संकट में महिलाओं की प्राणप्रिय चोटियां

संकट में महिलाओं की प्राणप्रिय चोटियां
सियाराम पांडेय ‘शांत’
देश की महिलाएं डरी-सहमी हैं। प्राणों से भी अधिक प्रिय उनकी चोटियों पर संकट आ गया है। जिन चोटियों की साज संभाल में उनका ज्यादा समय आईने के सामने बीतता है, जिनके बालों को ‘रूपसि तेरे घन केश पास’ कहकर कविगण अपनी शब्द सामथ्र्य प्रकट करते हैं, उन्हीं चोटियों पर अदृश्य कंैचियां चल रही हैं। अपने जिन चोटियों से वे बेइंतिहा प्रेम करती हैं, वहीं चोटियां काटी जा रही हैं। हरिवंशराय बच्चन की एक कविता है कि ‘दीखती ही न दर्पण रहो प्राण तुम, देखते-देखते चांद ढल जाएगा। केश ही तुम न दिन भर गुथाती रहो, कल दिए को अंधेरा निकल जाएगा। ’ कवियों की पसंदीदा चोटियां, प्रेमियों के लिए नागिन से लहराते बलखाते बालों पर संकट है। उनका रहस्यमय ढंग से कटना किसी की भी समझ में नहीं आ रहा है। बाल कौन काट रहा है, यह तो पता नहीं चल पा रहा लेकिन बाल कट रहे हैं, इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता। जो काम रावण और कंस के राज में भी नहीं हुआ, वह काम आज हो रहा है। महाभारत काल में दुश्शासन द्रौपदी के केश पकड़कर उसे राज सभा में लाया था। अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए द्रौपदी ने भरी सभा में प्रतिज्ञा की थी कि जब तक उसके बालों पर दुश्शसन के रक्त का लेपन नहीं होगा, तब तक वह अपने बाल नहीं बांधेंगी। उसने कहा था कि ‘खल ये नागिन हैं नागिन साधारण केश विचार नहीं। सिंहनी पांचाली है, कुत्तों की तुच्छ शिकार नहीं। खल तेरे ही रक्तों से जब तक नहीं नहाएंगे, छूटे ही बने रहेंगे बस ये बाल न बांधे जाएंगे।’ द्रौपदी के ये खुले बाल महाभारत का सबब बने। जब तक दुश्शासन के कलेजे के खून से द्रौपदी ने स्नान नहीं किया तब तक उसने अपने बाल नहीं बांधे।
कवियों के कल्पना के घन प्रदेश हैं महिलाओं के बाल, उन्हीं नागिन की लहराते-बलखाते बाल कहा गया है। नारी जब अपने बाल खोलकर कोप भवन में चली जाती है तो राम को भी वन जाना पड़ता है। दशरथ चाहकर भी उसका प्रतिरोध नहीं कर पाते लेकिन कटे हुए बालों के सहारे अब महिलाएं अपना कोप प्रकट करंे भी तो कैसे? दुश्शासन ने तो द्रौपदी के बाल भी पकड़े थे लेकिन यहां तो महिलाओं के सुंदर बाल काटे जा रहे हैं। इससे अधिक उनकी बेइज्जती और क्या हो सकती है। जिन बालों से वे अपने सुंदर मुखड़े पर पर्दा डाल लिया करती थी, उन्हीं बालों के अभाव में उन्हें दिली संताप झेलना पड़ रहा है। विडंबना यह कि महिलाओं को पता भी नहीं चलता और उनकी चोटी कट जाती है। किसी के सोते हुए चोटी कटी तो किसी की बच्चे को छोड़कर आते वक्त, किसी की कार्यालय से घर लौटते वक्त। कोई घर में आटा लेने जा रही थी और उसके प्रिय केश कटकर गिर गए। यह एक ऐसा मामला है जिसमें महिलाओं की चोटी काटने का अपराध तो हो रहा है लेकिन चोटी कौन काट रहा है, इसका पता नहीं चल पा रहा है? जिनकी चोटी कटी है, उन महिलाओं को इस बात का भान नहीं हो पाया कि उनका असल अपराधी कौन है? महिलाओं को सुरक्षा देने का दावा करने वाली सरकारें भी भौंचक है। अपराधियों पर कार्रवाई करना उनके लिए अंधेरे में तीर चलाने जैसा है।महिलाओं के केश काटना बेहद निंदनीय घटना है। जिस देश में महिलाओं की चोटी पकड़ना अपमान समझा जाता था और ऐसा करना महाभारत का सबब बनता था, उसी देश में महिलाओं की चोटी कटना चिंता का सबब बना हुआ है।
