जानिए कब होगी माँ कालरात्रि की पूजा 2017 की शारदीय नवरात्री में

जानिए कब होगी माँ कालरात्रि की पूजा 2017 की शारदीय नवरात्री में
डेक्स (प्रभाष त्रिपाठी)....
शारदीय नवरात्र में सप्तमी तिथि का काफी महत्व बताया गया है। इस दिन से भक्त जनों के लिए देवी द्वार खुल जाता है और भक्तगण पूजा स्थलों पर देवी के दर्शन हेतु पूजा स्थल पर जुटने लगते हैं। इस दिन तांत्रिक मतानुसार देवी पर मदिरा का भोग भी लगाया जाता है। नवरात्र का सातवा दिन जो माँ कालरात्रि की पूजा के रूप में जाना जाता है, सातवीं शक्ति का नाम है माँ कालरात्रि| इस वर्ष 27 सितंबर 2017 (बुधवार) को मां कालरात्रि की पूजा संपन्न की जाएगी |
नवरात्र की सप्तमी में साधक का मन ‘सहस्रार’ चक्र में अवस्थित होता है। कुण्डलिनी जागरण हेतु जो साधक साधना में लगे होते हैं आज सहस्त्रसार चक्र का भेदन करते हैं। नवरात्र सप्तमी तांत्रिक क्रिया की साधना करने वाले भक्तों के लिए अति महत्वपूर्ण होती है। सप्तमी की रात्रि ‘सिद्धियों’ की रात भी कही जाती है। इस दिन आदिशक्ति की आंखें खुलती हैं।
मां कालरात्रि अपने महाविनाशक गुणों से शत्रु एवं दुष्ट लोगों का संहार करती हैं| विनाशिका होने के कारण इनका नाम कालरात्रि पड़ा| मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यन्त भयानक होता है लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मानी जाती हैं, माँ काल रात्रि की पूजा के साथ ही जीवन के पूर्ण कल्याण का मार्ग प्रशस्त हो जाता है श्रद्धालु भक्त व साधक अनेक प्रकार से भगवती की अनुकंपा प्राप्त करने के लिए व्रत-अनुष्ठान व साधना करते हैं।
माँ की कृपा से बाधा सहज ही दूर हो जाती है माँ गृह जनित बाधाये सहजता से दूर करती है सांसारिक भय माँ कृपा से भक्त के समीप नहीं आते, ,व्यापार संबंधी समस्या, ऋण मुक्ति एवं अचल संपत्ति के लिए मां कालरात्रि की पूजा का विशेष महत्व बताया जाता है। परंतु मां सदैव ही शुभ फल प्रदान करती हैं। इस दिन साधकगण अपने मन को सहस्रार चक्र में स्थित करते हैं और मां की अनुकंपा से उन्हें ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियां प्राप्त होती हैं। मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना एवं साधना द्वारा अकाल मृत्यु, भूत-प्रेत बाधा, व्यापार, नौकरी, अग्निभय, शत्रुभय आदि से छुटकारा प्राप्त होता है।
कुंडलिनी जागरण के साधक इस दिन सहस्त्रार चक्र को जाग्रत करने की साधना करते हैं। प्राप्त ज्ञान विधि का प्रयोग कर कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत कर शास्त्रोक्त फल प्राप्त कर अपने जीवन को सफल बनाना चाहते हैं। सहस्त्रार चक्र पर सूर्य का आधिपत्य होता है। लोक – सत्यलोक , मातृ देवी – छहों चक्रों की देवियां, देवता – परमशिव, तत्व – तत्वातीत। इसका स्थान तालु के ऊपर मस्तिष्क में ब्रह्म रंध्र से ऊपर सब शक्तियों का केंद्र है और अधिष्ठात्री देवी – शक्ति कात्यायनी हैं।
ऐसा हैं माँ कालरात्रि का स्वरूप--
माँ कालरात्रि| माँ की सांसों से अग्नि निकलती रहती है। इनका वाहन गर्दभ है। मां ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं। इनकी आंखों से अग्नि की वर्षा होती है। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है। उनका स्वरूप अग्निमय है और उनके माथे पर चंदमा का मुकुट शोभायमान है।
कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली देवी हैं। दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत हो जाते हैं। इनका रंग काला एवं बाल बिखरे हुए हैं। इनके तीन नेत्र एवं चार भुजाएं हैं। गर्दभ इनका वाहन है और ये दाहिने हाथों में तलवार तथा नरमुद्रा एवं बाएं हाथ में ज्वाला तथा अभयमुद्रा धारण करती हैं। ऊपर से भयानक, परंतु अन्तराल में स्नेह का भंडार हैं। घने अंधेरे की तरह एकदम गहरे काले रंग वाली, तीन नेत्र वाली, सिर के बाल बिखरे रखने वाली और अपनी नाक से आगे की लपटों के रूप में सांसें निकालने वाली कालरात्रि, मां दुर्गा का सातवां विग्रह स्वरूप हैं। इनके तीनों नेत्र ब्रह्माण्ड के गोले की तरह गोल हैं।

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