डी एम के आदेश से ज्यादा जरुरी चाय की चुस्कियां गोंडा के तहसीलदार का कारनामा

डी एम के आदेश से ज्यादा जरुरी चाय की चुस्कियां गोंडा के तहसीलदार का कारनामा
गोंडा -इन्हें मजिस्ट्रेट का दर्जा प्राप्त है संवेदनशील मामलों में निर्णय लेने का अधिकार इन्हें दिया गया है लेकिन गोंडा के तहसीलदार को डेढ़ किलोमीटर की दूरी तय करने में डेढ़ महीने लग गए अधिकार संपन्न प्रशासनिक अधिकारी जिसमे सूझबूझ और निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए वह निर्णय लेने के बजाय अपने उच्चाधिकारी के आदेश का अनुपालन ही नहीं करते अधिकार संपन्न व्यक्ति अगर अपने अधिकारी का ही आदेश नहीं मानता तो उसकी कार्यकुशलता पर प्रश्नचिन्ह लगा देता है अक्षम अधिकारियों का अधिकार जहाँ बेकार जाता है वहीँ स्थिति बनने के बजाय और बिगड़ भी जाती है बात हो रही है गोंडा के तहसीलदार राजेश कुमार जायसवाल कि जिन्हें जिलाधिकारी गोंडा आशुतोष निरंजन द्वारा मजिस्ट्रेट के रूप में तीन सदस्यीय कमेटी में 30 मई को नामित करते हुए अमर शहीद राजेन्द्र लाहिड़ी विद्यालय पंतनगर पथवलिया लखनऊ रोड गोंडा के कार्यालय कक्ष और कमरों के ताले खुलवाकर समस्त चार्ज प्रबंधक ओम प्रकाश श्रीवास्तव को सौंपने का निर्देश दिया था । डेढ़ महीने में तय किया डेढ़ किलोमीटर की दूरी तीन सदस्यीय टीम में मजिस्ट्रेट के रूप में नियुक्त तहसीलदार गोंडा सदर को शिक्षा जैसे बुनियादी सवाल की संवेदनशीलता नहीं समझ आई और डेढ़ महीने बाद तहसीलदार राजेश कुमार जायसवाल का कारवां डेढ़ महीने बाद लाव लश्कर के साथ पहुंचा और ताला खुलवाने के बजाय आरोपी लिपिक राज प्रसाद मिश्रा के साथ पंचायत करने लगे। तहसीलदार को जहाँ उस लिपिक के विरुद्ध सरकारी कार्य में बाधा पहुचाने का मुकदमा कायम कराना चाहिए था उसकी बहस को सुनते रहे इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी एक लिपिक और उसके द्वारा लाये गए अन्य सहयोगियों द्वारा जहाँ विद्यालय के स्थल के मामले को तीन सदस्यों की समिति ने निस्तारित कर दिया वहीँ उसी बिंदु पर फिर से लिपिक द्वारा बड़े ही चतुराई के साथ एक प्रशासनिक अधिकारी को अपने शब्दों के मकड़जाल में फंसा लिया । तहसीलदार राजेश जायसवाल की प्रशासनिक क्षमता धरी रह गई वह भूल गए की उनके साथ बहस करने वाला लिपिक राज प्रसाद आरोपी है और अनुशासनहीनता और अराजकता के कारण सेवा समाप्ति की विधिक प्रक्रिया की जा रही है । तहसीलदार के इस प्रशासनिक विफलता पर क्षेत्रीय लोगों ने भी कड़ा प्रतिरोध किया लेकिन तहसीलदार बिना डी एम के आदेश का अनुपालन कराये ही वापस तहसील चले आये और मामले को टालने के लिए सारी जुगत बनाने लगे। शिक्षा का अधिकार अधिनियम को लागू करने में भी विफल प्रदेश में जहाँ शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू है वहीँ सरकार द्वारा विद्यालयों में छात्र नामांकन पर जोर दिया गया विद्यालय के शिक्षकों द्वारा भरी दुपहरी में विपरीत परिस्तिथियों में भी छात्र नामांकन में सफलता पायी गई जिसमे क्षेत्रीय लोगों ने जमकर सहयोग दिया यही नहीं सहयोग करने वालों को भी तरह तरह से परेशान किया गया लेकिन प्रशानिक विफलता के कारण जहाँ शैक्षणिक माहौल नहीं बन पाया वहीँ शिक्षक भी दहशत में काम करते हैं और विद्यालय का बरामद ही उनका एक आसरा है इस सबके बावजूद मौके पर पहुचे मजिस्ट्रेट तहसीलदार राजेश कुमार जायसवाल को कोई गंभीरता नजर नहीं आई और तहसील आकर आराम से चाय की चुस्कियां लेते रहे। तहसीलदार द्वारा डी एम के आदेश की अवहेलना करने पर उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही करने की शिकायत जिलाधिकारी सहित प्रमुख सचिव राजस्व से की गई है। लेकिन तहसीलदार राजेश कुमार जायसवाल की कार्यशैली सवालों के घेरे में आ गई है ।

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