आग ने साफ़ कर दी पूरी गृहस्थी ,प्रशासन की नजरों में कीमत मात्र 7 हजार

आग ने साफ़ कर दी पूरी गृहस्थी ,प्रशासन की नजरों में कीमत मात्र 7 हजार
अख़लाक़ की मौत पर करोड़ों बांटने वाली सरकार, जिन्दों के पुनर्वास के नाम पर खाली हाथ ? गोण्डा - प्रदेश में सियासत अपने परवान पर है, वोटनीति ने राजनीति और समाजसेवा के मायने बदल दिए हैं। प्रदेश के एक कोने में एक सत्तर साल के अख़लाक़ की मौत पर मुख्यमंत्री के खजाने खुल जाते हैं और करोडों बाँट दिए जाते है, पर वहीँ दूसरी प्रदेश में अग्निकांड के शिकार हुए परिवारो को सरकार चवन्नी और अठन्नियों में तौल रही है। यह कौन से मानक हैं जहाँ मुर्दों की कीमत जिन्दा परिवारों से ज्यादा हो गयी है ? दरअसल राजनेताओं ने इन्सान की जात को वोट में विभाजित कर, जनता को मूलभूत सुविधाएँ देने के मुद्दो से हटा कर सरकारों ने जनता को वोटबैंक के अतिरिक्त कुछ समझा नहीं, शायद तभी दादरी के मुर्दों के नाम पर प्रदेश सरकार द्वारा तीस लाख बाँट दिए जाते हैं , तो दूसरी ओर गोण्डा जिन्दों लोगों के लिए सरकार की जेब में ताले पड़ जाते हैं। विगत दिनों में जनपद में विभिन्न कारणों से अग्निकांड की कई घटनाएँ प्रकाश में आयीं, कई गृहस्तियाँ उजड़ गयीं कुछ घायल हुए तो कुछ को अपने खेत-खलिहानों को जलते हुए देख कर छाती पकड़ सोना पड़ा। जाने कितने किसानो की खून-पसीने की मेहनत खाक में मिल गयी। प्रदेश सरकार द्वारा ऐसी आपदाओं के आने पर तहसील स्तर पर महज तीस हज़ार का प्रावधान किया गया है, परन्तु वह रकम भी पीड़ितों को पूरी नहीं मिल पा रही। ऐसी ही एक अव्यवस्था का शिकार कटरा विधान सभा के ग्राम पंचायत मंगूरही के अंतर्गत ग्राम सूबेदार पुरवा के निवासी सहज राम तिवारी और उनका परिवार हुआ। कुछ दिन पूर्व अज्ञात कारणों से लगी आग से चार परिवारों सन्तराम तिवारी दीना नाथ तिवारी राजेन्द्र प्रसाद तिवारी बैज नाथ तिवारी सहज राम तिवारी के 12 मवेशियों सहित गृहस्थी खासा प्रभवित हुयी। जिसमें सबसे अधिक नुक़सान सहज राम तिवारी का हुआ अनाज सहित जीवन की गाढ़ी कमाई जल कर ख़ाक हो गयी। खाने के लिए दूसरे घरों से जो थोड़ा बहुत आटा चावल मिलता है उसी में पेट की आग बुझाने को मजबूर है। सहजराम बताते हैं कि बेटी के गौने की खातिर जुटाया गया सारा सामान , जेवर , साड़ियां, बर्तन सहित अटैची बक्से सभी कुछ जल कर राख हो गए, पीने के लिए ग्लास तक नही बचा। कुछ समाजसेवियों द्वारा मदद के उपरांत प्रशासन से महज सात हज़ार की सहायता राशी ही मिल सकी है। जबकि प्रावधान तीस हज़ार तक देने के हैं। हालाँकि सहायता राशि के रूप में मिलने वाली यह रकम भी “प्रसाद” बाँटने के बाद मिलती है। पीड़ित परिवार को किसी राजनैतिक घराने से कोई सहायता नहीं मिल सकी , संभतः वोट बैंक की राजनीती करने वालों को यहाँ किसी प्रकार का रस नहीं दिखा। Courtesy rishansh tivari live gonda news

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