यादवसिंहराज में एस एम एस से दिया जाता था टेंडर

यादवसिंहराज में एस एम एस से दिया जाता था टेंडर
लखनऊ-यादव सिंह का कार्यकाल भी अपने आप में अजूबा था साइट पर पहले ही शुरू हो जाता था काम और उसके बाद टेंडर दिए जाते थे यही नहीं एस एम एस के जरिए दे दिए जाते थे टेंडर । यादव सिंह पर आरोप है कि उन्होंने यूपी के सबसे अमीर विभाग नोएडा प्राधिकरण में चीफ इंजीनियर रहते हुए कई सौ करोड़ रुपये घूस लेकर ठेकेदारों को टेंडर बांटे. ये सारे टेंडर उन्होंने महज आठ दिनों में बांट दिए थे. नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेस अथॉरिटी के चीफ इंजीनियर रहते हुए यादव सिंह की सभी तरह के टेंडर और पैसों के आवंटन बड़ी भूमिका होती थी. साल 2011 के दिसंबर महीने के लगातार 8 दिनों में ही इन टेंडर को पास करने के लिए यादव सिंह ने कागजातों पर दस्तखत किए थे. जिन कंपनियों को टेंडर दिए गए थे उनमें से कई ने साइट पर काम बहुत पहले ही शुरू कर दिए थे और दिसंबर तक करीब 60 फीसदी काम भी पूरा कर दिया गया था. आरोप हैं कि 21.90 करोड़ रुपये का कॉन्ट्रैक्ट जेएसपीएल कंस्ट्रक्शन को दिया गया था. तिरुपति कंस्ट्रक्सन को 25.50 करोड़ रुपये का टेंडर और एनकेजी इंफ्रास्ट्रक्चर्स को 34.87 करोड़ रुपए का टेंडर बिना यादव सिंह के दस्तखत के ही दे दिया गया था. यादव सिंह के डायरी से खुलेंगे कई राज यादव सिंह के पास से एक डायरी जब्त हुई बताई जाती है जिसमे कमीशन के पैसे जिन लोगों को दिए गए थे उनके नाम लिखे गए हैं हालांकि इसकी पुष्टी अभी नहीं की गयी है यादव सिंह के कारनामे के बाद इस बड़े कारनामे के बाद ही उनपर इनकम टैक्स वालों की नजर पड़ी थी. जब उनके ठिकानों पर इनकम टैक्स विभाग का छापा पड़ा था तब वहां उसके पास अरबों रुपये के बंगले, गाड़ियां, शेयर, जेवरात, जमीन और कंपनियों का पता चला था. नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेस अथॉरिटी के चीफ इंजीनियर रहते हुए यादव सिंह ने दिसंबर 2011 में 92 करोड़ रुपए के अंडरग्राउंड केबल कॉन्ट्रैक्ट में भी नियमों का पालन नहीं किया गया था. प्रदेश में अखिलेश सरकार आने के बाद मायावती के कार्यकाल की जांच हुई. इसी दौरान यादव सिंह नपे. 2011 के उस घूस मामले पर यूपी पुलिस ने 13 जून 2012 को एफआईआर दर्ज किया. हैरतअंगेज तरीके से इसके कुछ ही महीने बाद 3 जनवरी को मामले की क्लोजर रिपोर्ट पेश कर दी गई और सरकार ने उसे 27 अप्रैल को कबूल भी कर लिया. आरोपों की वजह से यादव सिंह को डिमोट कर के प्रोजेक्ट मैनेजर बना दिया गया था, लेकिन क्लोजर रिपोर्ट के कबूल होते ही उन्हें दोबारा चीफ इंजीनियर बना दिया गया. यादव सिंह पर हैं ये मामले आय से अधिक संपत्ति और बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार सीबीआई के दो केस में आरोपी यादव सिंह पर आपराधिक साजिश, हेराफेरी और धोखाधड़ी का आरोप है. सीबीआई ने यादव सिंह पर धारा 409, 420, 466, 467, 469, 481 और भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत मामला दर्ज किया है. गिरफ्तारी से पहले सीबीआई ने कई बार यादव सिंह को पूछताछ के लिए दिल्ली बुलाया था. सीबीआई ने यादव सिंह के भ्रष्टाचार के रैकेट से जुड़े इंजीनियर रमेंद्र सिंह को 18 दिसंबर को गिरफ्तार किया था. कब क्या हुआ 03 नवंबर 2012 सपा सरकार ने यादव सिंह के खिलाफ 954 करोड़ की परियोजनाओं में अपने लोगों ठेके देने के मामले में जांच सीबीसीआईडी को सौंपी. 27 नवंबर 2014 को सीबीसीआईडी की फाइनल रिपोर्ट को अदालत में मंजूर कर लिया. 27 नवंबर 2014 और अगले दिन इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने नोएडा, दिल्ली, गाजियाबाद में यादव सिंह के ठिकानों पर छापा मारा. इसके बाद 08 दिसंबर 2014 को राज्य सरकार ने निलंबित कर विभागीय जांच बैठाई. 10 दिसंबर 2014 को हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में यादव सिंह की जांच सीबीआई से कराने की याचिका दाखिल की गई. 16 दिसंबर 2014 को याचिका पर कोर्ट ने केंद्र, नोएडा प्राधिकरण, राज्य सरकार और यादव सिंह को नोटिस जारी किया. 10 फरवरी 2015 को राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के रिटायर जस्टिस एएन वर्मा की अध्यक्षता में एक सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग गठित किया. 24 फरवरी 2015 को वित्त मंत्रालय नई दिल्ली ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव आलोक रंजन को पत्र लिखकर यादव सिंह से जुड़े दस्तावेज सीबीआई को देने को कहा. 06 अप्रैल 2015 को राज्य सरकार ने केंद्र को यह कहते हुए सीबीआई को दस्तावेज देने से इंकार कर दिया और कहा कि न्यायिक आयोग जांच कर रहा है. 11 जुलाई 2015 को राज्य सरकार ने आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) से कहा कि वह भी इस जांच में न्यायिक आयोग की मदद करे. 16 जुलाई 2015 को हाईकोर्ट ने यादव सिंह के खिलाफ सीबीआई जांच करने के आदेश दे दिए. हाईकोर्ट ने तीखे एतराज भी जताए. 04 अगस्त 2015 को सीबीआई ने यादव सिंह, उनकी पत्नी और साझेदारों समेत 14 ठिकानों पर छापे मारे. इस दौरान 10 करोड़ नकद, दो किलो सोना और 100 करोड़ रुपये कीमत के करीब के गहने जब्त किए गए थे.    Source web

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