काश होते आई जी आशुतोष तो बच सकती थी मासूम आशुतोष की जान

काश होते आई जी आशुतोष तो बच सकती थी मासूम आशुतोष की जान
कानपुर-10 हजार पुलिस, 100 एसटीएफ, सर्विलांस, एलआईयू, दर्जनभर सीओ, चार एसपी, एसएसपी, डीआईजी व आईजी के शहर में होने के बावजूद अपहृत मासूम आशुतोष के मामले में पुलिस के हाथ नौ दिनों तक खाली रहें। 10वें दिन जो भी कुछ सुराग मिला उससे मासूम के परिजनों की पैरों तले जमीन खिसक गई और एक ही चीख निकल रही थी कि वह होते तो शायद मासूम की जान बच जाती। यह वह और कोई नहीं पूर्व आईजी आशुतोष पाण्डेय हैं।बताते चलें कि कानपुर जोन के पूर्व आईजी आशुतोष पाण्डेय कार्यकाल संभालने के बाद पुलिस की नकेल कसने के साथ ही तकनीकी क्षेत्र के सुधार में जुट गए। जिससे उनके कार्यकाल में घटनाओं का जल्द ही खुलासा होता रहा। खासतौर पर बच्चों के अपहरण, बलात्कार जैसे दिल दहला देनी वाली घटनाओं में विशेष सतर्कता बरतते थे। लेकिन बैंक मैनेजर के बेटे आशुतोष अपहरण मामले में शहर पुलिस की कार्यशैली नौ दिनों तक लगातार विफल साबित हुई और अन्ततः उसकी हत्या कर दी गई। शुक्रवार को जब मासूम की मौत की जानकारी परिजनों को हुई तो उनका रो-रो कर बेहाल हो उठे। बेसुध बैंक मैनेजर धर्मपाल सिंह को जब भी होश आता तो वह एक ही बात की रट लगाए रहे कि काश आशुतोष पाण्डेय होते तो मेरे आशुतोष की जान बच जाती। माता पिता का करूण क्रंदन देख इलाकाई लोग भी पूर्व आईजी को याद करने लगे और उपस्थित सभी लोग पुलिस की नाकामी को कोसने लगे। पडोसी रामकिशन सिंह ने बताया कि जिस दिन से बच्चे का अपहरण हुआ पुलिस का जो रवैया रहा उससे तो यही लगता था कि आज जो दुखद समाचार मिला है वह किसी भी दिन मिल सकता है। एसी में बनती थी रणनीति नौबस्ता निवासी राजेश सिंह का कहना है कि जिस दिन आशुतोष का अपहरण किया गया उसी दिन हम सब थाने गए थे। लेकिन पहले दिन से ही पुलिस परिजनों को गुमराह किए किए थी नौबस्ता एसओ ने पहले तहरीर लेकर एफआईआर दर्ज करने में देरी की। वहीं आईजी जोन जकी अहमद व एसएसपी शलभ माथुर अपहरण के मामले को लेकर संजीदा नहीं दिखे और एसी कमरों में ही रणनीति बनाते रहे। जिसका खामियाजा अन्तत: आशुतोष के परिजनों को भुगतना पड़ा। आॅफिस से नहीं निकलते डीआईजी-आईजी- मासूम की हत्या के बाद शहर में आग की तरह खबर फैली और जगह-जगह चर्चा होने लगी। आईजी आवास के बाहर गुमटी में चाय पी रहे शकील व अनूप ने बताया कि अपरहण की घटनाओं में स्थानीय पुलिस के साथ आलाधिकारियों को भी सक्रिय होना चाहिए। लेकिन आशुतोष के अपहरण में आईजी जकी अहमद तो आॅफिस से ही नहीं निकलते। परेड चैराहा में पान की दुकान में भी यही चर्चा होती रही। दिनेश सिंह ने कहा कि अब तो ऐसा लग रहा है कि शहर में आईजी है ही नहीं तो वहीं डीआईजी नीलाब्जा चैधरी महकमे के काम के बजाय कार्यक्रमों में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में जरूर दिखाई देते हैं।

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