कैसे करेगी सरकार प्रदेश के गरीबो का ईलाज

कैसे करेगी सरकार प्रदेश के गरीबो का ईलाज

अमेठी (शिवकेश शुक्ला) गरीबो का ईलाज आज भी पूरे प्रदेश क्या देश भर में विना डिग्री धारक डॉ के द्वारा किया जा रहा है। कर्ण भी साफ है कि डिग्री धारक डॉ के पास मोती फीस के साथ महंगी दवाओं साथ ही लाईन लगाने के बजाय ग्रामीण क्षेत्रो ने ऐसे ही डॉ से ज्यादा तर लोग इलाज करते देखे जा सकते है यही नही सरकारी अस्पतालों में भी गरीब और निर्बल मरीजो के लिए भी दवाये उपलब्ध नही रहती है साथ ही सरकारों से मोटी तनख्वाह मिलने के बाद भी कम8सहन के लिए बाहर से दवाये के साथ साथ जांच के लिए भेज जाता है।

ऐसे में डॉ के सम्बंध में कुछ पहलू पर मन सोच अगर किसी भी व्यक्ति समुदाय इससे आहत होता है तो माफी चाहूंगा फिर भी

झोलाछाप डॉक्टर के संबंध में कुछ बात आप के समक्ष रखता हूँ

पहली बात -------
ग्रामीण इलाकों में कार्य करने वाले इन डॉक्टर लोगो को हमेशा झोलाछाप की उपाधि देकर अपमानित किया जाता है,लेकिन यही डॉक्टर ग्रामीण क्षेत्र में 24 घंटे सेवा देते है ,दिन हो या रात ये अपना नींद चैन त्याग कर सेवा करते है, यहां तक की ग्रामीण जनता जो गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करती है, जो रोज कमाने और रोज खाने वाले होते है ।
इनके पास इन छोटे डॉक्टर की इलाज का दवाईओ समेत 50 से 100 रुपये देने के लिये नही होते है, तो यही तथाकथित झोलाछाप डॉक्टर इनका इलाज उधार में बिना पैसो के इलाज करते है तो और वह पैसा भी
इन्हें कब मिलेगा उसका कोई ठिकाना नही होता ।

दूसरी बात-------------


यह कि आज तक मैंने किसी भी M.B.B.S या M. D.की डिग्री वाले डॉक्टर को किसी गरीब का इलाज उधार में करते न देखा है,और न ही सुना है।

तीसरी बात-------------

कई बार इन M,B,B,S डॉक्टरों दुवारा कई मरीजो को 10,10 इंजेक्शन लिख कर यह कहकर भेज दिया जाता की ये उधर किसी झोलाछाप डॉक्टर से सुवह शाम लगवा लेना।तो इन डॉक्टर को बंद करवाने के बाद इन इंजेक्शनओ को कौन लगाएगा अतः डिग्री वाले डॉक्टरों को भी अब इंजेक्शन लिखना बंद कर देना चाहिए ।

चौथी बात-----------

आज जितने भी एम, बी ,बी, ऐस, और एम,डी, डॉक्टर है इनका फीस 250 से 300 रुपये हैं । इतने पैसो में तो झोलाछाप डॉक्टर दो से तीन मरीजो का इलाज कर देते है ।
ग्रामीण जनता जो गरीब है,जो मजदूरी करके 150 से 200 रोज का कमाता हैं।वह व्यक्ति यदि किसी डिग्री वाले डॉक्टर के पास इलाज के लिए जाता हैं, तो उसका 300 रुपये तो फीस में चला जाता है अब आगे डिग्री वाले डॉक्टर बिना टेस्ट के कोई इलाज नही करते ,खून जांच ,पेशाब जांच और कई प्रकार के जांच व टेस्ट में 500 से 1000 का खर्चा करवा देते है।बाकी सब टेस्ट हो जाने के बाद अंत मे डॉक्टर 1000 से 1500 का दवाई लिख कर बिदा कर देता है,तो इस तरह एक मरीज के पीछे 2500 से 3000 रुपये का खर्चा हो जाता हैं यदि किसी गरीब परिवार में महीने में दो लोग बीमार पड़ गए तो उस गरीब की पूरे महीने की कमाई इलाज में चला जाता है,और उस महीने का घरेलू खर्च पूरा कर्जा मे।

पांचवी बात---------
आज ग्रामीण डॉक्टरों को दवाई देने से मना किया जा रहा है और पांचवी पास मितानिनों से गांव गांव दवाई बटवा रहे है सरकार को कितनी परवाह हैं ग्रामीणों के स्वास्थ्य की ।अच्छा आज ग्रामीण इलाको में हर गल्ला दुकान में भी सभी प्रकार का टेबलेट मिल जाता है । आप किसी भी गल्ले दुकान पर जाकर बुखार का गोली मांगो मिल जाएगा ,पेचिस का मांगों मिल जाएगा ,सिर दर्द का मांगों मिल जाएगा मलेरिया बुखार का मांगों मिल जाएगा घाव सूखने का टैब, मिल जाएगा ।
तो निष्कर्ष यह निकलता है कि इन मितानिनों व गल्ले दुकान वालो को इन झोलाछाप डॉक्टरों से ज़्यादा ज्ञान है इस कारण इनको दवाई देने की पूरी छूट है।
अरे हां मैं तो भूल गया ,पेट दर्द का भी मिलता है।
आपको क्या लगता है क्या सरकार इन इंडोक्टरों को बंद करवाकर सही कर रही या गलत।

Share this story