हाल के कुछ वर्षों उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में मुंहनोचवा का आतंक चरम पर था। जब पुलिस सख्त हुई तब कहीं जाकर इस समस्या का समाधान हुआ। यह अलग बात है कि सैकड़ों लोग मुंहनोचवा के शिकार बने। मुंहनोचवा का आतंक पूर्वी उत्तर प्रदेश से सटे बिहार के कुछ सीमावर्ती जिलों में भी देखा गया था। प्रतापगढ़ और उससे जुड़े जिलों में जंगली सियार का आतंक था जो छोटे बच्चों को निशाना बना रहा था। मुंहनोचवा और जंगली सियार के मामले में हालांकि हकीकत कम और फसाना ज्यादा था। जितनी घटनाएं नहीं हो रही थीं, उससे कहीं अधिक अफवाहों का बाजार गर्म था। चोटी काटने के मामले में भी कुछ इसी तरह की बात देखी जा रही है। अगर सरकार ने पहली-दूसरी घटना पर ही ध्यान दिया होता तो इस तरह की निंदनीय घटनाओं का ग्राफ सात राज्यों की महिलाओं के लिए घातक साबित नहीं होता। उत्तर प्रदेश के ब्रज क्षेत्र में अब तक 30 महिलाओं की चोटियां कट चुकी हैं। आगरा और अलीगढ़ में भी महिलाओं की चोटियों के काटे जाने की घटनाएं हो रही हैं। आगरा में चोटी काटने वाली महिला समझकर एक बुजुर्ग की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। राजस्थान के धौलपुर जिले में चोटी काटने की तीन-चार घटनाएं हो चुकी हैं। पहली वारदात बागथर गांव में हुई और दूसरी वारदात शहर के वाटर वक्र्स के पास हुई। इन घटनाओं से महिलाओं में दहशत का माहौल है। मेवात में अब तक अलग -अलग गांवों में चोटी कटने की करीब 18 घटनाएं हो चुकी हैं। पिनगवां कस्बे में करीब साढ़े 4 बजे आसीन की पुत्री आबरिन जब कमरे में आटा लेने गई तो उसे काली बिल्ली नजर आई, जिसे देखकर वह बेहोश हो गई। कुछ देर बाद जब घर के लोग अंदर गए तो बच्ची बेहोश पड़ी थी और उसकी चोटी कटी हुई थी। दूसरी घटना नगीना खंड के कंकर खेड़ी गांव की है। शाम करीब 6 बजे मुमताज पुत्री जफरू स्नान करने जा रही थी। करीब 17 साल की मुमताज के उस दौरान बाल कट गए। नूंह के वार्ड 2 में पति की मौत के बाद गत 10 मई से इद्दत में बैठी महिला फरमीना की चोटी सुबह कटी मिली। ये घटनाएं बताती हैं कि चोटीकटवा गिरोह इस मामले में जाति-धर्म का विभेद नहीं कर रहा है। क्या हिंदू, क्या मुसलमान, चोटीकटवा के लिए सभी समान। चोटी कटवा के डर से गांवों में लोगों ने अपनी बेटियों को स्कूल भेजना बंद कर दिया है। इस तरह की घटनाएं सामाजिक कलंक हैं। इन पर अविलंब रोक लगाए जाने की जरूरत है। कुछ लोग इसे भूत-प्रेत का काम मान रहे हैं, ऐसे लोगों को किसी भी तरह की अफवाहों में नहीं फंसना चाहिए। बेहद सतर्क रहकर महिलाओं के दुश्मनों को पकड़वाने का प्रयास करना चाहिए।
