत्वपूर्ण है।
जन्‍मकुंडली में राहु का प्रबल प्रभाव नशे के कारण जातक के जीवन को तहस-नहस कर देता है। पहले, दूसरे, सातवें एवं बारहवें स्‍थान पर राहु की उपस्थिति में जातक पूरी तरह से नशे की गिरफ्त में पहुंच जाता है। राहु की उपस्थिति में धूम्रपान का नशा सबसे पहले लगता है।
धूम्रपान के कारण होने वाले पेट के रोग और भी रोगों का कारण बन सकते हैं। क्या होते हैं पेट के रोगों के कारण और क्या है इनका इलाज?
ज्यादा धूम्रपान और किसी भी तरह की मदिरा का सेवन एसिडिटी बढ़ाता है, इसलिए इनसे परहेज करें।अल्कोहल और धूम्रपान जैसी वास्तु या पेट को तकलीफ देने वाली चीजें प्रयोग ना करें । यदि धम्रपान करने वाला जातक ऐसी सावधानी रखता हैं तो पेप्टिक अल्सर की सम्भावना बढ़ सकती हैं | पेट या छोटी आंत की परत में होने वाले घाव को पेप्टिक अल्सर कहते हैं || पेप्टिक अल्सर का सबसे प्रमुख लक्षण पेट में होने वाला दर्द है जो हल्का, तेज या अत्यधिक तेज हो सकता है। अपच और खाने के बाद पेट में होने वाला दर्द।
उदर या पेट के रोग को ज्योतिष में देखा जाये तो चतुर्थ, पंचम एवं दशम भाव से देखा जाता है। इन स्थानों के स्वामीग्रह यदि छठे, आठवे या बारहवें अथवा अपने घर से छठे, आठवे, बारहवे स्थान में हो जाये, अथवा क्रूर ग्रहों से आक्रांत हो तो पेट के रोग देते हैं। साथ ही अगर लग्र, तीसरे, पंचम, सप्तम, दशम स्थानों में शनि अथवा राहु हों, तब भी पेट के रोगी हो सकते हैं। अत: यदि चिकत्सकीय ईलाज से लाभ न प्राप्त हो रहा हो तो उक्त ग्रहों की शांति करानी एवं मंत्र जाप करना एवं उक्त ग्रहों की सामग्री दान करना चाहिए।
धूम्रपान से न सिर्फ दिल का दौरा, लकवा और रक्तचाप बढ़ने जैसी समस्याएं हो सकती हैं, बल्कि यह पुरुषों की यौन क्षमता पर भी असर कर सकता है। जो लोग दिन में 20 सिगरेट पीते हैं उनमें मर्दाना ताकत कम होने की संभावना 40 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। धुएं में मौजूद निकोटीन विभिन्न अंगों को सिकोड़ सकता है। ‘टोबैको कंट्रोल’ में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक धूम्रपान करने वाले 16 से 59 वर्ष के पुरुषों में मर्दाना कमजोरी की संभावना दुगनी होती है। धूम्रपान के अलावा, मोटापा, ज्यादा शराब का सेवन और व्याग्रा जैसी दवाओं का दुरुपयोग पुरुषों की यौन सेहत पर असर डाल सकते हैं। इसके साथ ही अनियंत्रित मधुमेह, रक्तचाप जो कि सर्दियों में आम बात है, का भी असर होता है।
धूम्रपान की वजह से वीर्य की अम्लीयता यानी एसिडिक नेचर बढ़ जाता है, जिसका असर शुक्राणुओं पर पड़ता है। शुक्राणुओं के जरूरी प्रोटीन में कमी आने लगती हे। इस वजह से उर्वरण के समय ऐसे शुक्राणु अच्‍छे परिणाम नहीं दे पाते हैं। बीजेयू इंटरनेशनल में प्रकाशित इस अध्‍ययन में पाया गया है कि धूम्रपान करने से नपुंसकता आने का मुख्‍य कारण शुक्राणुओं की गुणवत्ता है।धूम्रपान करने वालों के स्पर्म यानी शुक्रााणुओं की क्वालिटी यानी गुणवत्ता खराब होती है। सिगरेट या बीड़ी का जितना ज्यादा सेवन करेंगे आपके वीर्य की अम्लीयता उतनी अधिक होगी और उसका प्रभाव सीधे तौर पर शुक्राणुओं पर पड़ेगा।
