देव उठानी ग्यारस २०१६

देव उठानी ग्यारस २०१६
डेस्क -हिन्दू धर्म में कार्त‌िक महीने की शुक्लपक्ष की एकादशी का बड़ा ही महत्व है। कहते हैं इस एकादशी के द‌िन व्रत पूजा करने वाले के कई जन्मों के पाप कट जाते हैं और व्यक्त‌ि उत्तम लोक में जाने का अध‌िकारी बन जाता है।देवप्रबोधनी एकादशी के दिन निर्जल व्रत रखकर विष्णु भगवान की पूजा तथा विष्णु सहस्रनाम का जप करना चाहिए। इसके अलावा, इस दिन जितना संभव को विष्णु नाम का जप करना चाहिए।आषाढ़ माह की देवशयनी ग्यारस को क्षीर सागर में सोए पालनहार भगवान विष्णु कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी (देवोत्थान एकादशी) को जागते हैं ।इसे देवोत्थान एकादशी, देवउठनी ग्यारस, प्रबोधिनी एकादशी आदि नामों से भी जाना जाता है। सनातन धर्म में मान्यता है कि भगवान विष्णु आषाढ़ माह की देवशयनी ग्यारस से चार माह के लिए क्षीरसागर में शयन करते हैं। हिंदू रीति रिवाज के अनुसार इस दौरान विवाह आदि शुभ कार्यक्रम आयोजित नहीं किए जाते। भगवान का यह विश्राम कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष एकादशी (देवोत्थान एकादशी) को पूर्ण होता है। इस शुभ दिन मंदिरों व घरों में विशेष पूजा अर्चना की जाती है।शंख की तेज ध्यनि से भगवान को जगाया जाता है साथ ही उन्हें नए वस्त्र पहनाए जाते हैं। शनिवार को पड़ने वाली देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान की आराधना को सनातन धर्म में आस्था रखने वाले लोगों ने विशेष तैयारियां की हैं। मान्यता है कि भगवान विष्णु का इस दिन किया गया पूजन शुभ, सिद्धिदायक और सौभाग्य में वृद्धि करने वाला होता है।इसल‌िए परलोक में उत्तम गत‌ि की इच्छा रखने वाले इस द‌िन भगवान व‌िष्‍णु के ल‌िए व्रत रखते हैं। इस एकादशी को लेकर ऐसी मान्यता भी है क‌ि इसद‌िन देवतागण भी भगवान व‌िष्‍णु के पास पहुंचकर उनके दर्शन का लाभ पाते हैं और व्रत पूजन करते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु चार महिनों की नींद से जागते हैं। इसे देवोत्थापनी या देवउठनी एकादशी भी कहते हैं।इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि असुर मधुकेटव भगवान ब्रह्मा जी से युद्ध लड़ने चल देता है। बृह्मा जी सहित सभी देवता परेशान हो जाते हैं और वे क्षीर सागर में सो रहे भगवान विष्णु की स्तुति करते हैं। भगवान विष्णु कार्तिक माह की शुक्ल एकादशी को जागते हैं और जिसके बाद वे असुर का अंत करते हैं।इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान को जगाएं : -

'उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌॥'
'उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥'
'शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।'

इसके बाद विधिवत पूजा करें। इस बार देवप्रबोधिनी एकादशी का पर्व 11 नवंबर,2016 (शुक्रवार) को है। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन इस विधि से करें-पूजन विधि---हिंदू शास्त्रों के अनुसार कार्तिक शुक्ल एकादशी को पूजा-पाठ, व्रत-उपवास किया जाता है। इस तिथि को रात्रि जागरण भी किया जाता है। देवप्रबोधिनी एकादशी पर भगवान विष्णु को धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, गंध, चंदन, फल और अध्र्य आदि अर्पित करें। भगवान की पूजा करके घंटा, शंख, मृदंग आदि वाद्य यंत्रों के साथ निम्न मंत्रों का जाप करें-उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद त्यज निद्रां जगत्पते।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्।।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुंधरे।
हिरण्याक्षप्राणघातिन् त्रैलोक्ये मंगलं कुरु।।इसके बाद भगवान की आरती करें और पुष्पांजलि अर्पण करके निम्न मंत्रों से प्रार्थना करें-इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।
त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थं शेषशायिना।।
इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो।
न्यूनं संपूर्णतां यातु त्वत्वप्रसादाज्जनार्दन।। विष्णु पूजा या पंचदेव पूजा विधान अथवा रामार्चनचन्द्रिका आदि के अनुसार श्रद्धापूर्वक पूजन तथा दीपक, कपूर आदि से आरती करें।

* इसके बाद इस मंत्र से पुष्पांजलि अर्पित करें : -

'यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन।
तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्तिदेवाः॥'

ततपश्चात इस मंत्र से प्रार्थना करें : -

'इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।
तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्तिदेवाः॥'

