लोकजीवन में देश के विभिन्न हिस्सों में अतीत में चली कांग्रेसी सरकारों को लेकर अनेक रोचक किस्से प्रचलन में है। कहा जाता है कि हरियाणा में एक कांग्रेसी मंत्री की सिफारिश पर रोडवेज में कंडक्टर रख लिया गया और वो स्वभाविक रूप से गलत टिकटें काटने लगा। फ्लाइंट स्कवैड ने उसे पकड़ लिया और जब मंत्री महोदय को इसकी जानकारी दी गई तो उन्होंने अजीबो गरीब आदेश देते हुए कहा- भाई वो टिकट काट नहीं सकता तो फाड़ तो सकता है। ऐसा करो उसे टिकट चैकिंग के काम पर लगा दो। उक्त बात कितनी सच्ची है यह कोई नहीं जानता परंतु अब कुछ ऐसा रोचक केस पंजाब में सामने आया है जिसने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाए हैं। राज्य के तकनीकी शिक्षा मंत्री चरनजीत सिंह चन्नी ने चवन्नी उछाल कर पता कर लिया कि कौन अध्यापक अधिक योग्य है और उसको अध्यापक तैनात कर दिया। मुख्यधारा के मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक चाचा चन्नी और उनकी चवन्नी छाए हुए हैं।
पूरी घटना इस प्रकार है, दो पॉलीटेक्नीक महाविद्यालयों के अध्यापकों ने पटियाला के आईटीआई में तैनाती का आवेदन दिया था। मामला विभाग के मंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के पास पहुंचा। उन्होंने मीडिया के सामने सिक्का उछाल कर फैसला किया कि किस अध्यापक को वहां तैनात किया जाएगा। रोचक बात है कि इससे दोनों अध्यापक संतुष्ट भी हो गए। इस फैसले के पीछे मंत्री महोदय का तर्क है कि ऐसी तैनातियों के लिए पैसे-रुपए, सिफारिशों का चलन रहा है, पर उन्होंने इसकी परवाह किए बगैर मीडिया के सामने सिक्का उछाल कर पारदर्शी ढंग से दोनों अध्यापकों की किस्मत का फैसला करना उचित समझा। प्रश्न उठता है कि क्या इसे उचित प्रशासनिक तरीका कहा जा सकता है। चरनजीत सिंह चन्नी की बात गलत भी नहीं है कि लाभ वाले पदों और सुविधाजनक जगहों पर तैनाती पाने के लिए बहुत-से लोग रसूखदार लोगों तक पहुंच बनाने, उनकी सिफारिश लगवाने, पैसे तक खर्च करने से परहेज नहीं करते। राजनीतिक लोगों पर तैनातियों के जरिए पैसे कमाने के आरोप भी आम हैं। आजकल जब बहुत सारे प्रतिष्ठित स्कूलों में दाखिले के लिए डोनेशन और सिफारिशें की जाती हैं, कुछ स्कूल लॉटरी प्रणाली के जरिए दाखिले की प्रक्रिया पूरी करते हैं। इस तरह सिक्का उछाल कर तैनाती करने का फैसला प्रथम दृष्टया अनुचित नहीं कहा जा सकता। पर एक अच्छे प्रशासक के लिए ऐसे फैसले करना हमेशा उचित नहीं कहा जा सकता।
नियुक्तियों, तैनातियों, स्थानातंरण आदि के मामले में अभ्यर्थियों की योग्यता, कार्यकुशलता, वरिष्ठता आदि के आधार पर फैसले किए जाने का नियम है। कैबिनेट मंत्री चन्नी के इस कदम से यह बात भी साफ होती है कि हमारी सरकारें अभी तक स्थानांतरण व नियुक्तियों संबंधी कोई स्पष्ट नीतियां नहीं बना पाई हैं। नीतियों की अस्पष्टता का ही परिणाम है कि इसके लिए सरकारी कर्मचारियों को रसूखदार लोगों के यहां पानी भरना पड़ता है। इसी से भयभीत हो सरकारी बाबू बड़े लोगों के हर उचित-अनुचित काम करने को तत्पर रहते हैं और जनसाधारण अपने वैध कामों के लिए भी दफ्तरों में भटकने को मजबूर होता है। हमारे राजनेता इसी का लाभ उठा कर ईमानदार अधिकारियों को धमकाने व प्रभावित करने का प्रयास करते हैं और कई राजनेताओं के लिए तो स्थानांतरण व बदलियां अच्छा खासा उद्योग बन चुकी हैं।
दो अभ्यर्थी होने के कारण चन्नी ने फैसला चवन्नी से कर लिया परंतु क्या अधिक उम्मीदवार होते तो चवन्नी फार्मूला काम आता। लोकतांत्रिक व्यवस्था में हर काम योग्यता के आधार पर पारदर्शिता से होना चाहिए। सरकार के हर फैसले संविधान की कसौटी पर खरे उतरने चाहिएं व तर्क पर आधारित होने चाहिएं। उचित होता कि चन्नी अगर अपने इस फैसले के लिए कोई परीक्षा या साक्षात्कार लेते, अध्यापकों का रिकार्ड भी देखा जा सकता था। दूसरी तरफ देखा जाए तो अच्छा ही हुआ कि देशवासियों का ध्यान इस ओर गया कि किस तरह आज भी हमारी सरकारें नीतिगत अस्पष्टता के अभाव में काम कर रही हैं। एक स्वस्थ लोकतंत्र व पारदर्शी प्रशासनिक व्यवस्था के लिए इस समस्या का निराकरण करना अत्यावश्यक है।
- राकेश सैन
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