सूर्य ग्रहण 9 मार्च को ,किन राशियों पर होगा असर

सूर्य ग्रहण 9 मार्च को ,किन राशियों पर होगा असर
उज्जैन-विक्रम संवत् 2072 और कीलक नाम संवत्सर के फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर 9 मार्च 2016 दिन( बुधवार) को 320 वर्ष बाद कुम्भ राशि पर पंचग्रही योग में सूर्य ग्रहण होगा। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार इस सूर्य ग्रहण का सूतक 8 मार्च 2016 ( मंगलवार ) की शाम को 5.24 बजे आरम्भ हो जायेगा। इस दिन चन्द्रमा कुम्भ राशि में और पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र रहेगा।। योग-साध्य, करण--नाग रहेगा। ****उज्जैन में ग्रहण काल अथवा स्पर्श ---- प्रातः 6 बजकर 41 मिनट 17 सेकण्ड को होगा (9 मार्च 2016, बुधवार को)।। ग्रहण मध्य - प्रातः 6 बजकर 43 मिनट पर होगा ।। ग्रहण मोक्ष - प्रातः 6 बजकर 46 मिनट 58 सेकण्ड पर होगा।। बुधवार (9 मार्च,2016 ) को उज्जैन में सूर्योदय प्रातः 6 बजकर 44 मिनट पर होगा इसलिये उज्जैन में ग्रहण 5 मिनट 40 सेकण्ड तक दृश्य होगा।। **** भारत कुछ अन्य शहरो में इस सूर्य ग्रहण की जानकारी--- 01.---भोपाल में 12 मिनट 1 सेकण्ड (सुबह 6 बजकर 34 मिनट से 6 बजकर 46 मिनट तक) ।। 02.---नागपुर में 20 मिनट 18 सेकण्ड तक (सुबह 6 बजकर 27 मिनट से 6 बजकर 47 मिनट तक)।। 03.---चेन्नई में 28 मिनट 1 सेकण्ड तक (सुबह 6 बजकर 20 मिनट से 6 बाककर 48 मिनट तक)।। 04.---भुवनेश्वर में 49 मिनट 34 सेकण्ड तक (सुबह 6 बजे से 6 वजकर 49 मिनट तक)।। 05.---नई दिल्ली में 7 मिनट 40 सेकण्ड तक (सुबह 6 बजकर 37 मिनट से 6 बजकर 44 मिनट तक)....।।। ****सावधान/ सतर्क रहें वे लोग जो अथक प्रयासों द्वारा तैयार इस लेख को काट छांट कर, कॉपी पेस्ट करने का कुत्सित प्रयास करेंगें।। उन सभी पर सूर्यदेव और राहुदेव का भारी कोप होगा।। कॉपी पेस्टर सावधान.!!! ज्योतिष के अनुसार उज्जैन सिंहस्थ 2016 से पहले पंचग्रही योग में सूर्य ग्रहण शुभ फलदायी नहीं है। पश्चिमोत्तर भाग को छोड़ कर यह ग्रहण अंचल सहित पूरे देश में खण्डग्रास के रूप में दिखाई देगा। यह ग्रहण पूर्वा भाद्र पक्ष नक्षत्र में साध्य योग, कुंभ राशि में स्थित चंद्र के साथ घटित होने जा रहा हैं। इस ग्रहण अवधी के समय आकाश में 5 ग्रह केतु, बुध, सूर्य, शुक्र और चंद्र कुम्भ राशि पर साथ रहेंगे। इन ग्रहों पर शनि-युत मंगल की दृष्टि भी है। ****आधुनिक विज्ञान अनुसार -- भौतिक विज्ञान की दृष्टि से जब सूर्य व पृथ्वी के बीच में चन्द्रमा आ जाता है तो चन्द्रमा के पीछे सूर्य का बिम्ब कुछ समय के लिए ढ़क जाता है, उसी घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है। पृथ्वी सूरज की परिक्रमा करती है और चाँद पृथ्वी की। कभी-कभी चाँद, सूरज और धरती के बीच आ जाता है। फिर वह सूरज की कुछ या सारी रोशनी रोक लेता है जिससे धरती पर साया फैल जाता है। इस घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है। यह घटना सदा सर्वदा अमावस्या को ही होती है। ****वैज्ञानिक दृष्टा थे ऋषि मुनि --- ग्रह नक्षत्रों की दुनिया की यह घटना भारतीय मनीषियों को अत्यन्त प्राचीन काल से ज्ञात रही है। चिर प्राचीन काल में महर्षियों नें गणना कर दी थी। इस पर धार्मिक, , वैचारिक, वैज्ञानिक विवेचन धार्मिक एवं ज्योतिषीय ग्रन्थों में होता चला आया है। महर्षि अत्रिमुनि ग्रहण के ज्ञान को देने वाले प्रथम आचार्य थे। प्रकाश काल से ग्रहण पर अध्ययन, मनन और परीक्षण होते चले आए हैं। **** सूर्य ग्रहण के समय क्या करें, हमारे ऋषि-मुनियों के अनुसार----- हमारे ऋषि-मुनियों ने सूर्य ग्रहण लगने के समय भोजन के लिए मना किया है, क्योंकि उनकी मान्यता थी कि ग्रहण के समय में कीटाणु बहुलता से फैल