माँ बंगलामुखी के इस मन्त्र से शत्रु होगा परास्त

माँ बंगलामुखी के इस मन्त्र से शत्रु होगा परास्त
डेस्क -01 अक्टूबर 2016 से माँ के नवरात्र के साथ ही नया उत्‍साह नई उमंग जाग गई, सोया मार्किट जाग गया। वही यह समय सभी साधको के लिए बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इस काल में की गयी उपासना का विशेष फल प्राप्त होता है। जो लोग अभी तक किसी कारण से कोई अनुष्ठान अथवा पुरश्चरण नहीं कर सके हैं उन्हें कल से वह अवश्य शरू कर देना चाहिए। यह जरुरी नहीं है कि नवरात्र में केवल माँ दुर्गा की ही उपासना की जाती है बल्कि इस समय आप किसी भी इष्ट देवता के मंत्रो का अनुष्ठान कर सकते हैं। नवरात्र के पहले दिन अपने गुरु देव से मंत्र दीक्षा लेकर, उसका अनुष्ठान करना चाहिए। कुछ साधको के मन में एक प्रश्न रहता है कि क्या नवरात्र में शरू किया गया अनुष्ठान नवरात्र में ही पूर्ण करना जरुरी है , नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं है। ये अनुष्ठान आप २१ अथवा ४० दिन में भी पूर्ण कर सकते हैं लेकिन यदि हो सके तो अंतिम नवरात्र तक पूर्ण कर लेना चाहिए। यदि किसी कारण से अनुष्ठान करना सम्भव नहीं है तो नवरात्र में जितना अधिक जप हो सके उतना ही अच्छा है। ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।। नवरात्र में अपने इष्ट देव के सहस्रनाम से अर्चन करना चाहिए। सहस्त्रनाम में देवी/देवता के एक हजार नाम होते हैं। इसमें उनके गुण व कार्य के अनुसार नाम दिए गए हैं। सर्व कल्याण व कामना पूर्ति हेतु इन नामों से अर्चन करने का प्रयोग अत्यधिक प्रभावशाली है। जिसे सहस्त्रार्चन के नाम से जाना जाता है। सहस्र नामावली के एक-एक नाम का उच्चारण करके देवी की प्रतिमा पर, उनके चित्र पर, उनके यंत्र पर या देवी का आह्वान किसी सुपारी पर करके प्रत्येक नाम के उच्चारण के पश्चात नमः बोलकर देवी की प्रिय वस्तु चढ़ाना चाहिए। जिस वस्तु से अर्चन करना हो वह शुद्ध, पवित्र, दोष रहित व एक हजार से अधिक संख्या में होनी चाहिए।अर्चन में बिल्वपत्र, हल्दी, केसर या कुंकुम से रंग चावल, इलायची, लौंग, काजू, पिस्ता, बादाम, गुलाब के फूल की पंखुड़ी, मोगरे का फूल, चारौली, किसमिस, सिक्का आदि का प्रयोग शुभ व देवी को प्रिय है। यदि अर्चन एक से अधिक व्यक्ति एक साथ करें तो नाम का उच्चारण एक व्यक्ति को तथा अन्य व्यक्तियों को नमः का उच्चारण अवश्य करना चाहिए।सहस्त्रनाम के पाठ करने का फल भी महत्वपूर्ण है। अर्चन की सामग्री प्रत्येक नाम के पश्चात, प्रत्येक व्यक्ति को अर्पित करनी चाहिए। अर्चन के पूर्व पुष्प, धूप, दीपक व नैवेद्य देवी/देवता को अर्पित करना चाहिए। दीपक पूरी अर्चन प्रक्रिया तक प्रज्वलित रहना चाहिए। जो लोग शत्रु बाधा,व्यापार का ठप होना अथवा ऊपरी बाधा गृह क्लेश एवं अन्य उपद्रवों एवं तंत्र प्रयोगो से ग्रस्त हैं उन्हें नवरात्र में माँ बगलामुखी अथवा माँ प्रत्यंगिरा का अनुष्ठान अवश्य कराना चाहिए|| प्रिय पाठकों/मित्रों, माँ बगलामुखी रोग शोक और शत्रु को समूल नष्ट कर देती है,,प्रबल से प्रबल शत्रु भी इनके साधक और उपासको के आगे पानी भरते हैं,और कोई इनके उपासको का बाल भी बंका नही कर सकता है, कलियुग में इनकी साधना उपासना तुरंत फलदायी होती है तथा यह विजय की देवी हैं इनके भक्त कभी पराजय का मुंह नही देखते,देश के जाने माने अधिकांश राजनेता और राजनीती करने वाले व्यक्ति इनके उपासक है, जो अपनी चुनाव विजय तथा शत्रुओ के पराभव के लिए गुप्त रूप से इनके तांत्रिक अनुष्ठान हवन पूजन आदि कराते हैं|| ये स्तम्भन की देवी भी हैं। कहा जाता है कि सारे ब्रह्मांड की शक्ति मिलकर भी इनका मुकाबला नहीं कर सकती। शत्रु नाश, वाक सिद्धि, वाद-विवाद में विजय के लिए देवी बगलामुखी की उपासना की जाती है। बगलामुखी देवी को प्रसन्न करने के लिए 36 अक्षरों का बगलामुखी महामंत्र--- ‘ऊं हल्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय, जिहवां कीलय बुद्धिं विनाशय हल्रीं ऊं स्वाहा’ का जप करें। हल्दी की माला पर करना चाहिए। सभी मनुष्यों को जीवन में एक बार माँ बगलामुखी का अनुष्ठान ,हवन ,पूजन अवश्य कराना चाहिए|| इनके हवन में पिसी हुई शुद्ध हल्दी,मालकांगनी, काले तिल,गूगल,पीली हरताल,पीली सरसो, नीम का तेल, सरसो का तेल,बेर की लकड़ी,सूखी साबुत लाल मिर्च आदि भिन्न 2 सामग्रियों का उपयोग भिन्न 2 कामनाओ के लिए किया जाता है|| तांत्रिक पद्धति से किया गया माँ बगलामुखी का यज्ञ/हवन-पूजन त्वरित और तीव्र परिणाम देता है|| पंडित दयानंद शास्त्री

Share this story