जंगली देवी मंदिर यहाँ प्रसाद में मिलता है खजाना

जंगली देवी मंदिर यहाँ प्रसाद में मिलता है खजाना
कानपुर -शारदीय नवरात्र का पर्व नवरात्र शनिवार से शुरु हो जाएगा।मां के मंदिरों की सजावट व तैयारियों का काम पूरा हो चुका है।शहर के किदवई नगर में जंगली देवी मां का मंदिर है,यहां नवरात्र पर करीब पांच लाख भक्त देश विदेश से आते दर्शन के लिए आते हैं। ऐसी मान्यता है कि मां जो भक्त श्रृद्वा से मां के चेहरे के सामने देखकर मन्नते मांगता है तो जंगली देवी का चेहरे का रंग अपने आप हल्का गुलाबी हो जाता है।मां के चेहरे का रंग बदलते ही भक्त की हर मनोकामना अपने आप पूरी हो जाती हैं।जंगली देवी का इतिहास बहुत पुराना है।कहा जाता है कि बगाही गांव में 838 इसवीं में राजा भोज ने एक मंदिर का निर्माण कराया था।उस दौरान यहां एक बहुत विशाल जंगल था।वहीं, जहां मंदिर का निर्माण किया गया था, वहां एक विशाल तालाब था,जहां जंगली जानवर पानी पीने आते हैं।प्रसिद्ध इतिहासकार अजय त्रिपाठी के मुताबिक,यह मंदिर 1200 साल से अधिक प्राचीन है। इस मंदिर के बगल में एक विशाल नीम का पेड़ भी था,लेकिन अचानक इस क्षेत्र में बना तालाब सूख गया और नीम का पेड़ भी गिर गया। उस दौरान इस मठिया के आसपास कई साधू-संतों ने अपना डेरा बना रखा था। मां करतीं है भक्तों की मनोकामना पूर्ण- मंदिर के पुजारी बताते हैं कि मां जंगली देवी के सामने जो भक्त पूरी श्रद्धा के साथ माता के चेहरे को देखकर जो भी मन से मांगता है,तो धीरे-धीर गहरे का रंग हल्का गुलाबी हो जाता है।जो यह संकेत है कि उस भक्त की मनोकामना पूरी हो जाएगी।अगर मां के चेहरे का रंग न बदले तो समझो की मां के दरबार में हाजिरी लगाने वाला भक्त श्रृद्वा व दिल से नहीं आया। पुजारी के मुताबिक नवरात्र पर्व पर हर दिन हजारों की तादाद में भक्त मां के दर्शन को आते हैं। इसके अलावा अन्य जनपदों से भी माता के दर्शन को भक्त नवरात्रों में आते है।यहां पर आने वाले भक्तों की जंगली देवी उनकी हर मनोकामना पूरी करती हैं। नाना के साथ तात्या भी मां के दरबार में लगाई थी हाजिरी- पुजारी के मुताबिक बिठूर से अपने खास सिपहसलाहकार के साथ 1857 में नाना साहब पेशवा और तात्या टोपे मां के दर्शन के लिए आए थे।नाना को अंग्रेज सरकार के खिलाफ एक मिशन के तहत काशी जाना था। वह और तात्या साथ आए,जंगली देवी के दर पर प्रसाद चढ़ाया और मन्नत मांगी।कुछ देर के बाद मां के चेहरे का रंग गुलाबी हो गया।नाना इसके बाद वहां से सीधे काशी गए और मिशन पूरा करने के बाद फिर जंगली देवी के दर पर आकर माथा टेका था। नाना ने उस दौरान प्रसाद स्वरुप एक नग मां के चरणों में भेट की थी जो आज भी उनकी निशानी के तौर पर मंदिर परिसर में रखी है। प्रसाद स्वरुप बांटे जाते हैं सिक्के- मंदिर के पुजारी ने बताया कि नवरात्रि के छठे दिन यहां पर खजाना बांटा जाता है।खजाने में तांबे के सिक्के दिए जाते हैं।पुजारी ने सिक्के बांटने के रहस्य के बारे में बताया कि राजा भोज हर नवरात्र के छठे दिन मंदिर में आते थे और अपनी प्रजा की खुशहाली के लिए मां से प्रार्थना किया करते थे।राजा मंदिर परिसर में मौजूद सभी भक्तों को पहले भोज कराते और फिर उन्हें दान के रुप में सोने के सिक्के दिया करते थे। तब से यह प्रथा चली आ रही है। पुजारी ने बताया कि जो भी भक्त मां के दरबार में दान करता है उसी से तांबो के सिक्के खरीदे जाते हैं और नवरात्र के छठवें दिन प्रसाद के तौर पर भक्तों को दिए जाते हैं।

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