जानिए आपकी जन्म कुंडली से कैसे रहेंगें आपके अपने पिता-पुत्र से संबंध--

जानिए आपकी जन्म कुंडली से कैसे रहेंगें आपके अपने पिता-पुत्र से संबंध--

डेस्क -जानिए आपकी जन्म कुंडली से कैसे रहेंगें आपके अपने पिता-पुत्र से संबंध--
प्रिय पाठकों/मित्रों अब आप जानिए आपकी जन्म कुंडली के अनुसार आपका आपके पुत्र से संबंध कैसा रहेगा?

कभी-कभी पिता और पुत्र में झगड़ा भी होता है। कैसे देखें कि किन-किन ग्रहों से पिता एवं पुत्र का संबंध है।
पिता के लग्न से दशम राशि में यदि पुत्र का जन्म लग्न में हो तो पुत्र-पिता तुल्य गुणवान होता है।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि यदि पिता की जन्म कुंडली मे द्वितीय, तृतीय, नवम व एकादश भावस्थ राशि में पुत्र का जन्म लग्न हो तो पुत्र पिता के अधीन रहता है।

इसी तरह यदि यदि पिता के षष्ठम व अष्टम भाव में जो राशि हो, वही पुत्र का जन्म लग्न हो तो पुत्र, पिता का शत्रु होता है और यदि पिता के द्वादश भाव गत राशि में पुत्र का जन्म हो तो भी पिता-पुत्र में उत्तम स्नेह नहीं रहता।

ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि यदि पिता की कुंडली का षष्ठेश अथवा अष्टमेश पुत्र की कुंडली के लग्न में बैठा हो तो पिता से पुत्र विशेष गुणी होता है। यदि लग्नेश की दृष्टि पंचमेश पर पड़ती हो और पंचमेश की दृष्टि लग्नेश पर पड़ती हो अथवा लग्नेश पंचमेश के गृह में हो और पंचमेश नवमेश के गृह में हो अथवा पंचमेश नवमेश के नवांश में हो तो पुत्र आज्ञाकारी और सेवक होता है।

पण्डित दयानन्द शास्त्री नर बताया कि यदि पंचम स्थान में लग्नाधिपति और त्रिकोणाधिपति साथ होकर बैठे हों और उन पर शुभग्रह की दृष्टि भी पड़ती हो तो जातक के लिए केवल राज योग ही नहीं होता वरन् उसके पुत्रादि सुशील, सुखी, उन्नतिशील और पिता को सुखी रखने वाले होते हैं परंतु यदि षष्ठेश, अष्टमेश अथवा द्वादशेश पाप ग्रह और दुर्बल होकर पंचम स्थान में बैठे हों तो ऐसा जातक अपनी संतान के रोग ग्रस्त रहने के कारण उससे शत्रुता के कारण, संतान से असभ्य व्यवहार के कारण अथवा संतान-मृत्यु के कारण पीड़ित रहता है।

पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार यदि पंचमेश पंचमगत हो अथवा लग्न पर दृष्टि रखता हो अथवा लग्नेश पंचमस्थ हो तो पुत्र आज्ञाकारी और प्रिय होता है।स्मरण रहे कि जितना ही पंचम स्थान का लग्न से शुभ संबंध होगा, उतना ही पिता-पुत्र का संबंध उत्तम और घनिष्ठ होगा। यदि पंचमेश 6, 8 व 12 स्थान में हो और उस पर लग्नेश की दृष्टि न पड़ती हो तो पिता-पुत्र का संबंध उत्तम होता है।

यदि पंचमेश 6, 8 व 12 स्थानगत हो तो उस पर लग्नेश, मंगल और राहू की दृष्टि भी पड़ती हो तो पुत्र-पिता से घृणा करेगा और पिता को गाली-गलौच तक करने में बाज नहीं आएगा।

पद लग्न से पुत्र और पिता का भी विचार किया जाता है।पद लग्न से केंद्र अथवा त्रिकोण में अथवा उपचय स्थान में यदि पंचम राशि पड़ती हो तो पिता-पुत्र में परस्पर मित्रता होती है, परंतु लग्न से पंचमेश 6, 8, 12 स्थान में पड़े तो पिता-पुत्र में शत्रुता/बेर/वैमनस्य होता है।

।।शुभमस्तु।।
।।कल्याण हो।।

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