जानिए कैसे मनुष्य ग्रहों के अधीन है, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार --

जानिए कैसे मनुष्य ग्रहों के अधीन है, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार --

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मुख्यत: 9 ग्रह बताए गए हैं। इनके प्रभाव से मानव प्रभावित हो सुख-दु:ख का अनुभव करता है। एक ही ग्रह के प्रभाव से कोई सुखी तो कोई दु:खी होता है। नौ ग्रहों का प्रभाव मूल रूप से एक ही जैसा सब पर पड़ता है पर वे ही ग्रह अलग-अलग स्थानों में होकर अलग-अलग फल देते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मनुष्य ग्रहों के अधीन है अर्थात ग्रहों के प्रभाव से प्रभावित होकर जीवन जीता है। दुष्कर्म, सत्कर्म, पाप-पुण्य उससे ही संचालित होते हैं। ग्रह हमारे जीवन को इतना प्रभावित किए हैं कि कभी इच्छा मात्र से सबकुछ आसानी से हासिल हो जाता है और कभी बहुत प्रयत्न करने के बाद भी छोटी सी सफलता नहीं मिल पाती है। क्या नौ ग्रहों का प्रभाव इतना है? एक ही ग्रह लोगों को अलग-अलग कैसे प्रभावित कर सकता है? नौ ग्रहों का अस्तित्व है या नहीं, इसका प्रमाण क्या है? ये ग्रह हमें प्रभावित करते भी हैं या नहीं? यह प्रश्न समझ में नहीं आता कि सूर्य जब सबको बराबर धूप दे रहा है तो लोगों को अलग-अलग कैसे प्रभावित कर सकता है।

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया की ज्योातिष विषय वेदों जितना ही प्राचीन है। प्राचीन काल में ग्रह, नक्षत्र और अन्यज खगोलीय पिण्डों का अध्यायन करने के विषय को ही ज्योोतिष कहा गया था। इसके गणित भाग के बारे में तो बहुत स्पsष्टनता से कहा जा सकता है कि इसके बारे में वेदों में स्पषष्ट। गणनाएं दी हुई हैं। फलित भाग के बारे में बहुत बाद में जानकारी मिलती है।
ज्योतिष ऐसा दिलचस्प विज्ञान है, जो जीवन की अनजान राहों में मित्रों और शुभचिन्तकों की श्रृंखला खड़ी कर देता है। इतना ही नहीं इसके अध्ययन से व्यक्ति को धन, यश व प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। इस शास्त्र के अध्ययन से शूद्र व्यक्ति भी परम पूजनीय पद को प्राप्त कर जाता है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया की वृहदसंहिता में वराहमिहिर ने तो यहां तक कहा है कि यदि व्यक्ति अपवित्र, शूद्र या मलेच्छ हो अथवा यवन भी हो, तो इस शास्त्र के विधिवत अध्ययन से ऋषि के समान पूज्य, आदर व श्रद्धा का पात्र बन जाता है। ज्योतिष सूचना व संभावनाओं का शास्त्र है। ज्योतिष गणना के अनुसार अष्टमी व पूर्णिमा को समुद्र में ज्वार-भाटे का समय निश्चित किया जाता है। वैज्ञानिक चन्द्र तिथियों व नक्षत्रों का प्रयोग अब कृषि में करने लगे हैं। ज्योतिष शास्त्र भविष्य में होने वाली दुर्घटनाओं व कठिनाइयों के प्रति मनुष्य को सावधान कर देता है। रोग निदान में भी ज्योतिष का बड़ा योगदान है।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया की ज्योतिष शास्त्र एक बहुत ही वृहद ज्ञान है। इसे सीखना आसान नहीं है। ज्योतिष शास्त्र को सीखने से पहले इस शास्त्र को समझना आवश्यक है। सामान्य भाषा में कहें तो ज्योतिष माने वह विद्या या शास्त्र जिसके द्वारा आकाश स्थित ग्रहों, नक्षत्रों आदि की गति, परिमाप, दूरी इत्या‍दि का निश्चय किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र की व्युत्पत्ति ‘ज्योतिषां सूर्यादि ग्रहाणां बोधकं शास्त्रम्‌’ की गई है। हमें यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि ज्योतिष भाग्य या किस्मत बताने का कोई खेल-तमाशा नहीं है। यह विशुद्ध रूप से एक विज्ञान है। ज्योतिष शास्त्र वेद का अंग है। ज्योतिष शब्द की उत्पत्ति ‘द्युत दीप्तों’ धातु से हुई है। इसका अर्थ, अग्नि, प्रकाश व नक्षत्र होता है। शब्द कल्पद्रुम के अनुसार ज्योतिर्मय सूर्यादि ग्रहों की गति, ग्रहण इत्यादि को लेकर लिखे गए वेदांग शास्त्र का नाम ही ज्योतिष है।
