नहीं ख़राब है हमेशा भद्रा काल, इन कामों में मिलेगी निश्चित सफलता

नहीं ख़राब है हमेशा भद्रा काल, इन कामों में मिलेगी निश्चित सफलता
जानिए भद्रा काल में क्या-क्या कार्य करना चाहिए ----
भद्रा काल केवल शुभ कार्य के लिए अशुभ माना गया है। जो कार्य अशुभ है परन्तु करना है तो उसे भद्रा काल में करना चाहिए ऐसा करने से वह कार्य निश्चित ही मनोनुकूल परिणाम प्रदान करने में सक्षम होता है। भद्रा में किये जाने वाले कार्य – जैसे क्रूर कर्म, आप्रेशन करना, मुकदमा आरंभ करना या मुकदमे संबंधी कार्य, शत्रु का दमन करना,युद्ध करना, किसी को विष देना,अग्नि कार्य,किसी को कैद करना, अपहरण करना, विवाद संबंधी काम, शस्त्रों का उपयोग,शत्रु का उच्चाटन, पशु संबंधी कार्य इत्यादि कार्य भद्रा में किए जा सकते हैं।
जानिए भद्रा में कौन से कार्य नहीं करना चाहिए ---
भद्रा काल में शुभ कार्य अज्ञानतावश भी नहीं करना चाहिए ऐसा करने से निश्चित ही अशुभ परिणाम की प्राप्ति होगी। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भद्रा में निम्न कार्यों नही करना चाहिए है। यथा — विवाह संस्कार, मुण्डन संस्कार, गृह-प्रवेश, रक्षाबंधन,नया व्यवसाय प्रारम्भ करना, शुभ यात्रा, शुभ उद्देश्य हेतु किये जाने वाले सभी प्रकार के कार्य भद्रा काल में नही करना चाहिए।
इन उपायों से होगा भद्रा दोष निवारण ----
जिस दिन भद्रा हो और परम आवश्यक परिस्थितिवश कोई शुभ कार्य करना ही पड़े तो उस दिन उपवास करना चाहिए।
प्रातः स्नानादि के उपरांत देव, पितृ आदि तर्पण के बाद कुशाओं की भद्रा की मूर्ति बनाएं और पुष्प, धूप, दीप, गंध, नैवेद्य, आदि से उसकी पूजा करें, फिर भद्रा के बारह नामों से हवन में 108 आहुतियां देने के पश्चात तिल और खीरादि सहित ब्राह्मण को भोजन कराकर स्वयं भी मौन होकर तिल मिश्रित कुशरान्न का अल्प भोजन करना चाहिए। फिर पूजन के अंत में इस प्रकार मंत्र द्वारा प्रार्थना करते हुए कल्पित भद्रा कुश को लोहे की पतरी पर स्थापित कर काले वस्त्र का टुकड़ा, पुष्प, गंध आदि से पूजन कर प्रार्थना करें -
'छाया सूर्य सुते देवि विष्टिरिष्टार्थदायिनी।
पूजितासि यथाशक्त्या भदे भद्रप्रदा भव॥'
फिर तिल, तेल, सवत्सा, काली गाय, काला कंबल और यथाशक्ति दक्षिणा के साथ ब्राह्मण को दें। भद्रा मूर्ति को बहते पानी में विसर्जन कर देना चाहिए। इस प्रकार विधिपूर्वक जो भी व्यक्ति भद्रा व्रत का उद्यापन करता है, उसके किसी भी कार्य में विघ्न नहीं पड़ते।
भद्रा व्रत करने वाले व्यक्ति को भूत-प्रेत, पिशाच, डाकिनी, शाकिनी तथा ग्रह आदि कष्ट नहीं देते।
भद्रा परिहार - : कुछ आवश्यक स्थिति में भद्रा का परिहार हो जाता है। जैसे- तिथि के पूर्वार्द्ध भाग में प्रारंभ भद्रा अर्थात् तिथि दिवस के पूर्वार्द्ध भाग में प्रारंभ भद्रायादि तिथ्यन्त में रात्रिव्यापिनी हो जाए, तो दोषकारक न होकर सुखदायिनी हो जाती है।
पंडित दयानंद शास्त्री

Share this story