क्या करता था रावण शरद पूर्णिमा को जान कर आप हो जायेंगे हैरान
Oct 14, 2016, 18:30 IST
डेस्क -लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी। चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है। शरद पूर्णिमा का बड़ा महत्व है , वर्षभर में बारह(१२) पूर्णिमा होती है लेकिन सिर्फ शरद पूर्णिमा पर ही अमृतवर्षा होती है ! यह एक मान्यता मात्र नहीं है , वरन आध्यात्मिक अवस्था की एक खगोलीय घटना है | शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है एवं वह अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है | इस रात्रि चन्द्रमा का ओज सबसे तेजवान एवं उर्जावान होता है | इसके साथ ही शीतऋतु का प्रारंभ होता है | शीतऋतु में जठराग्नि तेज हो जाती है और मानव शरीर स्वस्थ्यता से परिपूर्ण होता है परन्तु इस घटना का आध्यात्मिक पक्ष इस प्रकार होता है कि जब मानव अपनी इन्द्रियों को वश में कर लेता है तो उसकी विषय – वासना शांत हो जाती है | मन इन्द्रियों का निग्रह कर अपनी शुद्ध अवस्था में आ जाता है | मन का मल निकल जाता है और मन निर्मल एवं शांत हो जाता है | तब आत्मसूर्य का प्रकाश मन रुपी चन्द्रमा पर प्रकाशित होने लगता है , इस प्रकार जीवरूपी साधक की अवस्था शरद पूर्णिमा की हो जाती है और वह अमृतपान का आनंद लेता है | यही मन की स्वस्थ्य अवस्था होती है | इस अवस्था में साधक अपनी इच्छाशक्ति को प्राप्त होता है | योग में इसी को धारणा कहते है | धारणा की प्रगाढ़ता ही ध्यान में परिवर्तित हो जाती है और यहाँ से ध्यान का प्रारंभ होता है | पंडित प्रवीण शर्मा