बहुत खास है गुरु पुष्य योग 9 नवम्बर को

बहुत खास है गुरु पुष्य योग 9 नवम्बर को
डेस्क -आगामी 9 नवंबर 2017 (गुरूवार) की दोपहर 1 बजकर 36 मिनट पर एक ऐसा योग बनने जा रहा है जो वर्ष में मात्र 2-3 बार ही आता है लेकिन अगर इस योग को सही समय पर इस्तेमाल में लाया जाए तो दिल की हर इच्छा पूरी हो सकती है।इस दिन चन्द्रमा कर्क राशि में रहेगा और षष्टी तिथि समाप्त होकर सप्तमी लग जाएगी |
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार गुरु-पुष्य नक्षत्र बहुत कम बनता है। जब पुष्य नक्षत्र गुरुवार के दिन ही पड़े तब यह योग बनता है। यह योग एक साधक के लिए बेहद शुभ माना जाता है किंतु अन्य लोग भी इससे कई लाभ पा सकते हैं। ‘गुरु पुषय नक्षत्र’ एक ऐसा विशेष ज्योतिषीय योग है जिस दौरान गुरु ग्रह का का पुष्य नक्षत्र में प्रवेश होता है। इस नक्षत्र में देवगुरु बृहस्पति के आ जाने से यह समय अत्यंत प्रभावशाली बन जाता है। इसदिन देवगुरु बृहस्पति की अराधना के अलावा महालक्ष्मी की उपासना भी की जाती है। ऐसी मान्यता है कि धन की देवी इस अत्यंत शुभ योग में अपने भक्त पर कृपा बरसाती हैं। इसके अलावा इस नक्षत्र में किसी भी प्रकार का पूजा कर्म फलदायी ही सिद्ध होता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की ज्योतिषशास्त्र के नियमानुसार गुरूवार के दिन जब पुष्य नक्षत्र आता है तब बड़ा ही उत्तम योग बनता है जिसे गुरू पुष्य योग के नाम से जाता है। गुरू स्वर्ण, धन एवं मांगलिक कार्यों के कारक हैं। इसलिए गुरू पुष्य योग में सोना, वाहन अथवा स्थायी संपत्ति खरीदना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन जो भी धन अर्जित करते हैं वह स्थायी रहता है।
गुरू पुष्य योग के साथ ही अमृत सिद्घि योग भी बना हुआ है। ये दोनों ही योग बहुत ही शुभ माने जाते हैं। इन योगों में कोई भी वस्तु खरीदने अथवा नया काम शुरू करने पर 100 प्रकार के दोषों का प्रभाव नष्ट होता है। पुष्य नक्षत्र को एक शाप मिला हुआ है इसलिए इस नक्षत्र में विवाह कार्य नहीं किया जाता है। पुष्य नक्षत्र आमतौर पर शुभ होता है लेकिन शुक्रवार के दिन अथवा बुधवार के दिन यह नक्षत्र हो तब कोई नया काम कभी नहीं करना चाहिए और न खरीदारी करनी चाहिए।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की गुरुपुष्यामृत योग बहुत कम बनता है जब गुरुवार के दिन पुष्य नक्षत्र होता है, तब बनता है गुरु पुष्य योग। गुरुवार के दिन शुभ कार्यो एवं आध्यात्म से संबंधित कार्य करना बहोत ही शुभ एवं मंगलमय होता है। पुष्य नक्षत्र भी सभी प्रकार के शुभ कार्यो एवं आध्यात्म से जुडे कार्यो के लिये अति शुभ माना गया है। जब गुरुवार के दिन पुष्य नक्षत्र होता तब बन जाता है अद्भुत एवं अत्यंत शुभ फल प्रद अमृत योग। एक साधक के लिए बेहद फायदेमंद होता हैं “गुरुपुष्यामृत योग“। इस दिन विद्वान एवं गुढ रहस्यो के जानकार मां महालक्ष्मी कि साधना करने कि सलाह देते है। इस विशेष दिन साधना करने पर बहुत अच्छे एवं शीघ्र परीणाम प्राप्त होते है। मां महालक्ष्मी का आह्वान कर उनकी कृपा द्रष्टि से समृद्धि और शांति प्राप्त कि जा सकती है।
‘पाणिनी संहिता’ में “पुष्य सिद्धौ नक्षत्रे” के बारे में यह लिखा है-
सिध्यन्ति अस्मिन् सर्वाणि कार्याणि सिध्यः | पुष्यन्ति अस्मिन् सर्वाणि कार्याणि इति पुष्य ||