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कैंसर रोग:--- योग: यदि 6 या 8वें भाव में मंगल या शनि की युति राहु, केतु के साथ हो, तो कैंसर रोग होता है। यदि मंगल (निर्बल) अष्टम भाव में पाप प्रभाव के साथ हो, तो इसकी दशाओं में कैंसर रोग होता है। मेष लग्न में तथा मंगल दोनों पर, यदि राहु, शनि व षष्ठेश का प्रभाव हो, तो फेफड़ें का कैंसर होता है। यदि 2वें भाव में राहु व शनि पाप ग्रह स्थित हो तथा चतुर्थ भाव, इसके स्वामी तथा चंद्रमा पर भी इनका प्रभाव हो, तो व्यक्ति नशे (धूम्रपान,तम्बाकू आदि) के कारण फेंफड़े के कैंसर का शिकार होता है। यदि शुक्र या गुरु षष्ठेश होकर लग्न में पाप ग्रहों से प्रभावित हो, तो मुख कैंसर होता है। यदि राहु से मंगल त्रिक भाव (6, 8, 12) मंे स्थित हो, राहु में मंगल की दशा में कैंसर रोग होता है। रक्त कारक मंगल, मन-मस्तिष्क कारक चंद्र व लग्नेश पर पाप ग्रहों का प्रभाव होता हो तो कैंसर रोग होता है। यदि मंगल से केतु अष्टम भाव में हो तथा इन पर पाप प्रभाव हो, तो मंगल में केतु की दशा में यह रोग होता है। यदि लग्न व लग्नेश पर पाप प्रभाव हो तथा मकर के नवांश में लग्नेश, षष्ठेश या चंद्र स्थित हो, तो कैंसर रोग का योग बनता है।
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अस्थमा (दमा या श्वास रोग):---- इस रोग का मुख्य कारण ‘चंद्र’ (वक्री नहीं होता) व ‘बुध’ (वक्री भी) का नीच, अस्त, शत्रु राशिगत होता है। दोनों की युति मुख्यतः मंगल की राशियों (मेष, वृश्चिक) में होने पर होता है। कुछ योग निम्न हैं- यदि शनि, नीच या शत्रु राशि हो या चंद्र, मिथुन व सिंह राशि में स्थित हो तथा इन पर पाप प्रभाव हो, तो यह रोग होता है। यदि निर्बल चंद्र पाप कर्Ÿारी प्रभाव में हो तथा सूर्य, सप्तम भाव में हो। यदि बुध, कर्क राशि में स्थित हो तथा सूर्य का प्रभाव हो (युति द्वारा) तथा चंद्र निर्बल होकर पाप ग्रहों के बीच हो तथा शनि सप्तम भाव में हो अथवा मंगल शनि के मध्य चंद्र निर्बल हो व सूर्य मकर राशि में हो।
ज्योतिषीय उपाय: 2, 7, 3, 6, 10, 11 लग्न वाले व्यक्तियों को पन्ना धारण करना चाहिए तथा चंद्र के लिए दान मंत्र जप, व्रत करना चाहिए। 1, 8, 4, 5, 9, 12 लग्न वाले व्यक्तियों को मोती धारण करना चाहिए तथा बुध का दान, व्रत, जप करना चाहिए। गणपतिजी, दुर्गाजी, शिवजी की पूजा करें। चतुर्थी, पूर्णिमा का व्रत करें। गायों को हरा चारा खिलाएं। आध्यात्मिक उपाय: इसके अंतर्गत जातक को चंद्र व बुध के गायत्री मंत्रों द्वारा 24 आहुतियां यज्ञ में देनी चाहिए। खान-पान में सावधानी बरतें। प्राणायाम (कपाल भाती, अनुलोम- विलोम) करें, स्वच्छ वायु ग्रहण करें। तनाव से दूर रहें, खुश रहें।
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हृदय रोग:---सभी जानते हैं कि कुण्डली का छठा भाव रोग का होता है तथा छठे भाव का कारक ग्रह मंगल होता है। द्वितीय (मारकेश), तृतीय भाव, सप्तम भाव एवं अष्टम भाव(मृत्यु) का है। हृदय स्थान की राशि कर्क है और उसका स्वामी ग्रह चन्द्रमा जलीय है। हृदय का प्रतिनिधित्व सूर्य के पास है जिसका सीधा सम्बन्ध आत्मा से है। यह अग्नि तत्त्च है। जब अग्नि तत्त्व का संबंध जल से होता है तभी विकार उत्पन्न होता है। अग्नि जल का शोषक है। जल ही अग्नि का मारक है।