गूगल से भी तेज चलेगा इंसानी दिमाग

गूगल से भी तेज चलेगा इंसानी दिमाग

डेस्क-मशीन और इंसान में एक मौलिक अंतर यह है कि मशीनों के पास दिमाग नहीं होता। अगर होता तो मशीनें अब तक इंसानों को अपना गुलाम बना चुकी होतीं। पर संसार के बाकी जीवधारियों को पछाड़ कर धरती पर छा जाने वाले इंसान के दिमाग का विकास कैसे होता है और यह काम कैसे करता है, यह बात खुद इंसान के इधर कुछ समय से इस पहेली को सुलझाने की कोशिशें की जा रही हैं। प्रयोगशालाओं में इंसानी दिमाग जैसी संरचनाएं बनाई गई हैं और दिमाग को पढ़ने के लिए तमाम परियोजनाएं शुरू की गई हैं। कहा जा रहा है कि इस तरह जल्द ही हमारा अपना दिमाग हमारे काबू में होगा।

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हू-ब-हू इंसानी दिमाग जैसी संरचना बनाने का काम पिछले साल ऑस्ट्रिया के इंस्टीट्यूट ऑफ मॉलिक्युलर बायोटेक्नोलॉजी के साइंटिस्ट जे, नॉबब्लिच और मेडेलिन लेनकास्टर के साथ ब्रिटेन की एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी की ह्यूमन जेनेटिक्स यूनिट के रिर्सचरों ने किया। उन्होंने प्रयोगशाला में दिमागी ऊतकों (टिश्यूज) का त्रि-आयामी विकास करने में सफलता हासिल की। इन वैज्ञानिकों का दावा है कि उन्होंने प्रयोगशाला में सेरीब्रल ऑर्गेनॉइड्स का विकास कर लिया है। इन्हीं संरचनाओं को मिनी ब्रेन भी कहा जा रहा है।

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