अर्थात पुष्य नक्षत्र में शुरू किये गए सभी कार्य सिद्ध होते ही हैं.. फलीभूत होते ही हैं | पुष्य शब्द का अर्थ ही है कि जो अपने आप में परिपूर्ण है.. सबल है.. पूर्ण सक्षम और पुष्टिकारक है..| हिंदी शब्दकोष में ‘पुष्टी’ शब्द का निर्माण संस्कृत के इसी पुष्य शब्द से हुआ | २७ नक्षत्रों में से एक ‘पुष्य नक्षत्र’ है, और इस दिन जब गुरुवार भी हो तो उसे गुरु पुष्य नक्षत्र या ‘गुरु पुष्यामृत योग’ कहते हैं | इस दिन कोई भी साधना अवश्य शुरू करें, और आँख मूँद कर उसकी सिद्धि का यकीन करें और पूर्ण तन्मयता के साथ सहना संपन्न करें | गुरु साधना और गुरु पूजन तो प्रत्येक शिष्य को इस दिन करना अनिवार्य ही है |
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री का मानना है कि गुरूपुष्य, रविपुष्य एवं शनि पुष्य जितना शुभ फलदायी होता है उतना ही बुध और शुक्रवार का पुष्य हानिकारक होता है। 27 नक्षत्रों में आठवां नक्षत्र जिसे नक्षत्रों का राजा कहा जाता है इस दिन आकाश मंडल में मौजद रहेगा। इस नक्षत्र का नाम है पुष्य नक्षत्र और इसका स्वामी ग्रह शनि माना जाता है जो स्थायित्व प्रदान करने वाला ग्रह है। गुरु पुष्य योग में नवीन प्रतिष्ठान, आर्थिक विनिमय, लेन-देन, व्यापार, उद्योग निर्माण, गुरु दर्शन और मंदिर निर्माण तथा यज्ञादि कर्म के लिए सर्वश्रेष्ठ है। पुष्य नक्षत्र उर्ध्वमुखी नक्षत्र है। इस कारण इसमें किए गए कार्य पूर्णता तक पहुंच जाते हैं। इसलिए इस नक्षत्र में भवन निर्माण, ध्वजारोहण, मंदिर, स्कूल और औषधालय निर्माण विशेष फलदायक होता है। इसके साथ ही इस नक्षत्र में शपथ ग्रहण, पदभार ग्रहण, वायु यात्रा और तोरण बंधन विशेष यश दिलाता है।
सामान्य लोग इस दिन स्वर्ण खरीदते हैं, यदि धनतेरस के दिन स्वर्ण/रजत नहीं खरीद पाए तो इस दिन खरीद सकते हैं, इससे भी निरंतर श्री वृद्धि होती रहती है | इसके साथ ही कोई नई वस्तु, नया कारोबार, वाहन गृह प्रवेश आदि कर सकते हैं, इस दिन जो भी खरीदते हैं वह स्थायी संपत्ति सिद्ध होती है | पुष्य शब्द का शाब्दिक अर्थ है पोषण करना अथवा पोषण करने वाला तथा इस शब्द का शाब्दिक अर्थ ही अपने आप में इस नक्षत्र के व्यवहार तथा आचरण में बहुत कुछ बता देता है। कुछ पुष्य नक्षत्र को तिश्या नक्षत्र के नाम से भी संबोधित करते हैं। तिश्या शब्द का अर्थ है शुभ होना तथा यह अर्थ भी पुष्य नक्षत्र को शुभता ही प्रदान करता है।
साधकों को इस दिन लक्ष्मी या श्री से सम्बंधित साधना करनी चाहिए | साथ ही किसी भी प्रकार की साधना चाहे सौन्दर्य से सम्बंधित हो, कार्य सिद्धि हो, विद्या प्राप्ति के लिए हो, कर सकते हैं | इस दिन आप किसी भी यन्त्र का लेखन करके उसको प्राण-प्रतिष्ठित कर सकते हैं | इस दिन आप किसी भी रत्न को सिद्ध कर सकते हैं | शिष्यों को इस दिन गुरु पूजन और गुरु मंत्र का जप अवश्य करना चाहिए | पुष्य नक्षत्र अमृत सिद्धि योग में किया गया कोई भी शुभ कार्य बड़ा उत्तम फलदायी होता है। गुरुवार रविवार को होने वाले पुष्य नक्षत्र पर पुष्यामृत योग है। नक्षत्र सभी नक्षत्रों में सर्वश्रेष्ठ नक्षत्र है।
बृहस्पतिवार के दिन यदि पुष्य नक्षत्र हो तब गुरु पुष्य योग बनता है, इस योग को अत्यधिक शुभ माना गया है। इस योग में गुरु, पिता, दादा अथवा किसी श्रेष्ठ व्यक्ति से मंत्र, तंत्र अथवा किसी विशिष्ट विषय से संबंधित उच्च विद्या ग्रहण करना, गुरु धारण करना तथा विदेश यात्रा आरंभ करना शुभ होता है।
पंडित दयानंद शास्त्री

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