पूरे विश्व में हृदय के दौरे से मरने वाले लोगों की संख्या अन्य रोगों से मरने वालों की संख्या से अधिक है। ज्योतिष शास्त्र में हृदय का विचार चतुर्थ भाव से किया जाता है। अतः चतुर्थ भाव, चतुर्थेश, कारक चंद्र$बुध पर पाप ग्रहों का प्रभाव हृदय रोगों को जन्म देता है। इसके अलावा मन का विचार चतुर्थ भाव, मस्तिष्क का विचार पंचम भाव से किया जाता है साथ ही मन-मस्तिष्क का कारक ग्रह भी चंद्र ही होता है और मन मस्तिष्क का सीधा ‘हृदय’ से ही संबंध होता है। अतः चतुर्थ, पंचम भाव व चंद्र पर पाप ग्रहों का प्रभाव हृदय रोग को जन्म देता है या इनके स्वामी निर्बल हों अर्थात् नीच, शत्रु राशि के हों।
इसके अलावा हृदय पर सूर्य व चंद्र तथा इनकी राशियां क्रमशः सिंह व कर्क का निमंत्रण रहता है तथा हृदय के अंतर्गत रक्त का संचार मंगल ग्रह करता है अतः इनका अशुभ होना, पाप प्रभाव एवं त्रिक भाव में होना हृदय रोग को जन्म देता है। रक्त या रक्त कणिकाएं स्वयं मंगल हैं जो इसका संचार शरीर में चंद्र की गति के सहारे करता है। गुरु, शुद्ध रक्त को विकारों से बचाने का कार्य करता है। जब जन्मपत्री में उपरोक्त ग्रह अशुभ अर्थात् नीच, शत्रुराशि के हों अथवा राहु, केतु का पाप प्रभाव हो, तो हृदय रोग जन्म ले लेता है।
मंगल जब चन्द्र राशि में चतुर्थ भाव में नीच राशि में बैठता है तब वह अपने सत्त्व को खो देता है। सूर्य, चन्द्र, मंगल, राहु, शनि जब एक दूसरे से विरोधात्मक सम्बन्ध बनाते हैं तो विकार उत्पन्न होता है। हृदय रोग में सूर्य(आत्मा व आत्मबल) अशुद्ध रक्त को फेफड़ों द्वारा शुद्ध करके शरीर को पहुंचाता है, चन्द्रमा रक्त, मन व मानवीय भावना, मंगल रक्त की शक्ति, बुध श्वसन संस्थान, मज्जा, रज एवं प्राण वायु, गुरु फेफड़े व शुद्ध रक्त, शुक्र मूत्र, चैतन्य, शनि अशुद्ध रक्त, आकुंचन का कारक है।
धूम्रपान से महिलाओं में पुरुषों की तुलना में दिल का दौरा पड़ने की संभावना काफ़ी बढ़ जाती है.यह शोध अमरीका स्थित वैज्ञानिकों ने सिंगापुर, नॉर्वे और तुर्की जैसे कई देशों में किया है |महिलाएं सिगरेट से निकलने वाले विषाक्त रसायनों को पुरुषों की तुलना में ज़्यादा आत्मसात करती हैं |यही कारण है कि सिगरेट पीने वाली महिलाओं में पुरुषों का तुलना में फेफड़े का कैंसर होने की संभावना भी अधिक होती है |बहुत पहले से ही यह स्पष्ट हो चुका है कि धूम्रपान से दिल का दौरा पड़ने का ख़तरा बढ़ जाता है. लोकिन करीब पच्चीस लाख लोगों पर शोध करने के बाद ये बात पहली बार सामने आई है कि महिलाओं पर इसका असर पुरुषों की तुलना में ज़्यादा पड़ता है |शोध के अनुसार धूम्रपान से महिलाओं को पुरुषों की तुलना में दिल की बीमारी होने की संभावना पच्चीस फ़ीसदी ज़्यादा होती है |अब शायद तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रमों को महिलाओं पर विशेष ध्यान देना चाहिए ख़ासकर उन देशों में जहाँ युवा महिलाओं में धूम्रपान करने का चलन बढ़ रहा है |
जिन व्यक्तियों का मंगल अच्छा नहीं होता है, उनमें क्रोध और आवेश की अधिकता रहती है। ऐसे व्यक्ति छोटी-छोटी बातों पर भी उबल पड़ते हैं। अन्य व्यक्तियों द्वारा समझाने का प्रयास भी ऐसे व्यक्तियों के क्रोध के आगे बेकार हो जाता है। क्रोध और आवेश के कारण ऐसे लोगों का खून एकदम गर्म हो जाता है। लहू की गति (रक्तचाप) के अनुसार क्रोध का प्रभाव भी घटता-बढ़ता रहता है। राहू के कारण जातक अपने आर्थिक वादे पूर्ण नहीं कर पाता है। इस कारण भी वह तनाव और मानसिक संत्रास का शिकार हो जाता है।
