हिजाब क्वीन के नाम से जानते हैं लोग, नवाबी शहर में मिला ये मुकाम

हिजाब क्वीन के नाम से जानते हैं लोग, नवाबी शहर में मिला ये मुकाम

लखनऊ (सिद्दीका रिज़वी ) भारत देश में मुस्लिम महिलाओं के पहनावे को लेकर सदियों से एक रूढ़िवादी परंपरा चलन में है। मुस्लिम महिलाओं का दायरा घरेलू कामकाज से लेकर उनके पहनावे तक सीमित कर दिया गया। ये पाबंदियां आज भी उनकी नाक़ामयाबी की वजह बनती नजर आ रही हैं। एक ऐसे ही मुद्दे ने मौजूदा समय में तूल पकड़ रखा है, वो है मुस्लिम महिलाओं का ‘बुर्का’। आपको बता दें कि अन्य मुस्लिम देशों में मुस्लिम महिलाओं के बुर्के को लेकर कोई पाबंदी नहीं है, हालांकि कई बार कुछ मामले सामने जरूर आए लेकिन वो ज्यादा सुर्खियों में नहीं रहे। वहीं भारत में कई राजनीतिक पार्टियां और मुस्लिम धर्मगुरुओं ने हर बार बुर्के को मुद्दा बनाया और चुनाव आते ही मुस्लिम वोटरों को लुभाने के लिये बड़े-बड़े दावे करते दिखे, लेकिन जीत के बाद सारे दावे खोखले नज़र आने लगते हैं

इस बड़े मुद्दे पर अपनी आवाज उठाने वाली लखनऊ की आयशा आमीन से सिद्दीका रिज़वी ने खास बात-चीत की। आयशा आमीन ने बताया, “बुर्का मुस्लिम औरतों की एक पहचान है और ये पहचान आज पूरी दुनिया मे दिखाई देती है। अपनी इसी पहचान को लेकर वो उन सभी महिलाओं को ये संदेश देना चाहती है कि समाज की दकियानूसी सोच से वो खुद को अपनी नाकामयाबी की वजह बना रही हैं और खुद भी बनती जा रही हैं। वो खामोश हैं क्योंकि हमेशा से यही चलता आ रहा है कि लड़कियों को अपने दायरे में रहना चाहिए।“

आयशा का कहना है, लड़कियों ने कहीं न कहीं खुद को एक पिंजड़े में बंद कर लिया है। आयशा का मानना है कि हर एक लड़की पर्दे में रहकर आगे बढ़ सकती है बस ज़रूरत है उन्हे अपनी सोच बदलने की। वो समाज की रूढ़िवादी सोच को गलत साबित कर सकती हैं कि वो बुर्के में बाइक तो क्या हिमालय पर भी चढ़ सकती हैं।

बुर्के में बाइक चलाकर की शुरुआत--

आयशा लखनऊ के बंगला बाजार इलाके की रहने वाली हैं। नवाबी नगरी लखनऊ को एक ऐसा शहर माना जाता है, जहां पर्दे को बड़ी अहमियत दी जाती है। आयशा खुद भी एक बाइक राइडर हैं और उन्होने एक बाइक रैली के दौरान बुर्का पहनकर बाइक ड्राइव किया। जहां लोगों ने उनके इस अंदाज़ को ख़ूब सराहा। इस रैली में आयशा को “बेस्ट रफ राइडर” का खिताब भी मिला।

हिजाब क्वीन के नाम से बुलाते हैं लोग---

आयशा बताती हैं, उनके दोस्त और रिश्तेदार उन्हे “हिजाब क्वीन” के नाम से बुलाते हैं। इस बात से उन्हे खुद पर बहुत गर्व होता है। आयशा ने उन सभी औरतों का मुंह बंद कर दिया जो बुर्के में ऐसे कामों को न करने की तालीम देती हैं।

घर वालों ने किया सपोर्ट---

आयशा ने बताया, “ मेरे घर में सभी लोगों ने मुझे सपोर्ट किया। मुझे बाइक चलाने का शौक़ था और उस शौक़ को मैंने पूरा भी किया। मैं दुनिया को कुछ हटके दिखाना चाहती हूँ और खुद का एक अलग नाम बनाना चाहती हूँ। समाज के कई पिछड़ी सोच वाले लोगों ने मेरे बाइक चलाने को लेकर तरह-तरह की बातें की, लेकिन मैं बिना किसी की परवाह किये अपनी पहचान बनाने के लिए आगे बढ़ती रही। जो लड़कियां बुर्के में अपने शौक़ को पूरा करने का खयाल दिल से सिर्फ इसलिए निकाल देती हैं कि समाज क्या कहेगा? लोग क्या सोचेंगे? उनके लिए मैं ये कहना चाहूंगी कि समाज का तो काम है कहना, आप वो करिए जो आपका दिल गवाही दे। जब आप खुद को समाज कि इस भीड़ मे एक अलग पहचान बनाने के लिये खड़ी होती है तो ये समाज आप की इस पहचान पर हँसता है आप को लेकर तरह-तरह की बातें करता है लेकिन जब आप कामयाब बन जाते हैं तो यही समाज, जो आप पे हँसता था वही आकर आपकी कामयाबी की तारीफ करेगा और आप की कामयाबी की लोगों को मिसाल देगा।


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