अगर करते हैं लोग आपका अपमान तो उनके साथ करें ये सलूक

अगर करते हैं लोग आपका अपमान तो उनके साथ करें ये सलूक

अक्सर आपने देखा होगा मामूली इंसान की अच्छाईयों और बुराइयों को लोग ज़्यादा ध्यान नहीं देते लेकिन जब कोई मामूली इंसान अपनी सफलता की और तेज़ी से बढ़ने लगता है तो लोग उसकी बुराइयों और अच्छाइयों पर कड़ी नज़र रखने लगते हैं उसकी निजी ज़िन्दगी और उसकी प्रोफेशनल ज़िन्दगी में लोगों की रूचि बढती हुई दिखाई देने लगती है जिसके चलते अक्सर इन लोगों की अच्छाइयों पर लोग कम और बुराइयों पर ज़्यादा ध्यान देने लगते हैं. ये लोग उन सफल इंसानों के निचा दिखने की कोशिश करते है इसी वजह से उनकी कमियों को लोगों से बताने लगते हैं ताकि वो सफल इंसान इन बातों से डी मोटीवेट होकर अपनी सफलता की और ना बढ़ पाए. इसीलिए ये लोग उनका अपमान करने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं . ऐसे लोगों को ये बात जान लेना चाहिए कि लोगों की बातों में ना आएं और इन लोगों कि बातों को अनसुना करते रहना चाहिए. सिर्फ और सिर्फ अपने लक्ष्य और अपनी मेहनत पर ध्यान देने की आवश्यकता है ना लोगों की बातों पर। महाभारत में श्रीकृष्ण और शिशुपाल के प्रसंग से हम सीख सकते हैं कि यदि कोई हमारा अपमान करता है तो क्या करना चाहिए.

और वो सीख ये हैं--

1. महाभारत में शिशुपाल और श्रीकृष्ण का प्रसंग काफी चर्चित रहा है। शिशुपाल श्रीकृष्ण की बुआ का पुत्र था और चेदी नगर का राजा था। श्रीकृष्ण ने शिशुपाल की माता को वचन दिया था कि वे शिशुपाल की 100 गलतियां माफ करेंगे, लेकिन 100 गलतियों के बाद उसे उचित सजा भी अवश्य देंगे।
2. विदर्भराज के रुक्मी, रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेस तथा रुक्ममाली नामक पांच पुत्र और एक पुत्री रुक्मिणी थी। रुक्मिणी के माता-पिता उसका विवाह श्रीकृष्ण के साथ करना चाहते थे, लेकिन रुक्मी (रुक्मिणी का बड़ा भाई) चाहता था कि उसकी बहन का विवाह चेदिराज शिशुपाल के साथ हो। अतः उसने रुक्मिणी का टीका शिशुपाल के यहां भिजवा दिया। रुक्मिणी श्रीकृष्ण से प्रेम करती थी, इसलिए उसने श्रीकृष्ण को एक ब्राह्मण के हाथों संदेशा भेजा। श्रीकृष्ण भी रुक्मिणी से प्रेम करते थे और वे ये भी जानते थे कि रुक्मिणी के माता-पिता रुक्मिणी का विवाह मुझसे ही करना चाहते हैं, लेकिन बड़ा भाई रुक्मी मुझसे शत्रुता के कारण ये विवाह नहीं होने देना चाहता है। श्रीकृष्ण ने रुक्मी के विरोध के बावजूद रुक्मिणी से विवाह किया। इस विवाह को चेदिराज शिशुपाल ने अपना अपमान समझा और वह श्रीकृष्ण को शत्रु समझने लगा।

3. कुछ समय बाद जब युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ आयोजित किया। इस आयोजन में सभी प्रमुख राजाओं को आमंत्रित किया गया। चेदिराज शिशुपाल भी यज्ञ में आया था। देवपूजा के समय श्रीकृष्ण का सम्मान देखकर शिशुपाल क्रोधित हो गया और उसने श्रीकृष्ण को अपशब्द कहना शुरू कर दिए। यज्ञ में उपस्थित सभी लोगों ने शिशुपाल को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं माना। अर्जुन और भीम शिशुपाल को मारने के लिए खड़े हो गए तो श्रीकृष्ण ने उन सभी को रोक दिया। शिशुपाल लगातार गालियां देता रहा और श्रीकृष्ण गालियां गिनते रहे। जब वह सौ अपशब्द कह चुका, तब श्रीकृष्ण ने उसे अंतिम चेतावनी दी कि अब रुक जाओ, अन्यथा परिणाम अच्छा नहीं होगा। श्रीकृष्ण के समझाने के बाद भी शिशुपाल नहीं रुका और उसने फिर से अपशब्द कहा। इसके बाद शिशुपाल के मुख से अपशब्द निकलते ही श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उसका मस्तक काट दिया।

श्री कृष्ण की इस कहानी से हमें ये स्सिख लेनी चाहिए कि पहले हम अपने विरोधी को प्यार से समझाएं और जब वो ना समझे और फिर भी लगातार वो आपको अपमानित करने का प्रयास करता है तो उसे जवाब देना ज़रूरी हो जाता है जिस तरह श्री कृष्ण ने इस कहानी में किया.


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