यदि इसका रोग पूर्व ही विचार करके सावधानी रखी जाय, तो इससे बचाया जा सकता है योग निम्न हैं- चतुर्थ भाव में स्थित शनि पर राहु का प्रभाव। सूर्य, मंगल, गुरु की चतुर्थ भाव में युति। चतुर्थेश का अस्त, नीच, वक्री होकर अष्टमस्थ होना। शुभ ग्रह त्रिक भाव में निर्बल हो। हृदय रोग के उपाय: ज्योतिषीय उपाय: यदि लग्न 3, 6, 2, 7, 10, 11वें भाव में हों, तो बुद्धि-विशेष हृदय घात में पन्ना व हीरा धारण करें लग्नानुसार मूंगा, मोती, माणिक (लग्न- 1, 8, 5, 4, 9, 12) धारण करें।
(1) उपाय वाले (2) के रत्न धारण न करें तथा सूर्य के लिए सूर्य को अघ्र्य दें। हनुमान चालीसा तथा शिव पूजा करें तथा मंगल, सूर्य व चंद्र की धातुओं का दान करें। (3) पीपल के वृक्ष को रोजाना सीचें व दीपक जलाएं। आध्यात्मिक उपाय: यज्ञ (हवन) करें। तीनों ग्रहों- सूर्य, मंगल, चंद्र के गायत्री मंत्रों की न्यूनतम 24 आहुतियां यज्ञ में दें। अन्य उपाय: तनाव, अवसाद, मन के विकारों से बचें। नियमित व्यायाम, योग करें। मन-मस्तिष्क पर अनावश्यक, दवाब न बढ़ने दें, खुश रहें। लहसुन का सेवन करें। तैलीय, वसा की चीजों से परहेज रखें।
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नासिका रोग: यह दमा की भांति सांस रोग से जुड़ा है। यह रोग बहुत ही परेशान करने वाला है। इस रोग का कारक ग्रह बुध तथा द्वितीय व तृतीय भाव का निर्बल/पीड़ित होना है। योग: बुध ग्रह पर पाप प्रभाव होने, षष्ठ (रोग भाव) में पाप ग्रह से चंद्र दृष्ट होने तथा शत्रु नवांश में लग्नेश के होने से तथा द्वितीयेश, तृतीयेश के निर्बल/पीड़ित होने से यह रोग होता है। 12वें (व्यय, हानि भाव) में पाप ग्रह होने, षष्ठ भाव में चंद्रमा के होने तथा शनि के अष्टम भाव में होने के साथ ही लग्नेश के पाप ग्रह के नवांश में होने पर यह रोग होता है। सूर्य से त्रिक भाव में पाप ग्रह शनि/मंगल के होने पर यह रोग होता है।
ज्योतिषीय उपाय: उपरोक्त की भांति ही पन्ना धारण करें, यदि बुध शुभ हो तथा यह बुध, शुक्र व शनि की राशि के लग्न वाले ही धारण करें, बाकी नहीं। बाकी लग्नों के लिए बुध की वस्तुओं का दान करें, व्रत करें व मंत्र जाप करें। गायों को सोमवार व बुधवार को हरा चारा खिलाएं। आध्यात्मिक: बुध गायत्री के मंत्र द्वारा हवन/यज्ञ में इसकी 24 आहुतियां दें। अन्य उपाय: प्राणायाम, व्यायाम, योग करें। मंत्र ‘‘ऊँ’’ का उच्चारण लंबी सांस द्वारा करें। (प्राणायाम में) सुबह हरी घास में पैदल चलें।
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लकवा या पक्षाघात रोग:---- ज्योतिषीय ग्रह व योग: शनि ग्रह स्नायु तंत्र का कारक व मंगल, रक्त का कारक है तथा लग्न (शरीर), पंचम (बुद्धि) और नवम (पंचम का पंचम) भाव मस्तिष्क से संबंध रखते हैं और इन भावों की राशियां क्रमशः मेष, सिंह व धनु (अग्नि तत्व) हैं। चंद्रमा भी मन-मस्तिष्क का कारक होता है। इस रोग में राशीश भी प्रभावित होता है। अतः शनि, मंगल के निर्बल होने अर्थात् नीच, शत्रु राशि, वक्री, अस्त होने या इन पर 1, 