फलाना ढिमका की कलम से - अंधेरा

फलाना ढिमका की कलम से - अंधेरा

अँधेरा

वो शाम का अँधेरा नहीं था , वो जीवन का अँधेरा था , उम्र मुश्किल से २३ साल रही होगी ,

आज भी मैं नहीं माना और निकल पड़ा अपनी बाइक से उस अँधेरे को चकाचौंध करनी वाली रौशनी में, ट्रैफिक सिग्नल पर रुका तो जाना हर जगह अँधेरा है सब में ,बगल में हेलमेट में मोबाइल फँसा कर अपनों पर चिल्लाते हुए वो शख्स, वो छोटे बच्चे के हाथ में चमकती कटोरी जो गाड़ियों की लाइट पड़ने से चमक रही थी.. वहीँ किनारे उस बच्चे की माँ चिल्लर गिन रही थी बार बार और अपने बच्चे को देख रही थी , उसकी आँखों में भी एक उम्मीद की चमक थी की शायद इस ट्रैफिक रेड लाइट में कोई तो कुछ दे जायेगा, ग्रीन लाइट हुई और सब चल दिए अपने अपने लक्ष्य की तरफ , मैंने भी बाइक स्टार्ट करी और ये सब देखते हुए आगे बढ़ गया, उस बच्चे की कटोरी की चमक सिर्फ बहार से दिख रही थी पर उस कटोरी का अँधेरा शायद ही कोई देख पाया हो , वो अँधेरे की चमक मुझे बहुत चुभ रही थी,मैं बाइक चलाता जा रहता पर मन मेरा वहीँ ट्रैफिक सिग्नल पर था , यही सोचते सोचते मैं भी अपने लक्ष्य पर पहुँच गया अपने मित्रों के पास, जो काँच की चमकती हुई बोतल लिए धुप्प अँधेरे में खड़े थे , तभी एक मित्र भागते हुए आया और बोला ये लो ग्लास और नमकीन ,जल्दी बनाओ टाइम नहीं है ,
तभी एक बोला सिगरेट कहाँ है और दायें-बाएं देखने लगा ,जिसके हाथ में बोतल थी उसने तुरंत वहां अँधेरे में रखी टेबल पर उस बोतल को धरा और जेब में हाथ डाल कर अपनी कार की चाबी निकाली और बटन दबाया, टुएं-टुएं आवाज़ के साथ उसकी कार खुल गयी और वो कार के डैश बोर्ड से नयी नवेली सिगरेट की चमचमुआ डिब्बी निकाल लाया,
हाँ आज उस मित्र की नयी कार की पार्टी थी, सभी की उम्र लगभग आगे पीछे ही रही होगी , कार्यक्रम चालू हो गया था ,सभी के हाथ में ग्लास नज़र आ रहे थे , कुछ ही देर में सब हेलीकाप्टर में बैठ चुके थे , उस अँधेरे में मुझे बार बार वो बच्चा ही दिख रहा था , लेकिन विचारों के आने जाने में वो बच्चा कई बार आया और गया ,
सब सेट थे , अब सब निकलने लगे तो शुरू हुआ सभी का हमेशा की तरह भरत-मिलाप, ये एक अनोखा मिलाप होता है जो शुरू होता है तो बातों के धागे पूरी माला बना कर ही मानते है, अचानक नयी कार लेने वाले मित्र का मोबाइल बजा और वो बात करने के बाद बोला की जा रहे है , कार की तरफ लपका, सभी कहने लगे , रुको यार चल रहे है , वो पलटा और बोला की घर से फोन था जाने दो देर हो रही है , सही बात थी रात का दस बजने वाला था , वो निकल गया बहुत तेज़ी से ,मैं चिल्ला कर बोला अबे आराम से जाना , कुछ देर में उसकी कार आँखों से ओझिल हो गयी.
मैं भी बाइक स्टार्ट करके निकलने लगा , अचानक फिर वो बच्चा मेरी नज़रो के सामने चमका , मुझे लगा बार बार बार क्यों आ रहा है वो, मैंने बाइक स्टार्ट करी और सोचा की उस सिग्नल से चलता हूँ , वो दिखेगा तो मिलूंगा और बात करूँगा ,खूब सारी बातें सोचते सोचते सिग्नल के पास पहुंचा तो दूर से भीड़ दिख रही थी , नज़दीक पंहुचा तो देखा वो माँ जो सड़क के किनारे थी वो उस बच्चे को पकड़ कर चिल्ला रही थी ,भीड़ लगी हुई थी मैंने पुछा की क्या हुआ ? एक सज्जन बोले अरे कोई कार टक्कर मार कर चली गयी , मैंने तुरंत उस कार को देखने के लिए इधर उधर देखना शुरू किया तो देखा की डिवाइडर के किनारे वही कटोरा पिचका हुआ पड़ा था, लाइट पड़ने पर भी अब नहीं चमक रहा था ,
मैं चिल्लाया ,एम्बुलेंस को कॉल करो , आनन-फानन में मैंने मोबाइल निकला और ,पूछने लगा की कौन सी कार थी ,कहाँ गयी कार, उस भीड़ से कोई बोला कार वाला पिए हुए था और नयी कार थी नंबर भी नहीं पड़ा था।
ये सुन कर मेरा माथा ठनका , मेरे पसीना आने लगा , मैंने उस बच्चे की तरफ देखा ,वो शायद अब नहीं रहा था , समझ ही नहीं आया क्या करूँ ? मानो सब तरफ अँधेरा ही अँधेरा छा गया हो ,
वो सारी चमक कहाँ चली गयी पल भर में पता ही नहीं चला, आँखे नम हो गयी , सच में वो रात का अँधेरा नहीं था , वो जीवन का अँधेरा था जो एक माँ को अँधेरे में जीने के लिए मजबूर कर गया।
ये दीपक क्या उजाला दे पता उस अँधेरे को , ये दीपक क्या उजाला दे पता उस अँधेरे को ,
-फलाना ढिमका


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