नैमिष की चौरासी कोसी परिक्रमा

नैमिष की चौरासी कोसी परिक्रमा

सीतापुर - 88 हजार ऋषि मुनियों की तपोस्थली नामिश्रायण की चौरासी कोसी पारीकर्मा शुक्रवार की सुबह सूरज निकलने के साथ शुरू हो गयी। फागुन मास की शुरुवात के साथ ही प्रीति वर्ष होने वाली इस परिक्रमा में आने वालो की आस्था व मान्यताये इससे जुडी होती है. परिक्रमा के पहले पड़ाव तक की यात्रा के लिए एक रोज पहले ही लाखो की तादाद में श्रधालुओ की आमद नामिष की तपोभूमि पर इकट्ठा हो गयी।

क्या महिला क्या पुरुष और क्या बुजुर्ग व क्या बच्चे सभी इस परिक्रमा का हिस्सा है।यह प्राचीन परिकर्मा पवित्र नामिष तीर्थ के क्षेत्र में पड़ने वाले सभी तीर्थ स्थलों से होते हुए नैव दिन वापस नैमिष आ जाती है. इस परिक्रमा में आने वालो को रामदल के नाम से पहचाना जाता है।

इसके बाद रामादल यंहा से चलकर 10 वें दिन मिश्रिख तीर्थ पहुचती है. मिश्रिख तीर्थ महान तपस्वी व जनकल्याण के लिए अपनी देह करने वाले ऋषि दधिचि महराज की नगरी के नाम से जानी जाती है. यंहां पर पांच कोसी परिक्रमा का प्रावधान है जो किसी भी वजह से चौरासी कोसी परिक्रमा को नहीं कर पता है वो पांच कोसी परिक्रमा को कर के अपनी मन्नतो लिए प्रथानायइस परिक्रमा में भाग नैमिष स्थित अलग अलग तीर्थ पर खुले स्थान पर तम्बू लगाकर डेरा लगा लेते है.

इसमे संत महात्मा और सिद्ध पुरुष भी मौजूद रहते है। कई लोग तो ऐसे भी है जो की किसी न किसी वजह से चलने फिरने में असमर्थ होते है, लेकिन परिक्रमा में आस्था के चलते ही इसका हिस्सा बने रहते है। यात्रा के दौरान श्रध्लूगण रास्ते में पड़ने वाले कुम्नेश्वर,कुरकुरी,मानसरोवर,कोटीश्वर,महादेव,कैलाशन आदि तीर्थ स्थलों के दर्शन करते है. श्रद्धालु गण गोमती घाट पर पहुच कर यंहा स्थित पौराणिक अमर कंटक में स्नान कर ईश्वर से समस्त पापो से मुक्ति के लिए मोक्ष की कामना करते है. परिक्रमा कर रहे श्रद्धालु का मानना है की 15 दिनों की पवन परिक्रमा करने से मनचाहे फल की प्राप्ति होती है. ।
रिपोर्ट सुमित बाजपेयी, महेश दीक्षित

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