एक मुस्लिम जिसके यहाँ ओम जय जगदीश हरे होता है गुंजायमान

एक मुस्लिम जिसके यहाँ ओम जय जगदीश हरे होता है गुंजायमान
डेस्क -उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में वैसे तो लगभग सभी मोहल्लों में जन्माष्टमी को लेकर तैयारियां जोरों पर है।लेकिन डा. एस. अहमद के यहां जो तैयारियां की गई है वह लोगों के लिए विगत 26 वर्षों से आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है।साथ ही साथ 26 वर्षों से हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक बने हुए हैं। 26 वर्षों से हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक - उत्तर प्रदेश के कानपुर के बर्रा के डा. एस. अहमद हिन्दू-मुस्लिम एकता और गंगा जमुनी तहजीब के लिए बीते 26 वर्षों से कृष्ण जन्माष्टमी बड़ी धूम-धाम से मना रहे हैं।यही नहीं अहमद का पूरा परिवार भी उत्सव में बराबर खुशियां इजहार करता है और जन्माष्टमी बिलकुल उसी तरह मनाते हैं जिस तरह कोई हिन्दू मनाता है।यहां पर घर में गूंजती घंटियों की आवाज और उसके साथ ‘‘ओम जय जगदीश हरे...‘‘ आरती का गान यह नजारा देख कर बड़े से बड़े लोगो उनको सलाम करते है। एक मजार से मिली प्रेरणा- अहमद ने बताया कि इसकी प्रेरणा हमें बाराबंकी की मज़ार से मिली जहां पर हिन्दू और मुस्लिम एक साथ इबादत करते है। उनका मानना है कि जब देश के महापुरूषों का जन्म दिन हिन्दू और मुस्लिम एक साथ मना सकते हैं तो श्री कृष्ण का जन्म दिन मनाने में क्या परहेज़।हालांकि बहुत से कट्टरपंथियों ने डा. एस. अहमद का विरोध भी किया पर उन्हें इस बात से कोई भी परहेज़ नहीं है। पिछले 26 सालों से वे लगातार श्री कृष्ण जन्माष्टमी अपने घर में अपने पारिवार के साथ मनाते आ रहे हैं और बड़े फक्र से यह भी कहते हैं कि मेरे द्वारा सजाई गई झांकी में श्री कृष्ण के इतने रूप होते हैं जो शायद और किसी के घर में देखने को ना मिलें। यही नहीं डाक्टर के सभी पडोसी उनकी इस श्रद्धा और जज्बे का एहतराम करते हैं और उनके साथ पूरी श्रद्धा के साथ श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाते हैं। डा. अहमद भी बड़े मनोयोग से श्री कृष्ण की मूर्तियों को किसी बच्चे की तरह सहेज कर रखते हैं। जिस देश में दो संस्कृतियों में इतने प्यारे और गहरे सम्बन्ध स्थापित हो चुके हों वहां अलगाववादी ताकतों को हारना ही पड़ेगा इसे खुदा का रहमत कहें या फिर भगवान का आशीर्वाद।

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