एक ऐसा मंदिर जिससे एक राजा को माननी पड़ी हार लेकिन आज है जिला प्रशासन की उपेक्षा का शिकार

एक ऐसा मंदिर जिससे एक राजा को माननी पड़ी हार लेकिन आज है जिला प्रशासन की उपेक्षा का शिकार
डेस्क -उत्तर प्रदेश कानपुर का नाम इतिहास के पन्नों पर भी है क्योंकि यह नगर ऐसा रहा है जहां पर मुगल शासकों से लेकर अंग्रेजो तक की कहानियां बयां करता है चाहे हम आजादी की लड़ाई की बात कर ले तो उसने भी कानपुर का बहुत बड़ा योगदान है चाहे हम मुगल शासकों को लेकर बात कर ले या फिर अंग्रेजों की बात कर ले किसी न किसी प्रकार से कानपुर से या उसके आसपास से आज भी कुछ न कुछ कहानी किस्से सुनने को मिलते रहते हैं और ऐसे ऐसे चीजें मिलती हैं जिनकी आपने कल्पना भी ना की होगी आज हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं इस मंदिर को लेकर बड़े-बड़े किस्से जुड़े हैं यह वह मंदिर है जहां एक राजा को इस मंदिर के आगे झुकना पड़ गया था. कहां पर है मंदिर- उत्तर प्रदेश के कानपुर मंडल में एक जिला कानपुर देहात पड़ता है कुछ समय पहले तक या जिला कानपुर नगर ही कहलाता था लेकिन समय बदलने के अनुसार वह कानपुर देहात के नाम से जाना जाता है लेकिन यह कानपुर मंडल के अंतर्गत आता है कानपुर देहात के एक छोटे से गांव बनीपारा मैं एक शिव मंदिर है जिस शिव मंदिर को बाणेश्वर के मंदिर के नाम से जाना जाता है क्या है इस मंदिर का इतिहास- मन्दिर के पुजारी व समाजसेवी चतुर्भुज त्रिपाठी का कहना है कि यह मन्दिर महाभारत काल से इसी गांव में है और प्रलय काल तक रहेगा ।राजा बाणेश्वर की बेटी ऊषा भगवान शिव की अनन्य भक्त थी। उनकी पूजा करने वह इतनी तल्लीन हो जाती थी कि अपना सब कुछ भूलकर आधी-आधी रात तक दासियों के साथ शिव का जाप करती थी। बेटी की भक्ति को देखकर राजा शिवलिंग को महल में ही लाना चाहते थे ताकि उनकी बेटी को जगंल में न जाना पड़े और उसकी पूजा आराधना महल में ही चलती रहे । जिसको लेकर राजा बाणेश्वर ने घोर तपस्या की। कई वर्षो के बाद राजा की तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेशंकर ने उन्हें साक्षात दर्शन दिये और वरदान मांगने को कहा। उनकी बात सुनकर राजा ने उनसे अपने महल में ही बसने की प्रार्थना की। भगवान ने उनकी इस इच्छा को पूर्ण करते हुए वे अपना एक लिंग स्वरुप उन्हे दिया किन्तु शर्त रखी कि जिस जगह वह इस शिवलिंग को रखेगे,वैसे ही वह उसी जगह स्थापित हो जायेगा।शिवलिंग पाकर प्रसन्न राजा बाणेश्वर तुरंत अपने राजमहल की ओर चल पड़े। रास्ते में ही राजा को लघुशंका लगी। उन्हें जंगल में एक आदमी आता दिखाई दिया। राजा ने उसे शिवलिंग पकड़ने के लिए कहा और जमीन पर न रखने की बात कहीं।उस आदमी ने शिवलिंग पकड़ तो लिया, लेकिन वह इतना भारी हो गया कि उसे शिवलिंग को जमीन पर रखना पड़ा। जब राजा बाणेश्वर वहां पहुंचे तो नजारा देख हैरान रह गए। उन्होंने शिवलिंग को कई बार उठाने की कोशिश की, लेकिन वह अपनी जगह से नहीं हिला। और अंततः राजा को हार माननी पड़ी और राजा को वहीं पर मंदिर का निर्माण कराना पड़ा, जो आज बाणेश्वर के नाम से मशहूर है। क्या है मान्यता- मान्यता है कि सदियों से भोर के समय शिवलिंग पर पुष्प, चावल और जल खुद-ब-खुद चढ़ जाता है, क्योंकि राजकुमारी उषा आज भी सबसे पहले आकर यहां शिवजी की पूजा करती हैं।ग्रामीणों के अनुसार इस मंदिर में स्थापित अद्भुत शिवलिंग के दर्शन मात्र से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। कांवड़िये सबसे पहले लोधेश्वर और खेरेश्वर मंदिर में गंगाजल अर्पित करते हैं। इसके बाद बाणेश्वर मंदिर में जल चढ़ाकर अनुष्ठान को पूरा करते हैं। गांववालों की आस्था है कि सावन के सोमवार का व्रत रखने से सभी मुरादें पूरी होती हैं। नागपंचमी के दिन यहां एक बड़े मेले का आयोजन होता है, जिसमें देशभर के कांवाड़ियों की भीड़ जुटती है। उपेक्षा का शिकार- समाजसेवी चतुर्भुज त्रिपाठी ने बताया कि यह एक बहुत प्राचीन मंदिर है और हर शिवरात्रि पर यहां पर 15 दिन का विशाल मेला का आयोजन होता है जिस मेले को लेकर लाखो लोग दूर दूर से आते हैं इस मेले की पुष्टि राजस्व अभिलेख भी करते हैं जिसमें या मेला दर्ज है लेकिन शासन की अनदेखी के चलते यह प्राचीन मंदिर आज भी उपेक्षा का शिकार है जिसके चलते मंदिर से जुड़ी भूमि पर अब भू माफियाओं ने कब्जा कर रखा है जिसकी शिकायत कई बार गांव वालों ने जिला प्रशासन से की लेकिन उसके बावजूद भी जिला प्रशासन के कानों में जूं तक नहीं रेंगी अगर ऐसे ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब यह मंदिर कही इतिहास के पन्नों में खो कर रह जाएगा.

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