kundli analysis and prediction क्या आपकी कुंडली मे धनयोग है ? सिंह लग्न के जातक कैसे होते हैं ,सिंह लग्न में धन योग

Kya apki kundli me dhanyog hai
kundli analysis and prediction  कब बनता है कुंडली में धन योग 

 सिंह लग्न में धन योग का प्रभाव How to analyse my kundali? 

(1) सिंह लग्न में बुध, मिथुन या कन्या राशि में हो तो जातक धनाध्यक्ष होता है, लक्ष्मी उसका पीछा नहीं छोड़ती। 
(2) सिंह लग्न में बुध, शुक्र के घर में तथा शुक्र, बुध के घर में परस्पर राशि परिवर्तन करके बैठे हों तो ऐसा व्यक्ति भाग्यशाली होता है तथा खूब धन कमाता है । 
(3) सिंह लग्न में मंगल मेष या वृश्चिक राशि का हो तो जातक अल्प प्रयत्न से ही बहुत धन कमाता है। ऐसा व्यक्ति धन के मामले में भाग्यशाली होता है ।

(4) सिंह लग्न में बुध, मंगल के घर में तथा मंगल, बुध के घर में अर्थात् बुध,

मेष या वृश्चिक राशि में हो तथा मंगल, मिथुन या कन्या राशि में हो तो व्यक्ति महाभाग्यशाली होता है। लक्ष्मी चेरी की तरह उसकी दासी बनी रहती है।

(5) सिंह लग्न में शुक्र यदि केंद्र- त्रिकोण में हो तथा बुध स्वगृही होकर मिथुन या कन्या राशि में हो तो जातक कीचड़ में कमल की तरह खिलता है अर्थात् सामान्य परिवार में जन्म लेकर व्यक्ति धीरे-धीरे अपने पराक्रम व पुरुषार्थ से लक्षाधिपति व कोट्याधिपति हो जाता है।

(6) सिंह लग्न में सूर्य हो तथा गुरु एवं मंगल से युत किंवा दृष्ट हो तो जातक महाधनी होता है तथा धनशाली व्यक्तियों में अग्रगण्य होता है। 
(7) सिंह लग्न में पंचमस्थ बृहस्पति स्वगृही हो तथा लाभस्थान में चंद्र मंगल हो तो जातक महालक्ष्मीवान होता है।

(8) सिंह लग्न हो, पंचम बृहस्पति तथा लाभस्थान में बुध स्वगृही हो तो महालक्ष्मी योग बनता है। ऐसा जातक लक्षाधिपति होता है।

(9) सिंह लग्न में सूर्य, मिथुन राशि में हो तथा बुध लग्न में सिंह राशि में हो तो जातक 33वें वर्ष में पांच लाख रुपये कमा लेता है तथा शत्रुओं का करते हुए स्वअर्जित धनलक्ष्मी को भोगता है। ऐसे व्यक्ति को जीवन में अचानक रुपया मिलता है।

सिंह लग्न की सम्पूर्ण जानकारी 

(10) सिंह लग्न हो, लग्नेश सूर्य, धनेश बुध, भाग्येश मंगल अपनी-अपनी उच्च व स्वराशि में हो तो जातक करोड़पति होता है । 
(11) सिंह लग्न के द्वितीया स्थान में राहु, शुक्र, मंगल और शनि की युति हो तो जातक अरबपति होता है ।

(12) सिंह लग्न में धनेश बुध यदि छठे, आठवें और बारहवें स्थान में हों तो “धनहीन योग" की सृष्टि होती है। जिस प्रकार घड़े में छिद्र होने के कारण उसमें पानी नहीं ठहर पाता, ठीक उसी प्रकार ऐसे व्यक्ति के पास धन नहीं ठहर पाता । सदैव रुपयों की कमी बनी रहती है। इस योग की निवृत्ति हेतु गले में अभियंत्रित “बुधयंत्र" धारण करना चाहिए। 

(13) सिंह लग्न में धनेश बुध यदि आठवें हो तथा सूर्य यदि लग्न में हो तो जातक को भूमि में गढ़े हुए धन की प्राप्ति होती है या लॉटरी से रुपया मिलता है पर रुपया पास में टिकता नहीं ।