देश के सात राज्यों में सौंदर्य का प्रतीक मानी जाने वाली महिलाओं की चोटियां काटी जा रही हंै। अन्य राज्यों में भी यह सिलसिला बढ़ सकता है। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, हरियाणा, झारखंड और राजस्थान में भी महिलाओं की चोटियां काटी गई हंै। ये सभी भाजपा शासित राज्य हैं। दो राज्य पंजाब और दिल्ली में भी महिलाओं के श्रंृगार पर चोटीकटवा गिरोह की बुरी नजर लगी है। यह अलग बात है कि यहां महिलाओं की चोटी कटने की घटनाएं अपेक्षाकृत कम हुई हैं तो क्या यह माना जाना चाहिए कि भाजपा शासित राज्यों में बढ़ती इस तरह की घटनाएं वहां की सरकार को बदनाम करने और देश की आधी आबादी के बीच भाजपा के प्रति अविश्वास का माहौल बनाने का षड़यंत्र तो नहीं है। देश के कई राज्यों में चोटीकटवा गिरोह सक्रिय हो गया है। झारखंड, हरियाणा, पंजाब और दिल्ली होते हुए चुड़ैल और चोटीकटवा की दहशत उत्तर प्रदेश में भी फैल रही है। मथुरा में चोटी काटने की 14 और झांसी में तीन, अलीगढ़ में चार, इटावा में एक और आगरा में चोटी काटने की अनेक घटनाएं हुई हैं। हाथरस के चंदपा में घर में काम कर रही एक महिला की चोटी कटकर गिर गई। इससे लोगों में दहशत का माहौल है। इटावा में रात महिला बाल काटने वालों से बचाव की कोशिश में घायल हो गई। अलीगढ़ के खैर कस्बे में टहल रही एक महिला को आज चोटी काटने वाली के शक पकड़कर अभद्रता की गई। अलीगढ़ के गांव मादक में एक युवती व महिला की चोटी कटने की पुलिस जांच कर रही है। झांसी के लोहर और दवाकर और बिजौली गांव में 3 महिलाओं की चोटी काटी गई। पुलिस मामलों की जांच कर रही है। सभी जिलों के कप्तान अलर्ट कर दिए गए हैं। पश्चिमांचल ही नहीं ,अवध और पूर्वांचल में भी छोटी कटवा का आतंक चरम पर है | कुछ ऐसी भी ख़बरें आई हैं जिसमे पीड़ित महिलाओं ने अपनी छोटी खुद खुद काटी है | इसके पीछे अगर मुआवजे का प्रलोभन जिम्मेदार है तो अपने परिजनों को सताने और चिढाने का भाव भी | कुल मिलाकर देश और प्रदेश में छोटी काटने की घटनाएँ जिस तरह बढ़ रही है वह नारी शक्ति के अपमान की इंतिहा है | इस सिलसिले को अविलम्ब रोके जाने की जरुरत है |
सोशल मीडिया पर इस मामले को अंध विश्वास का अमली जामा पहनाया जा रहा है। कहा जा रहा है कि 1008 महिलाओं की चोटियां काटने के बाद तांत्रिक गायब होने की सिद्धि हासिल कर लेते हैं। सोशल मीडिया पर इस बात का भी दावा किया जा रहा है कि हरियाणा में पचास लोगों का गिरोह तांत्रिक सिद्धि पाने के लिए महिलाओं के बाल काट रहा है। इन घटनाओं को चुड़ैलों और डाकिनों से जोड़कर भी देखा जा रहा है। हालांकि इस तरह के दावे में कोई दम नहीं है। केंद्र और राज्य सरकारों को इस मामले की तह तक जाना चाहिए। इसे महज अफवाह मानना और मामले को गंभीरता से न लेना अराजक तत्वों का मनोबल बढ़ाने में सहायक होगा। इस तरह की घटनाएं बाकी के राज्यों में न हों, सरकार को इसका भी ध्यान देना चाहिए। ये घटनाएं भी एक तरह का आतंकवाद हैं, ऐसी घटनाओं को कारित कर रहे शरारतियों से सख्ती से निपटा जाना चाहिए। नीति भी यही कहती है कि पफोड़े को पकने से पहले फोड़ देना चतुराई है। शत्रु को जीवित छोड़ देना बुराई है। इस तरह के काम करने वाले महिलाओं के ही नहीं, हिंदुस्तान के भी दुश्मन है। उन्हें सजा दिलाना इस देश के हर नागरिक का कर्तव्य है।

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