तृप्ति की कलम से

तृप्ति की कलम से

तृप्ति की कलम से-सावन मास के आगमन से प्रकृति कितनी सुहानी हो गयी है। हरे हरे पत्तों पर पानी की बुँदे सीप में मोती की तरह चमक रही है। बारिश की बूंदों का स्पर्श पा के में भी अपने बचपन में पहुँच गयी , हमारे लिए सावन एक त्यौहार की तरह होता था - वो सावन के झूले ,हाथों मे मेहँदी, माँ मौसी द्वारा गाया जाने वाला कजली सावन जैसे लोकसंगीत , सावन में ही बहनो का नागपंचमी ,रक्षाबंधन जैसे त्यौहार मानाने मायके आना होता था।
आधुनिकता की दौड़ में मैं भी अपना शहर छोड़ कितना दूर चली आई , सावन का वह सुख सौन्दर्य क्या हमारे बच्चे भी समझ पाएंगे? इनके लिए तो सावन rainy season है। कभी कभी लगता है कि इस आधुनिक परिवेश में बच्चे अपनी भारतीय लोक संस्कृति से दूर तो नही जा रहे? फिर सोचती हूं कि घर ही बच्चों की पहली पाठशाला हे। घर से ही बच्चे संस्कारों की शिक्षा लेते हैं। आपको नही लगता कि हमें अपने बच्चों को भारतीय लोक संस्कृति भी बतानी चाहिए। अपनी व्यस्त जीवनशैली में से कुछ दिन छुट्टी ले कर बच्चों को विदेश की जगह गाँव की सैर करानी चाहिए ताकि इस शहरी चकाचौन्ध से दूर प्रकृतिको वो भी पहचाने। अपनी पुरानी एल्बम दिखाते हुए उन्हें अपने बचपन से भी अवगत कराना चाहिए । अपनी व्यस्त दिनचर्या में से कुछ समय हमें अपने बच्चों के साथ भी बिताना चाहिए ताकि वो भी अपनी लोकसंस्कृति , परंपरा, सभ्यता को भी पहचाने। अगर हम आप जैसे माता पिता ये ठान ले तो आने वाली genration मोर्डन ,स्मार्ट होने के साथ साथ सभ्य, सुसंस्कृत और भारतीय लोक संस्कृति की जानकार भी होगी।
ये मेरी हिंदी में पहली पोस्ट हे कैसी लगी बताइएगा जरूर आपके सुझावों का स्वागत है- तृप्ति शुक्ला


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