बसपा में हाथी के दात खाने के और दिखाने के और

लखनऊ--सौरभ शुक्ला---एक कहावत है की हाथी के दात खाने के और दिखाने के और होते है यह कहावत बहुजन समाज पार्टी पर बिलकुल सटीक बैठती दिख रही है जिस तरह पार्टी के नेता एक एक कर पार्टी से अलग होते जा रहे है उसका साफ़ संकेत यह जा रहा है की पार्टी अपने मिशन से भटकती हुयी दिख रही है या बात मायावती के ओ एस डी रहे गंगाराम अम्बेडकर ने कही है साथ ही साथ उन्होंने कहा की पार्टी अब केवल कुछ बड़े आदमियों की पार्टी बनकर रह गयी है जिसका खामियाजा पार्टी को हाल में हुए विधानसभा चुनाओ में देखने को मिला है पहले लोकसभा और फिर विधानसभा चुनाव में बड़ा झटका लगने के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती को आने वाले वक्त में एक और बड़ी चुनौती से दो चार होना पड़ सकता है। हाल ही में बसपा में बगावत के संकेत देखने को मिले। पार्टी का असंतुष्ट धड़ा 14 अप्रैल को आंबेडकर जयंती के मौके पर एक अलग राजनीतिक मंच बना सकता है। इस मंच को प्रदेश में बसपा के विकल्प के तौर पर पेश किए जाने की तैयारी चल रही है।

बहुजन समाज पार्टी अम्बेडर के मिशन को आगे बढाने के लिए माननीय काशीराम ने इस पार्टी की स्थापना की थी लेकिन हाल के दिनों जिस तरह कई विधायको ने बसपा सुप्रीमो पर पैसे लेकर टिकेट बाटने का आरोप लगाया और पार्टी से किनारा करते नजर आये उससे यह बात साफ़ है की पार्टी अपना जनाधार खोती जा रही है और वोटरों पर उसकी पकड़ कमजोर होती जा रही है इसका संकेत पार्टी से अलग हुए नेता लगातार देने की कोशिश कर रहे है .....


पार्टी के पूर्व विधान परिषद सदस्य और मायवती सरकार में मंत्री रहे कमलाकांत गौतम और मायावती के पूर्व ओएसडी गंगाराम आंबेडकर ने 13 अप्रैल को राज्य स्तरीय सम्मेलन बुलाने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि उस दिन मिशन सुरक्षा परिषद नाम का एक नया समूह बनाया जाएगा। गौतम और आंबेडकर ने विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद बसपा से इस्तीफा दे दिया था। आंबेडकर ने कहा हमने उन सभी बसपा समर्थकों से साथ आने की अपील की है जो पार्टी संस्थापक कांशीराम के बहुजन मिशन पर काम करना चाहते हैं। बाबा साहब की जयंती पर एक नया फोरम बनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि लगातार चुनाव हार से पार्टी कार्यकर्ताओं के गिरते मनोबल की बसपा नेतृत्व (मायावती) को कोई परवाह नहीं है। अम्बेडर ने कहा हमने 2012 में सत्ता गंवा दी 2014 के लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पाए और अब विधानसभा चुनाव में सिर्फ 19 सीटें जीत सके। ये तमाम बातें साफ करती हैं कि कांशीराम द्वारा बनाई गई पार्टी का वोट बेस तेजी से सिकुड़ रहा है।


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