तो अब बीती बात हो जाएंगी मायावती !

तो अब बीती बात हो जाएंगी मायावती !

नई दिल्ली -मायावती ने जिस तरह से दलित उत्पीड़न की बात को मुद्दा बनाकर राज्यसभा से इस्तीफा देकर जहाँ दलितों की रहनुमा बनने का प्रयास किया है वही यह भी हो सकता है कि अब मायावती राज्यसभा सदस्य बनना उनके लिए एक सपना ही होकर रह जायेगा ।
मायावती ने इस्तीफा ऐसे समय मे दिया है जब उनका कार्यकाल 6 माह से अधिक बचा हुआ था ।

  • बहुजन समाजपार्टी की सुप्रीमो और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री मायावती का राज्यसभा में कार्यकाल अप्रैल 2018 में खत्म हो रहा है. प्रदेश की विधानसभा में पार्टी के पास इतने आंकड़े नहीं हैं कि 2018 में वह एक बार फिर राज्यसभा में पहुंच सके.
  • उत्तर प्रदेश विधानसभा के 2007 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को पूर्ण बहुमत मिल और पार्टी का वोट शेयर भी 30 फीसदी से अधिक रहा. यह आंकड़े प्रदेश की राजनीति में मायावती के लिए इसलिए अहम रहे क्योंकि उन्हें राज्य में उनके दलित वोट बैंक के अलावा भी अगड़ी जातियों से वोट मिला और वह प्रदेश की सबसे ताकतवर मुख्यमंत्री के तौर पर सत्ता पर काबिज हुईं.

2017 का चुनाव मायावती के लिए घातक रहा
एक दशक बीतता है और 2017 के विधानसभा चुनावों ने मायावती के लिए अंकगणित को पूरी तरह से उलट दिया. राज्य विधानसभा की 403 सीटों में उनकी पार्टी को महज 19 सीटों पर जीत दर्ज हुई. सीट को छोड़कर सेंधमारी उनके वोट बैंक में लगी और दलित बाहुल सीटों में से 84 फीसदी सीटें बीजेपी के खाते में गईं. साथ ही दलित वोट बैंक का 41 फीसदी वोट भी बीजेपी को मिला.
एक दशक में बदले इन आंकड़ों ने अब मायावती के सामने अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने की चुनौती खड़ी कर दी है.

मायावती के राजनीतिक अस्तित्व पर भी है संकट
जहां 2018 में उन्हें एक बार फिर अपने लिए राज्यसभा में एक सीट सुनिष्चित करनी है, उनकी पार्टी इस बार उन्हें संसद भेजने के लिए सशक्त नहीं है. राजनीतिक जानकारों का दावा है कि यदि मायावती का राज्यसभा कार्यकाल पूरा होते ही उन्हें दोबारा राज्यसभा में जगह नहीं मिली तो उनके लिए राजनीति में अपना अस्तित्व बचाना इतना आसान नहीं रहेगा.


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