जब महारों, मराठों व सिखों ने मिल कर जीता युद्ध

जब महारों, मराठों व सिखों ने मिल कर जीता युद्ध
डेस्क - जिस डाली पर बैठे उसी को काटने वाले शेख चिल्ली को अपना आदर्श मान रहे जिग्नेश मेवाणी व भारत के टुकड़े करने का सपना देखने वाले जेएनयू के विद्यार्थी उमर खालिद जैसे लोगों के लिए आज 13 व 14 जनवरी का दिन काला दिवस हो सकता है क्योंकि आज के दिन महारों, मराठों, सिखों, मुसलमानों, राजपूतों ने मिल कर ऐसा पराक्रम दिखाया कि विदेशी शक्तिाशाली ब्रिटिश सेना को दुम दबा कर भागना पड़ा। आज का दिन है राष्ट्रीय एकता की विजय का जो मेवाणियों व खालिदों की बिखराववादी राजनीति के अनुकूल नहीं। भीमा कोरेगांव के बहाने देश में दलित अस्मिता के नाम पर विभाजनकारी बीज बिखेरने वालों को आज का दिन सबक है कि जिस समानता, जाति अस्मिता की वह बात करते हैं वह मिलजुल कर भी प्राप्त की जा सकती है। जरूरी नहीं कि उसके लिए मराठों या किसी अन्य जाति वर्ग से टकराव मोल लिया जाए, समाज में वैमनस्य फैलाया जाए, लोगों के वाहन फूंके जाएं, सड़कें जाम की जाएं।
वैसे देश के लिए दुर्भाग्य की बात है ब्रिटिश सेना के लिए लड़ रहे महारों व मराठों के बीच हुई हार जीत पर तो भीमा कोरेगांव में स्मारक बना है परंतु उस लड़ाई को कोई याद भी नहीं करता जो महारों, मराठों, सिखों, राजपूतों, मुसलमानों ने मिल कर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ी और शानदार जीत प्राप्त की। इस युद्ध के नायक थे मराठा शासक महादजी शिंदे। आजादी हासिल करने की राह में ऐसे कम ही युद्ध हुए थे जहां भारतीय ताकतों को विजय मिली थी। वडग़ांव का युद्ध एक ऐसी ही जंग थी। बात आज से ठीक 239 साल पहले की है। वो समय था 13/14 जनवरी 1779 का। मराठा जनरल महादजी शिंदे ने शातिर अंग्रेजों को उनकी ही भाषा में जवाब देने की सोची। वह अंग्रेजी सेना को लुभाते-लुभाते खंडाला की पहाडिय़ों तक ले आए। ये इलाका ऐसा था जो मराठा सैनिकों के लिए जानी-पहचानी युद्धभूमि थी। मराठाओं की अश्वारोही सेना ने अंग्रेजों को चारों ओर से घेर लिया, इतना ही नहीं खोपली में उनके सप्लाई बेस को भी ध्वस्त कर दिया।
हताश और निराश अंग्रेज सैनिक रात के अंधेरे में तलगांव से पीछे हटने लगे, लेकिन मराठाओं की फौज कोई गलती नहीं करने वाली थी, जनरल महादजी की फौज ने फिर हमला किया और अंग्रेजी सेना रात के अंधेरे में वडगांव की ओर भागकर अपनी जान बचा पाई। लेकिन मराठा सैनिक अंग्रेजों का पीछा कहां छोडऩे वाले थे। वडगांव में अंग्रेजों को चारों ओर से घेर लिया गया। यहां पर ब्रितानी सेना के पास ना तो खाना था और ना ही पानी। जब इनके पास भूखों मरने की नौबत आ गई तो थकहार इन्होंने मराठा फौज के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। यह ब्रिटिश सेना की एक ऐसी हार थी जिसने अंग्रेजों के दर्प को चकनाचूर कर दिया।
हालांकि यहां पर भारतीय वही भूल कर बैठे जिसे दिल्ली के राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान ने 12वीं सदी में इस्लामी हमलावर मोहम्मद गौरी के साथ की थी। मराठा फौज ने दया और धर्म का परिचय देते हुए अंग्रेजों को बंबई वापस लौटने की अनुमति दे दी। इसका नतीजा यह हुआ कि अगले दिन मराठाओं को अंग्रेंजों से फिर एक लड़ाई लडऩी पड़ी। वडग़ांव का युद्ध भारत की विजय थी। इस लड़ाई में अंग्रेजों को मात देने वाली मराठा फौज में मुस्लिम, राजपूत, सिख शामिल थे। जबकि पैदल सेना में मोर्चा महार संभाल रहे थे। हांलाकि अंग्रेजों ने भारत पर राज करने के बाद इस युद्ध का इतिहास अपने तरीके से लिखा। अंग्रेज लेफ्टिनेंट स्टीवर्ट जो कि अंग्रेजों के अग्रिम मोर्चे का नेतृत्व कर रहा था उसे मराठाओं ने जनवरी महीने के शुरुआत में ही मार दिया था। लेकिन इतिहास में उसे वडग़ांव युद्ध के 'हीरो' का दर्जा दिया गया और उसके उस शौर्य को पंक्बिद्ध किया गया। जबकि वडग़ांव का युद्ध उसकी मौत के लगभग 2 महीने बाद हुआ था। बाद में महाराष्ट्र के वडग़ांव में एक कब्र की पहचान कर गया कि यह लेफ्टिनेंट स्टीवर्ट की कब्र है उसके बाद हर साल वहां पर मेले का आयोजन किया जाने लगा।
हम भारतीयों के पास दो विकल्प हैं, एक तो 200 साल पहले भीमा कोरेगांव की तरह विदेशियों के हाथों में खेलते हुए आपस में लड़ें या फिर वडग़ांव की तरह एकजुट हो कर दुश्मन को परास्त करें। भीमा कोरेगांव प्रतीक है कि जब-जब हम आपस में लड़े तो इसका लाभ विदेशियों ने उठाया, देश पर दूसरों का शासन स्थापित हुआ, हमारे लिए गुलामी का दौर चला, विकास रुका, गरीबी आई, देश का विभाजन हुआ, हम भारतीयों पर भयंकर अत्याचार हुए, खून खराबा हुआ। वडग़ांव युद्ध प्रतीक है कि जब-जब हम एकजुट हुए बड़ी से बड़ी सेना भी हमसे परास्त हुई। वह विदेशी परास्त हुए जो हमें गुलामी की जंजीरों में बांधने आए, हमारी स्वतंत्रता को बाधित करने आए, विकास का मार्ग अवरुद्ध करने आए। स्वतंत्रता, भाईचारा, सामाजिक सौहार्द, वर्गगत समरसता मार्ग है विकास का, उन्नति का, प्रगति का हम भारतीयों को किस मार्ग पर आगे बढऩा है उसका निर्धारण हमें खुद को करना है।
राकेश सैन
32 खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।
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