ततपश्चात इस मंत्र से प्रार्थना करें : - 'इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।
त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थ शेषशायिना॥'
इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो।
न्यूनं सम्पूर्णतां यातु त्वत्प्रसादाज्जनार्दन॥' एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्यान के बाद पारण करना चाहिए।11 नवम्बर 2016 को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय = ०७:०१ से ०८:५५
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय = १९:५३
एकादशी तिथि प्रारम्भ = १०/नवम्बर/२०१६ को ००:५१ बजे
एकादशी तिथि समाप्त = १०/नवम्बर/२०१६ को २२:४२ बजेकभी कभी एकादशी व्रत लगातार दो दिनों के लिए हो जाता है। जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब स्मार्त-परिवारजनों को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिए। दुसरे दिन वाली एकादशी को दूजी एकादशी कहते हैं। सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए। जब-जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब-तब दूजी एकादशी और वैष्णव एकादशी एक ही दिन होती हैं।.भगवान विष्णु का प्यार और स्नेह के इच्छुक परम भक्तों को दोनों दिन एकादशी व्रत करने की सलाह दी जाती है।
भगवान श्री कृष्ण ने देवउठनी एकादशी का वर्णन करते हुए कहा है कि जो व्यक्ति देवउठनी एकादशी के दिन उपवास करता है उसके सभी पापों का नाश हो जाता है। ऐसी मान्यता है कि आज ही के दिन भगवान विष्णु चातुर्मास के 4 महीने बाद सोकर उठते हैं।
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानि देवशयनी एकादशी से लेकर कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी के बीच की अवधि को चातुर्मास कहा गया है। देवउठनी एकादशी बड़े ही जोश और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाती है, क्योंकि आज के बाद शादी-विवाह, गृह-प्रवेश जैसे शुभकार्यों का आरंभ हो जाता है।
निर्णय सिन्धू की मानें तो एकादशी के अगले दिन यानि द्वादशी के दिन तुलसी विवाह करना चाहिए और इस द्वादशी को सुधा द्वादशी कहा जाता है। एकादशियों के दिन साधना की जाए तो हमारी स्मरण शक्ति और एकाग्रता वास्तव में बढ़ सकती है, इसमें कोई संदेह नहीं है। एकादशी के दिन की गई साधना से हमें मानसिक शांति मिलती है और सोचने-समझने की क्षमता में वृद्धि होती है। यह तिथि मास में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद।
पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं। इन दोने प्रकार की एकादशियों का भारतीय सनातन संप्रदाय में बहुत महत्त्व है। देवताओं के जागने के बाद मंगल-आयोजनों का दौर आरंभ हो जाएगा। अबूझ मुहूर्तों में से एक माने जाने वाली देवउठनी एकादशी हैं, चार माह के विश्राम के बाद देव 11 नवंबर 2016 को जागेंगे।देवउठनी ग्यारस पर मंदिरों व घरों में भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा-अर्चना की जाए।मंडप में शालिग्राम की प्रतिमा एवं तुलसी का पौधा रखकर उनका विवाह कराया जाए।मंदिरों के व घरों में गन्नों के मंडप बनाकर, पूजन कर उन्हें बेर,चने की भाजी, आंवला सहित अन्य मौसमी फल व सब्जियों के साथ पकवान का भोग अर्पित करें।शालिग्राम, तुलसी व शंख का पूजन करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।मण्डप की परिक्रमा करते हुए भगवान से कुंवारों के विवाह कराने और विवाहितों के गौना कराने की प्रार्थना करे।गोधूलि बेला में तुलसी विवाह करने का पुण्य लिया जाता है।शालिग्राम, तुलसी व शंख का पूजन करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।इस दिन दीप मालिकाओं से घरों को रोशन किया जाए पटाखे चलाकर खुशियां मनाएं।
इस व्रत को करने से समस्त रखते वाले व्यक्ति को अपने चित, इंद्रियों, आहार और व्यवहार पर संयम रखना होता है ।
इस दिन गंगा-स्नान, दीपदान, अन्य दानों आदि का विशेष महत्व है। ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य ने इसे ‘महापुनीत पर्व’ कहा है। इसलिए इसमें गंगा स्नान, दीपदान, होम, यज्ञ तथा उपासना आदि का विशेष महत्व है। कहा गया है कि यदि स्नान में कुशा और दान करते समय हाथ में जल व जप करते समय संख्या का संकल्प नहीं किया जाए तो कर्म फल की की प्राप्ति नहीं होती है।
शास्त्र के नियमों का पालन करते हुए इस दिन स्नान करते समय पहले हाथ-पैर धो लें फिर आचमन करके हाथ में कुशा लेकर स्नान करें, इसी प्रकार दान देते समय हाथ में जल लेकर दान करें। आप यज्ञ और जप कर रहे हैं तो पहले संख्या का संकल्प कर लें फिर जप और यज्ञादि कर्म करें।।देव उठनी एकादशी व्रत का उपवास व्यक्ति को अर्थ-काम से ऊपर उठकर मोक्ष और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है ।


पंडित "विशाल" दयानन्द शास्त्री,(ज्योतिष-वास्तु सलाहकार)

मोब. 09669290067 (मध्य प्रदेश)

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