जाते हैं। खाद्य वस्तु, जल आदि में सूक्ष्म जीवाणु एकत्रित होकर उसे दूषित कर देते हैं। इसलिए ऋषियों ने पात्रों में कुश डालने को कहा है, ताकि सब कीटाणु कुश में एकत्रित हो जाएं और उन्हें ग्रहण के बाद फेंका जा सके। पात्रों में अग्नि डालकर उन्हें पवित्र बनाया जाता है ताकि कीटाणु मर जाएं। ग्रहण के बाद स्नान करने का विधान इसलिए बनाया गया ताकि स्नान के दौरान शरीर के अंदर ऊष्मा का प्रवाह बढ़े, भीतर-बाहर के कीटाणु नष्ट हो जाएं और धुल कर बह जाएं। **** पुराणों के अनुसार --- पुराणों की मान्यता के अनुसार राहु चंद्रमा को तथा केतु सूर्य को ग्रसता है। ये दोनों ही छाया की संतान हैं। चंद्रमा और सूर्य की छाया के साथ-साथ चलते हैं। चंद्र ग्रहण के समय कफ की प्रधानता बढ़ती है और मन की शक्ति क्षीण होती है, जबकि सूर्य ग्रहण के समय जठराग्नि, नेत्र तथा पित्त की शक्ति कमज़ोर पड़ती है। गर्भवती स्त्री को सूर्य-चंद्र ग्रहण नहीं देखने चाहिए, क्योंकि उसके दुष्प्रभाव से शिशु अंगहीन या विकलांग बन सकता है, गर्भपात की संभावना बढ़ जाती है। इसके लिए गर्भवती के उदर भाग में गोबर और तुलसी का लेप लगा दिया जाता है, जिससे कि राहु-केतु उसका स्पर्श न करें। ग्रहण के दौरान गर्भवती महिला को कुछ भी कैंची या चाकू से काटने को मना किया जाता है और किसी वस्त्रादि को सिलने से रोका जाता है। ****इस सूर्य ग्रहण के समय ये करें उपाय -- ग्रहण लगने के पूर्व नदी या घर में उपलब्ध जल से स्नान करके मंत्रो का जप करना चाहिए। भजन-कीर्तन करके ग्रहण के समय का सदुपयोग करें। ग्रहण के दौरान कोई अन्य कार्य न करें। ग्रहण के समय में मंत्रों का जाप करने से सिद्धि प्राप्त होती है।। ग्रहण की अवधि में तेल लगाना, भोजन करना, जल पीना, मल-मूत्र त्याग करना, केश विन्यास बनाना, रति-क्रीड़ा करना, मंजन करना वर्जित किए गए हैं। ग्रहण समाप्त हो जाने पर पुनः स्नान करके ब्राह्‌मण को दान देने का विधान है। कहीं-कहीं वस्त्र, बर्तन धोने का भी नियम है। पुराना पानी, अन्न नष्ट कर नया भोजन पकाया जाता है और ताजा जल भरकर पिया जाता है। ग्रहण के बाद दान देने का अधिक माहात्म्य बताया गया है **** जनित की सूतक की स्थिति क्या होती हैं ---- सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर पूर्व और चंद्र ग्रहण में तीन प्रहर पूर्व सूतक लग जाता है । सूतक की स्थिति में भोजन नहीं करना चाहिये। बालक , वृद्व और रोगी एक प्रहर पूर्व तक खा सकते हैं । ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरुरतमंदों को वस्त्र दान से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है। 'देवी भागवत' में आता है कि भूकंप एवं ग्रहण के अवसर पृथ्वी को खोदना नहीं चाहिये। ****ग्रहण काल में क्या करें? ग्रहण काल में क्या न करें - ग्रहण काल आरम्भ होने से समाप्ति के मध्य की अवधि में मंत्र ग्रहण, मंत्रदीक्षा, जप, उपासना, पाठ, हवन, मानसिक जाप, चिन्तन करना मानसिक जाप, कल्याणकारी होता है. सूर्य ग्रहण अवधि में देव मूर्तियों को स्पर्श नहीं किया जाता है। ग्रहण मोक्ष के बाद स्वयं भी स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें, तथा देवमूर्तियो को स्नान करा कर, गंगाजल छिडक कर, नवीन वस्त्र पहनाकर, देवों का श्रंगार करना चाहिए। देव प्रतिमाओं के अलावा तुलसी वृ्क्ष, शमी वृ्क्ष को स्पर्श नहीं किया जाता है। ग्रहण के बाद इन सभी पर भी गंगाजल छिडक इन्हें शुद्ध किया जाता है। ग्रहण काल में अपने इष्ट देव, मंत्र, गुरु मंत्र, आदि का जाप दीपक जलाकर करना चाहिए। मंत्रो की सिद्धि के लिये यह सर्वथा शुभ है। । इस अवधि में सूर्य उपासना विशेष रुप से की ही जाती है !! पंडित दयानंद शास्त्री

Share this story