5, 9 (भाव या राशि) तथा चंद्र, राशीश, लग्नेश, पंचमेश, नवमेश के निर्बल होने तक इन सभी पर पाप प्रभाव होने से यह रोग होता है। योग- लग्न में जब मंगल व बुध हो। पंचम में नीच राशि का शनि हो। नवम भाव में षष्ठेश शुक्र हो। ज्योतिषीय उपाय: शुक्र, शनि, बुध राशि के लग्न वाले नीलम धारण करें तथा चंद्र व मंगल की वस्तुओं का दान करें, व्रत करें तथा हनुमान, शिवजी की पूजा करें। मंगल, चंद्र, सूर्य, गुरु राशि के लग्न वाले मूंगा, मोती धारण कर ग्रहों को अनुकूल बनाएं। शनि, राहु, केतु की वस्तुओं का दान करें। शनिवार का व्रत करें। तीनों का मंत्र जाप करें।
आध्यात्मिक उपाय: मंगल, चंद्र, शनि के गायत्री मंत्रों का 24 आहुतियां यज्ञ में दें, ताकि रोगी स्वस्थ रहे। अन्य उपाय: रेकी चिकित्सा करें। व्यायाम, योग करें। तेल मालिश करें। रोग ग्रस्त अंगों पर दवाई तेल लगाएं। शनिवारीय, रविवारीय अमावस्या, त्रयोदशी, पूर्णिमा या फिर शुभ नक्षत्र में लहसुन की पांच कलिका को कूटकर पौन किलो दूध में उबालें। जब दूध आधी कटोरी रह जाय, तब मिश्री डालकर, इसे रोगी दें, इसके लिए अश्विनी, अनुराधा, श्रवण नक्षत्र का उपयोग करें। कुछ माह (समय) तक मंगलवार व शनिवार को जातक पर थोड़ा तेल लगाकर हनुमानजी के मंदिर में जहां अखंड दीपक जलता हो, वहां चढ़ाएं और रोगी के शीघ्र आरोग्य होने की प्रार्थना करें। ऐसा करने से इस रोग में लाभ मिलता है।
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योग मदद कर सकता है:---
एक कहावत है, इंसान साइकोसोम या मनोकाय होता है। कई रोग मनोदैहिक होते हैं। अगर दिमाग में कोई तनाव है, तो पेट में एसिडिटी होगी। दिमाग में तनाव है तो दमा हो सकता है। उसी तनाव की वजह से अलग अलग लोगों को अलग अलग तरह के रोग होते हैं। तनाव की वजह से कौन सा रोग होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उस इंसान के अंदर कौन सी चीज जन्म से ही कमजोर है। शरीर और मस्तिष्क दो अलग अलग चीजें नहीं हैं। मस्तिष्क शरीर का सूक्ष्म पहलू है। आमतौर पर जब योग की बात आती है, तो हमारा ज्यादातर काम प्राणमय कोश के स्तर पर ही होता है, क्योंकि अगर हम प्राणमय कोश या ऊर्जा शरीर को पूरी तरह से सक्रिय और संतुलित कर देंगे तो अन्नमय कोश और मनोमय कोश अपने आप ही सही तरीके से संतुलित और स्वस्थ हो जाएंगे।
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इसके अलावा धूम्रपान छुड़वाने के लिए (इस आदत से मुक्ति के लिए) आवश्यक है इच्छाशक्ति मजबूत कर इसका इस्तेमाल छोड़ दिया जाए। इसे छोड़ने के बाद एक या दो दिन तक ब्रिडाल के लक्षण उत्पन्न होते हैं, बेचैनी होती है मगर स्वत: ठीक हो जाती है।
सिगरेट की तलब लगने पर सौंफ, इलायची, लौंग, टॉफी एवं ज्यादा से ज्यादा पेय पदार्थो का सेवन करना चाहिए। साथ ही व्यक्ति को अधिक से अधिक टहलना चाहिए, व्यायाम एवं प्राणायाम करना चाहिए। इससे शरीर में शुद्ध ऑक्सीजन जाती है जो नशे की तलब को दूर करने में सहायक होती है। इसके अलावा, अपना एकाकीपन दूर करने के लिए किसी कार्य में व्यस्त रहना चाहिए या खाली समय संगीत सुनकर बिताना चाहिए।
पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री,

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