( 14 ) लग्नेश व द्वितीयेश यदि तुला राशि में हो तो जातक को भाइयों का पूर्ण सहयोग प्राप्त होता है और भाइयों द्वारा कमाया गया धन भोगता है। (15) शुक्र सूर्य के नवांश में हो तो जातक ऊन, दवा, घास, धान, सोना, मोती आदि

के व्यापार से अर्थ उपार्जित करता है।

सिंह लग्न में राजयोग 
 

(16) लग्न में गुरु, 10 दसवें बुध या 4-7 वें केंद्र स्थानों में बुध एवं उसे नवमेश देखता हो तो जातक लक्ष्मीवान होता है।

(17) राहु वृष राशि का हो, शनि लाभ भाव में तथा भाग्येश उसे देख रहा लग्नेश नीचस्थ ग्रह से युत न हो तो जातक आनंदमय जीवन व्यतीत करता है। उसे आर्थिक चिंता कभी नहीं रहती । (18) मंगल उच्च का हो उसे सूर्य, चंद्र व गुरु देखते हों तो जातक को पूर्ण वाहन सुख, पारिवारिक एवं आर्थिक सुख मिलता है ।
 (19) चंद्रमा व शनि दशम भाव में हों या सुख स्थान में हो तो 'ब्रह्मांड योग' होता है । जातक अतुल धन संपदा प्राप्त करता है।
 (20) चंद्रमा मकर का तथा चंद्रमा के साथ सुयोग हो, उसे शनि देखे तो जातक दुःखी, परेशान, चिंतित व दरिद्र-जीवन व्यतीत करता है। (21) लग्नेश लग्न में हो तथा दशमेश चतुर्थ में एवं चतुर्थ भाव का स्वामी दशम भाव में हो तो जातक उच्च पद प्राप्त करता है। आर्थिक दृष्टि से संपन्न होता है

(22) सूर्य, मंगल, बुध भी आय भवन में मिथुन राशि में स्थित हो तो जातक धनाढ्य होता है ।

(23) सिंह लग्न हो तथा शुक्र, गुरु कहीं भी एक साथ बैठ जाएं तो लखपति होने पर भी कंगाल बनना पड़ता है। यदि शुक्र, गुरु, बुध तीनों मेषस्थ हों तो कुबेर को भी कंगाल होना पड़ता है।

 

 


( 24 ) अष्टमेश गुरु 45,9,10 स्थानों में और लग्नेश निर्बल हो तो जातक दिवालिया होता है।

(25) सिंह लग्न में मंगल मेष या वृश्चिक राशि में हो तो 'रूचकयोग' बनता है।

ऐसा जातक राजा तुल्य ऐश्वर्य को भोगता हुआ अथाह भूमि, संपत्ति व धन का स्वामी होता है। (26) सिंह लग्न में सुखेश मंगल, लाभेश बुध नवमभाव में शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो

ऐसे जातक को अनायास धन की प्राप्ति होती है। (27) सिंह लग्न में गुरु + चंद्र की युति कन्या, वृश्चिक, धनु या मेष राशि में हो तो इस प्रकार के गजकेसरी योग के कारण व्यक्ति को अनायास उत्तम धन की प्राप्ति होती है। ऐसे व्यक्ति को लॉटरी, शेयर बाजार या अन्य व्यापारिक स्त्रोत से अकल्पनीय धन मिलता है।

(28) सिंह लग्न में धनेश बुध अष्टम में एवं अष्टमेष गुरु धनस्थान में परस्पर परिवर्तन करके बैठे हो तो ऐसा व्यक्ति तारा, जुआ, मटका, घुड़रेस, स्मगलिंग एवं अनैतिक कार्यों से धन अर्जित करता है।

(29) सिंह लग्न में तृतीयेश शुक्र लाभस्थान में एवं लाभेश बुध तृतीय स्थान में परस्पर परिवर्तन करके बैठा हो तो ऐसे व्यक्ति को भाई, मित्र एवं भागीदारों द्वारा धन की प्राप्ति होती है।

