जानिए भृगु संघिता में वर्णित कालसर्प दोष

जानिए भृगु संघिता में वर्णित कालसर्प दोष

डेस्क -(आचार्य विमल त्रिपाठी) सूत्र अध्याय ५५८३ में पितृ दोष का विस्तार पूर्वक वर्णन मिलता है| जिसे सामान्य ज्योतिष भाषा कालसर्प योग (काल सर्प दोषा) कहते है| काल सर्प दोष को इतना अधिक प्रचलन में ला दिया गया है कि जातक काल सर्प के नाम से अत्यंत भयभीत हो कर विचलित हो जाते है ग्रहों को अत्यंत हेय दृष्टि से देखते है| ध्यान रहे ग्रह नक्षत्र देवता के रूप में है, एवं पूज्यनीय है पितृ दोष (काल सर्प दोष )भी शुभ फल प्रदान करने वाले होते है| हमारे पूर्वज जिन्हे चन्द्र लोक में स्थान प्राप्त है| वे सभी अपने सन्तानो के दिए कव्य

( भोज्य पदार्थ ) को ग्रहण कर तृप्त हो जाते है और उनके सुखमय जीवन के हेतु आशीर्वाद प्रदान करते है| अज्ञानता वश जातक से पितरो कि अवहेलना हो जाने पर पितृ गण क्रोधित अवस्था में श्रापित कर देते है जिसके कारण से कालसर्प दोष के रूप में जातक अनेको कष्ट को भोगता है| इतना ही नहीं पितृ दोष वंशानुगत होते है| जातक के जन्म से ही पिता अथवा माता से हो कर आते है और आने वाली पीढ़ी पर ये दोष जन्म कुंडली में देखे जाते है|
कुण्डली में राहु और केतु की उपस्थिति के अनुसार व्यक्ति को कालसर्प योग (कालसर्प दोषा) लगता है. कालसर्प योग को अत्यंत अशुभ योग माना गया है. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यह योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में होता है उसका पतन होता है.यह इस योग का एक पक्ष है
जबकि दूसरा पक्ष यह भी है कि यह योग व्यक्ति को अपने क्षेत्र में सर्वक्षेष्ठ बनता है।

कालसर्प योग (कालसर्प योगा) का प्राचीन ज्योतिषीय ग्रंथों में विशेष जिक्र नहीं आया है.तकरीबन सौ वर्ष पूर्व ज्योर्तिविदों ने इस योग को ढूंढ़ा.इस योग को हर प्रकार से पीड़ादायक और कष्टकारी बताया गया.आज बहुत से ज्योतिषी इस योग के दुष्प्रभाव का भय दिखाकर लोगों से काफी धन खर्च कराते हैं.ग्रहों की पीड़ा से बचने के लिए लोग खुशी खुशी धन खर्च भी करते हैं.परंतु सच्चाई यह है कि जैसे शनि महाराज सदा पीड़ा दायक नहीं होते उसी प्रकार राहु और केतु द्वारा निर्मित कालसर्प योग हमेंशा अशुभ फल ही नहीं देते.

अगर आपकी कुण्डली में कालसर्प योग (कालसर्प योगा) है और इसके कारण आप भयभीत हैं तो इस भय को मन से निकाल दीजिए.कालसर्प योग से भयाक्रात होने की आवश्यक्ता नहीं है क्योंकि ऐसे कई उदाहरण हैं जो यह प्रमाणित करते हैं कि इस योग ने व्यक्तियों को सफलता की ऊँचाईयों पर पहुंचाया है.कालसर्प योग से ग्रसित होने के बावजूद बुलंदियों पर पहुंचने वाले कई जाने माने नाम हैं जैसे धीरू भाई अम्बानी,इंदिरा गांधी ,मोरार जी देशाई, सचिन तेंदुलकर, ऋषिकेश मुखर्जी, पं. जवाहरलाल नेहरू, लता मंगेशकर आदि.

ज्योतिषशास्त्र कहता है कि राहु और केतु छाया ग्रह हैं जो सदैव एक दूसरे से सातवें भाव में होते हैं.जब सभी ग्रह क्रमवार से इन दोनों ग्रहों के बीच आ जाते हैं तब यह योग बनता है. राहु केतु शनि के समान क्रूर ग्रह माने जाते हैं और शनि के समान विचार रखने वाले होते हैं.राहु जिनकी कुण्डली में अनुकूल फल देने वाला होता है उन्हें कालसर्प योग में महान उपलब्धियां हासिल होती है.जैसे शनि की साढ़े साती व्यक्ति से परिश्रम करवाता है एवं उसके अंदर की कमियों को दूर करने की प्रेरणा देता है इसी प्रकार कालसर्प व्यक्ति को जुझारू, संघर्षशील और साहसी बनाता है.इस योग से प्रभावित व्यक्ति अपनी क्षमताओं का पूरा इस्तेमाल करता है और निरन्तर आगे बढ़ते जाते हैं.

कालसर्प योग में स्वराशि एवं उच्च राशि में स्थित गुरू, उच्च राशि का राहु, गजकेशरी योग, चतुर्थ केन्द्र विशेष लाभ प्रदान करने वाले होते है.अगर सकारात्मक दृष्टि से देखा जाए तो कालसर्प योग वाले व्यक्ति असाधारण प्रतिभा एवं व्यक्तित्व के धनी होते हैं.हो सकता है कि आपकी कुण्डली में मौजूद कालसर्प योग आपको भी महान हस्तियों के समान ऊँचाईयों पर ले जाये अत: निराशा और असफलता का भय मन से निकालकर सतत कोशिश करते रहें आपको कामयाबी जरूरी मिलेगी.इस योग में वही लोग पीछे रह जाते हैं जो निराशा और अकर्मण्य होते हैं परिश्रमी और लगनशील व्यक्तियों के लिए कलसर्प योग राजयोग देने वाला होता है.

कालसर्प योग (कालसर्प योगा) में त्रिक भाव एवं द्वितीय और अष्टम में राहु की उपस्थिति होने पर व्यक्ति को विशेष परेशानियों का सामना करना होता है परंतु ज्योतिषीय उपचार से इन्हें अनुकूल बनाया जा सकता है| भृगु संघिता में सूत्र अद्ध्याय ५५८३ में पितृ दोष का विस्तार पूर्वक समाधान मिलता है| जिस के प्रयोग से लाखो लोग लाभान्वित हो कर उज्ज्वल जीवनयापन कर रहे है| अतः जातक से अनुरोध है, कि आप काल सर्प दोष से न विचलित हो और ना ही भयभीत हो अपितु उसके साधारण उपायो को धारण कर जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करे|

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