एक ग़ज़ल हुनर
Jul 24, 2017, 05:08 IST
राह कैसी भी हो चलने का हुनर आता है।
वक़्त के साथ बदलने का हुनर आता है।।
अपने माँ बाप से मेले में खिलौनों के लिए,
भोले बच्चों को मचलने का हुनर आता है।।
गर्म रातों में जिन के घर पे छत नहीं होती,
उन्हें सड़कों पे टहलने का हुनर आता है।।
तेज हो धूप तो सूखी सी गर्म बालू को,
बन्द मुट्ठी से फिसलने का हुनर आता है।।
जड़ें बुजुर्ग थीं थामे रहीं दरख़्तों को,
उन्हें तूफ़ाँ में सम्हलने का हुनर आता है।।
पेट घुटनों से भींचते हैं सर्द रातों में,
हमको माहौल में ढलने का हुनर आता है।।
एक हम हैं जो उन्हीं पर यकीन करते हैं,
एक वो हैं जिन्हें छलने का हुनर आता है।।
लेखक- संदीप सरस