(30) सिंह लग्न में बलवान बुध के साथ यदि चतुर्थेश मंगल की युति हो तो व्यक्ति को माता, नौकर, वाहन, भूमि एवं भवन के द्वारा धन की प्राप्ति होती है ।

(31) सिंह लग्न में यदि बलवान बुध के साथ पंचमेश गुरु हो तथा द्वितीय भाव शुभ ग्रहों से दृष्ट हों तो ऐसे व्यक्ति को पुत्र द्वारा धन की प्राप्ति होती है। किंवा पुत्र जन्म के बाद ही जातक का भाग्योदय होता है।

(32) सिंह लग्न में बलवान बुध की यदि षष्टेश शनि से युति हो तथा धन भाव मंगल से दृष्ट हो तो ऐसे जातक को शत्रुओं के द्वारा धन की प्राप्ति होती है। ऐसा जातक कोर्ट-कचहरी में शत्रुओं को हराता है तथा शत्रुओं के कारण ही उसे धन व यश की प्राप्ति होती है।

कुंडली में कौन सा ग्रह धन देता है?

(33) सिंह लग्न में बलवान बुध की सप्तमेश शनि से युति हो तो जातक का

भाग्योदय विवाह के बाद होता है तथा उसे पत्नी ससुराल पक्ष से धन की प्राप्ति होती है।

(34) सिंह लग्न में बलवान बुध की नवमेश मंगल से युति हो तो जातक राजा से, राज्य सरकार से, सरकारी अधिकारियों एवं सरकारी अनुबंध (ठेके) से काफी रुपया कमाता है ।

(35) सिंह लग्न में बलवान बुध की दसमेश शुक्र से युति हो तो जातक को पैतृक सम्पत्ति, पिता द्वारा संपादित धन की प्राप्ति होती है अथवा पिता का व्यवसाय जातक के भाग्योदय में सहायक होता है।

(36) सिंह लग्न में दशम भवन का स्वामी शुक्र यदि छठे, आठवें या बारहवें

स्थान में हो तो जातक को परिश्रम का पूरा लाभ नहीं मिलता। जन्म स्थान

में जातक नहीं कमा पाता, उसे धन की सदैव कमी बनी रहती है। 
( 37 ) सिंह लग्न में लग्नेश सूर्य यदि छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो तो तथा धनेश बुध निर्बल हो तो व्यक्ति कर्जदार होता है तथा धन के मामले में कमजोर होता है।

(38) सिंह लग्न के धनभाव में पापग्रह बैठा हो तथा लाभेश बुध यदि छठे,आठवें, बारहवें स्थान में हो तो व्यक्ति दरिद्री होता है।

(39) सिंह लग्न में केंद्र स्थानों को छोड़कर चंद्र यदि बृहस्पति से छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो तो 'शकट योग' बनता है जिसके कारण व्यक्ति को सदैव धन का अभाव बना रहता है। 
(40) सिंह लग्न में धनेश बुध यदि अस्त हो, नीच राशि (मीन) में हो तथा धनस्थान एवं अष्टम स्थान में कोई पाप ग्रह हो तो व्यक्ति सदैव ऋणग्रस्त रहता है, कर्ज उसके सिर से उतरता ही नहीं। (41) सिंह लग्न में लाभेश बुध यदि छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो तथा लाभेश अस्तगत एवं पापपीड़ित हो तो जातक महादरिद्री होता है।

सिंह लग्न के उपाय 

(42) सिंह लग्न में अष्टमेश गुरु वक्री होकर कहीं बैठा हो या अष्टम स्थान में कोई ग्रह वक्री होकर बैठा हो तो अकस्मात धन हानि का योग बनता है । अर्थात् ऐसे व्यक्ति को धन के मामले में परिस्थितिवश अचानक भारी नुकसान हो सकता है, अतः सावधान रहें। 
(43) सिंह लग्न में अष्टमेश गुरु शत्रुक्षेत्री, नीच राशिगत (मकर) या अस्त हो तो अचानक धन की हानि होती है।

 

 

 

 

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