फ़्लैट लेने जा रहे हैं तो इन वास्तु का जरूर रखें ध्यान

फ़्लैट लेने जा रहे हैं तो इन वास्तु का जरूर रखें ध्यान
जिस भूमि पर अधिक सुरक्षा व सुविधा प्राप्त हो सके, इस प्रकार के मकान को भवन व महल आदि जिसमें मनुष्य रहते हैं या काम करते हैं उसे वास्तु कहते है। इस ब्रह्मण्ड में सबसे शाक्तिशाली प्राकृति है क्योंकि यही सृष्टि का विकास करती है। यही ह्रास प्रलय, नाशा करती है। वास्तु शास्त्र इन्हीं प्राकृतिक शाक्तियों का अधिक प्रयोग कर अधिकतम सुरक्षा व सुविधा प्रदान करता है।। वास्तुविद पंडित " दयानन्द शास्त्री के अनुसार कुछ वास्तु दोष ऐसे होते हैं जो वास्तु का ज्ञान ना होने पर भी दिखाई दे जाते हैं जैसे गलत स्थान पर रसोई, टैंक, जल की निकासी, पूजाघर, शयनकक्ष बच्चों का कमरा यदि गलत जगह बना हो तो उस घर में रहने वालों को मानसिक अशांति का सामना करना पड़ता है। इसलिए अगर आप कोई नया घर या फ्लैट खरीदने जा रहे हैं तो नीचे लिखी वास्तु सम्मत बातों का ध्यान अवश्य रखें ताकि नये घर में भी आपका जीवन खुशियों से भरा रहे—- बढ़ती हुई आबादी और कम पड़ती हुई जमीन के कारण आजकल महानगरों में आँगन या चौक वाले मकान बनना असंभव हो गए हैं। पुराने जमाने में हमारे बड़े – बूढ़े कहा करते थे, कि जिस मकान में चौक नहीं होते थे उन्हें शुभ फलदायक नहीं माना जाता था। आज कल महानगरों में इतनी जमीन ही नहीं मिल पाती है ।। ऐसे में यह कोशिश करनी चाहिये की फ्लेट, घर का ब्रम्ह स्थान खाली रहे। वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार भवन के अन्दर के मध्य भाग को ब्रम्हास्थान कहा गया है जिसका बड़ा महत्व हैं। पुराने जमाने में जितने भी घर बनते थे उन सब में ब्रम्हस्थान खुला छोड़ा जाता था। जिसे चौक कहा जाता था। पहले के समय निर्माण में कोई स्तंभ या कोई साजो सामान नहीं रखा जाता था। वास्तु के अनुसार घर के ब्रम्ह स्थान हमेशा खाली छोडऩा चाहिये। यह स्थान एकदम खाली (पिल्लर या बीम) रहित होना चाहिये। इस स्थल पर किसी भी तरह का निर्माण करवाना घर में रहने वालों के लिए बहुत अशुभ माना गया है। इस जगह को खाली ना छोडऩे पर गृहस्वामी को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। यदि इस जगह को मकान बनाते समय खाली ना छोड़ पाएं तो इस बात का ध्यान रखें की घर में उस जगह पर अधिक वजनदार सामान ना रखे। इसका वैज्ञानिक औचित्य भी है। -------ब्रम्हस्थान के खुला रहने पर सूर्य के प्रकाश की किरणे सीधे घर में पड़ती है। वायुमंडल की पूरी उर्जा इस स्थान से होकर पूरे घर में फैलती है। जिससे घर में सुख व समृद्धि आती है। ----- रसोईघर कभी घर के मुख्य दरवाजे के सामने ना हो। ----शौचालय का स्थान उत्तर-पश्चिम या दक्षिण-पश्चिम में होना चाहिए। –---रसोई, पूजा स्थल और शौचालय एक-दूसरे के अगल-बगल में ना हो। ---– ईशान कोण या उत्तर-पूर्व नीचा और दक्षिण-पश्चिम ऊंचा रहना चाहिए। ----- उत्तर-पूर्व कोने में शौचालय या रसोई घर नहीं होना चाहिए। -----उत्तर-पूर्व में कोई बोरिंग भूमिगत पानी या टंकी या किसी प्रकार का गढ्ढा ना हो।। **** कैसे करे आपके नए फ्लेट या घर में ऊर्जा का समन्वय--- वास्तु शास्त्र इन्हीं प्राकृतिक शाक्तियों का अधिक प्रयोग कर अधिकतम सुरक्षा व सुविधा प्रदान करता है। ये प्राकृतिक शाक्तियां अनवरत चक्र से लगातार चलती रही है। (1) गुरूत्व बल, (2) चुम्बकीय शाक्ति, (3) सौर ऊर्जा पृथ्वी में दो प्रकार की प्रावृति शक्तियां हैं। (1) गुरूत्व बल, (2) चुम्बकीय शक्ति गुरूत्व :- गुरूत्व का अर्थ है पृथ्वी की वह आकर्षण शक्ति जिससे वह अपने ऊपर आकाश में स्थित वजनदार वस्तुओं को अपनी ओर खींच लेती है। उदाहरण के लिए थर्मोकोल व पत्थर का टुकडा। ऊपर से गिराने पर थर्मोकोल देरी से धरती पर आता है जबकि ठोस पत्थर जल्दी आकर्षित करती है। इसी आधार पर मकान के लिए ठोस भूमि प्रशांत मानी गई है। चुम्बकीय शक्ति :- यह प्राकृति शक्ति भी निरन्तर पुरे ब्राह्मण्ड में संचालन करती है। सौर परिवार के अन्य ग्रहों के समान पृथ्वी अपनी कक्षा और अपने पर घुमने से अपनी चुम्बकीय शक्ति को अन्त विकसित करती है। हमारा पुरा ब्रह्मण्ड एक चुम्बकीय क्षेत्र है। इसके दो ध्रुव है। एक उत्तर, दूसरा दक्षिण ध्रुव। यह शक्ति उत्तरसे दक्षिण की ओर चलती है। सौर ऊर्जा :- पृथ्वी को मिलने वाली ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत सूर्य है। यह एक बडी ऊर्जा का केन्द्र है। सौर ऊर्जा पूर्व से पश्चिम कार्य करती है। पंच महाभूतों का महत्व दर्शन, विज्ञान एवं कला से संबंधित प्राय सभी शास्त्र यह मानते है कि मानव सहित सभी प्राणी पंचमहाभूतों से बने हैं। अत: मानव का तन, मन एवं जीवन इन महाभूतों के स्वत: स्फूर्त और इनके असन्तुलन से निश्क्रिय सा हो जाता है। पण्डित दयानन्द शास्त्री

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