छः प्रकार के वेदांगों में ज्योतिष मयूर की शिखा व नाग की मणि के समान सर्वोपरी महत्व को धारण करते हुए मूर्धन्य स्थान को प्राप्त होता है। सायणाचार्य ने ऋग्वेद भाष्य भूमिका में लिखा है कि ज्योतिष का मुख्य प्रयोजन अनुष्ठेय यज्ञ के उचित काल का संशोधन करना है। यदि ज्योतिष न हो तो मुहूर्त, तिथि, नक्षत्र, ऋतु, अयन आदि सब विषय उलट-पुलट हो जाएँ।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया की ज्योतिष शास्त्र के द्वारा मनुष्य आकाशीय-चमत्कारों से परिचित होता है। फलतः वह जनसाधारण को सूर्योदय, सूर्यास्त, चन्द्र-सूर्य ग्रहण, ग्रहों की स्थिति, ग्रहों की युति, ग्रह युद्ध, चन्द्र श्रृगान्नति, ऋतु परिवर्तन, अयन एवं मौसम के बारे में सही-सही व महत्वपूर्ण जानकारी दे सकता है। इसलिए ज्योतिष विद्या का बड़ा महत्व है।
महर्षि वशिष्ठ का कहना है कि प्रत्येक ब्राह्मण को निष्कारण पुण्यदायी इस रहस्यमय विद्या का भली-भाँति अध्ययन करना चाहिए क्योंकि इसके ज्ञान से धर्म-अर्थ-मोक्ष और अग्रगण्य यश की प्राप्ति होती है। एक अन्य ऋषि के अनुसार ज्योतिष के दुर्गम्य भाग्यचक्र को पहचान पाना बहुत कठिन है परन्तु जो जान लेते हैं, वे इस लोक से सुख-सम्पन्नता व प्रसिद्धि को प्राप्त करते हैं तथा मृत्यु के उपरान्त स्वर्ग-लोक को शोभित करते हैं। ज्योतिष वास्तव में संभावनाओं का शास्त्र है। सारावली के अनुसार इस शास्त्र का सही ज्ञान मनुष्य के धन अर्जित करने में बड़ा सहायक होता है क्योंकि ज्योतिष जब शुभ समय बताता है तो किसी भी कार्य में हाथ डालने पर सफलता की प्राप्ति होती है इसके विपरीत स्थिति होने पर व्यक्ति उस कार्य में हाथ नहीं डालता।
भारतीय आचार्यों द्वारा रचित ज्योतिष की पाण्डुलिपियों की संख्या एक लाख से भी अधिक है। ‘ज्योतिष’ से निम्नलिखित का बोध हो सकता है- 1 वेदांग ज्योतिष 2 सिद्धान्त ज्योतिष या ‘गणित ज्योतिष’ 3 फलित ज्योतिष 4 अंक ज्योतिष 5 खगोल शास्त्र....
हमारे जीवन के लिए आवश्यक सभी तत्वों का निर्माण और पृथ्वी पर उनका वितरण तारों के माध्यम से ही हुआ है। आपका सवाल होगा कि कैसे? मगर इस प्रश्न का उत्तर जानने से पहले यह जानना आवश्यक होगा कि मानव शरीर किन तत्वों से निर्मित हुआ है। यदि आपका जवाब है कि यह पंच-तत्वों- पृथ्वी, गगन, वायु, अग्नि और जल से निर्मित है तो आप आधुनिक विज्ञान के अनुसार गलत हैं। मगर क्यों? आखिर इन पांच तत्वों से ही तो ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई है न! और तो और ये जीव-जंतु, पेड़-पौधे और हम मनुष्य भी इन पंच-तत्वों के ही संयोग से पैदा हुए हैं। दरअसल इन पंच-तत्वों को प्राचीन काल से ही मूलतत्वों की संज्ञा दी जाती रही है, यानी इन पांच पदार्थों का और कोई रूपांतर नहीं हो सकता। मगर प्राचीन काल से प्रचलित यह पंच-तत्व सिद्धांत आधुनिक विज्ञान के समक्ष टिक नहीं सका। उन्नीसवी शताब्दी के वैज्ञानिक जॉन डाल्टन ने बताया कि पृथ्वी, गगन, वायु आदि मूल तत्व नहीं हैं। इनमे से प्रत्येक पदार्थ का विश्लेषण किया जा सकता है और विश्लेषण करने पर सभी पदार्थों में एक से अधिक पदार्थ स्पष्ट दिखाई देते हैं। जैसे वायु- ऑक्सीजन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, कार्बन-डाई ऑक्साइड आदि से तथा जल हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से