स्कूल ने कहा तो जाओ इस्लामिक स्कूल में पढ़ाओ

स्कूल ने कहा तो जाओ इस्लामिक स्कूल में पढ़ाओ
बाराबंकी-क्या कोई भी शिक्षण संस्थान किसी के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है । स्कूल में डिसिप्लिन मेंटेन करना यह तो जरूरी है उसके लिए ड्रेस कोड भी माने रखता है लेकिन क्या किसी का धार्मिक ड्रेस कोड उसमे आड़े आ सकता है ।
बाराबंकी के एक स्कूल में वहाँ के प्रधानाचार्य ने अपना एक ऐसा तुगलकी फरमान सुनाया जो न तो किसी अभिभावक के गले उतर रहा है और न ही किसी आम नागरिक के । यहाँ एक अभिभावक ने अपनी लड़की को सर पर स्कार्फ बंधवा कर भेजा तो स्कूल प्रबंधन को इतना बुरा लगा कि अभिभावक को बच्चे को किसी इस्लामिक स्कूल में दाखिला करा देने का फरमान सुना दिया वह भी लिखित रूप में । स्कूल ने अभिभावक को अपनी ड्रेस कोड का हवाला देते हुए किसी भी प्रकार की छूट देने से इनकार करते हुए बेवजह प्रश्न न करने की हिदायत दी है ।सनसनीखेज मामला सामने आया है बाराबंकी के नगर कोतवाली इलाके के आनन्द भवन स्कूल का । आनन्द भवन स्कूल मूलतः ईसाई मिशनरी स्कूल के रूप में विख्यात है । यहाँ सभी धर्मों को मानने वाले अभिभावकों के बच्चे पठन -पाठन का कार्य करते हैं । इस स्कूल में अपनी लड़की को पढ़ाने वाले मौलाना मोहम्मद रज़ा रिजवी ने एक दिन लड़की को सर पर स्कार्फ बाँध कर भेज दिया था तो विद्यालय प्रबन्धन ने इस स्कार्फ पर एतराज किया और दोबारा स्कार्फ न बाँध कर न आने के लिए कहा । इस पर पत्राचार करते हुए स्कूल प्रबंधन ने हिदायत दी है कि भविष्य में इस मुद्दे पर पत्राचार न करें और अगर कोई समस्या है तो अपनी लड़की का दाखिला किसी इस्लामिक स्कूल में करवा दें ।
स्कूल के इस फरमान पर मौलाना मोहम्मद रज़ा रिज़वी ने बताया कि यह स्कूल अल्पसंख्यकों माना जाता है और इसमें ज्यादातर शिक्षक कर्मचारी इसाई धर्म के मानने वाले है । हमारे इस्लाम धर्म में एक निश्चित आयु तक लड़कियों को सिर ढकने के लिए सिर पर स्कार्फ बाँधने की बाध्यता है और इसी लिए मेरी लड़की स्कूल में सिर पर स्कार्फ बाँध कर गयी थी । इसी स्कार्फ बाँधने को लेकर स्कूल प्रबंधन ने एतराज़ जताया । जब स्कूल से हमने अपनी मजबूरी बता कर पत्राचार किया तो स्कूल को ओर से तुगलकी फरमान सुनाते हुए लिखित रूप से दे दिया गया कि मैं अपनी लड़की का दाखिला किसी इस्लामिक स्कूल में करवा लूँ ।इस मुद्दे पर जब हमने स्कूल की प्रधानाचार्या से बात की तो उन्होंने बताया कि मेरा इरादा किसी धर्म को ठेस पहुंचाना नही था और न ही उनको किसी इस्लामिक स्कूल में दाखिले के लिए मजबूर किया गया है मगर हाँ उनसे यह जरूर कहा गया है कि अगर उन्हें स्कूल के नियमों में कोई असुविधा है तो वह अपने बच्चे को यहाँ से निकाल कर कही और भेज सकते हैं । इस प्रकार का प्रकरण पहली बार उनके सामने आया है मगर जब भी कोई अभिभावक अपने बच्चे का दाखिला यहाँ करवाता है तो एडमिशन फार्म पर स्कूल के सभी नियम लिखे होते है । अभिभावक उन लिखे हुए नियमों पर हस्ताक्षर करके अपनी सहमति देता है ।स्कूल का अपना एक ड्रेस कोड है , अपने नियम है जिसका पालन सभी छात्रों और अभिभावकों को करना पड़ता है अगर इन नियमों को पालन करने पर में अगर किसी को परेशानी है तो वह अपने बच्चे को यहाँ से निकाल सकता है और यही बात मेरे द्वारा कही गयी है ।
-जिस लड़की को स्कार्फ लगाने से मना किया गया उसने बताया कि अब स्कूल में स्कार्फ नही बाँधने दिया जाता । स्कूल में घुसते ही क्लास रूम जाने से पहले ही प्रिंसिपल रूम के बाहर स्कार्फ उतरवा दिया जाता है और फिर बाँधने नही दिया जाता ।इस प्रकरण से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि आखिर बच्चों में स्कूक के ड्रेस कोड के नाम पर उनकी धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ क्यों किया गया है ,क्या इस तरह के तुगलकी फरमान से मासूम बच्चों में किस तरह भावनाएं भड़काई जा रही है । ऐसे शिक्षण संस्थान बच्चों में कौन सी राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ा रहे होंगे जो खुद धार्मिक भेदभाव करते हो । क्या आने वाले समय में सिक्खों के बच्चों के सिर से पगड़ी भी उतरवाने का और हिन्दू बच्चों के माथे पर लगे तिलक को मिटाने का काम भी करंगे या फिर सिर्फ मुस्लिम बच्चियों के सिर से स्कार्फ़ ही उतरवाते रहेंगे । क्या यह स्कूल का प्रबंधन ईसाईयों के बच्चों के गले से उनका धार्मिक आस्था का प्रतीक क्रास का लाकेट भी उतरवायेगा । यह सभी जवाब स्कूल प्रबन्धन को देने ही पड़ेंगे ।

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