निर्मित है। इसलिए ये पंच-तत्व भी शुद्ध तत्व नहीं है और ये भी अन्य तत्वों से मिलकर बने हैं, तो ऐसे कौन से प्रमुख तत्व हैं जिनसे मानव शरीर निर्मित हुआ है? मानव शरीर का लगभग 99% भाग मुख्यतः छह तत्वो से बना है: ऑक्सीजन, कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, कैल्सीयम और फास्फोरस। लगभग 0.85% भाग अन्य पांच तत्वो से बना है: पोटेशियम, सल्फर, सोडीयम, क्लोरीन तथा मैग्नेशियम है। इसके अतिरिक्त एक दर्जन ऐसे तत्व हैं, जो जीवन के लिये आवश्यक माने जाते हैं, जिसमे बोरान, क्रोमीयम, कोबाल्ट, कॉपर, फ़्लोरीन आदि सम्मिलित हैं। ये तो हुए हमारे शरीर/जीवन के निर्माण में योगदान देने वाले तत्व, अब हम इस प्रश्न पर आते हैं कि किस प्रकार से मानव जीवन के निर्माण हेतु आवश्यक तत्वों को तारों ने किस प्रकार मुहैया कराया, उसके लिए हम 13.8 अरब वर्ष पहले शुरू हुए ब्रह्मांड के जन्म की यात्रा पर चलते हैं।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया की नौ ग्रहों के अस्तित्व की जहां तक बात है। सूर्य-चंद्र को तो सभी आसानी से देख लेते हैं। सात ग्रहों को समझना है। ये सात ग्रह भी ग्रह मंडल में मौजूद हैं। हम आकाश मंडल में बहुत कुछ देखते हैं। तारे भी देखते हैं। असंख्य तारे भी लगभग एक जैसे हैं। स्कूल में बच्चे जब एक ड्रेस में होते हैं और छुट्टी के समय बाहर निकलते हैं तो उसमंत अपने बच्चे को पहचानना मुश्किल होता है। हमारे बच्चे हमें आसानी से पहचान लेते हैं और दौड़कर पास आ जाते हैं। दरअसल जब हम खड़े होते हैं तो हमारे जैसा दूसरा कोई भ्रम पैदा करने वाला नहीं होता है। इसलिए बच्चे हमें पहचान लेते हैं। चूंकि सभी बच्चे एक जैसे दिखते हैं इसलिए हमें पहचानने में कठिनाई होती है। इसी तरह सूर्य-चंद्र कु छ अलग विशेषता के कारण पहचान में आ जाते हैं, जैसे पूरे स्कूल में कोई बच्चा सात फुट का हो तो उसे आसानी से पहचाना जा सकता है। सूर्य-चंद्र आसानी से दिख जाते हैं। अन्य ग्रहों को भी आम जनमानस ग्रह मंडल में देखता तो है पर जान नहीं पाता, थोड़ा प्रयास करने पर उन्हें भी पहचाना जा सकता है। रही बात सूर्य सबको एक ही डिग्री में धूप देता है। सभी अपनी अपनी ऊर्जा एक जैसा फेंकता है तो अलग-अलग लोगों को अलग-अलग फल कैसे देता है। दरअसल सूर्य तो एक जैसा ही प्रभाव डालता है पर हमारे शरीर का निर्माण किस तरह का है, उसी के अनुसार ऊर्जा रिसीव हो पाती है।
जैसे समुद्र से कोई एक लोटा, कोई एक लीटर, कोई 25 लीटर जल निकाल लेता है, समुद्र किसी को मना नहीं करता है, पर हमारे पास जो पात्र है हम उसके अनुसार ही जल ले पाते हैं। समुद्र में जल है पर हमारे पास पात्र नहीं है। दूसरी बात यह है कि एक समय में ही सूर्य एक जैसी ऊर्जा दे रहा होता है, दूसरे समय में वैसी ऊर्जा सूर्य नहीं दे सकता। अर्थात अलग-अलग तिथि-समयों में जन्म हमारा होता है। सूर्य व अन्य ग्रह व राशि के अनुसार हमारे शरीर का निर्माण होता है। उस समय जब हमारे शरीर का निर्माण हो रहा था और जो हमारी पात्रता बनी, बाद में सूर्य कैसी भी ऊर्जा दे हमारा शरीर अपनी पात्रता के अनुसार ही उसे ग्रहण करता है।
एक अन्य उदाहरण समझ में आता है कि मिठाई सबको मीठी लगती है पर जिस व्यक्ति में बुखार हो उसे मिठाई का मूल स्वाद नहीं मिलता है। किसी को सुगर हो तो वही मिठाई जहर का काम करती है। हमें समझना चाहिए कि दोष मिठाई में नहीं है। एक ही मिठाई किसी को लाभ पहुंचा रही है और किसी को नुकसान। उसी प्रकार ग्रहों का प्रभाव भी हमारे ऊपर होता है।

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